अवैध संबंध अब सजा नही अडल्टरी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला धारा 497 बदली adultery section meaning hindi sc order
27 September 2018
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विवाहेतर संबंध Avaidh sambandh यानी Extramarital affairs अपराध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को स्त्री और पुरुष के विवाहेतर संबंधों से जुड़ी भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 497 को अपराध के दायरे से बाहर करने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि पत्नी का मालिक नहीं है पति। कोर्ट ने धारा 497 को महिला के सम्मान के खिलाफ बताया। एेसे समझिए, अडल्टरी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसल
सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि आइपीसी की धारा 497 महिला के सम्मान के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को हमेशा समान अधिकार मिलना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि महिला को समाज की इच्छा के हिसाब से सोचने को नहीं कहा जा सकता। संसद ने भी महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा पर कानून बनाया हुआ है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली इस बेंच ने कहा कि हमारे लोकतंत्र की खूबी ही मैं, तुम और हम की है।
2. अपराध नहीं, हो सकता है तलाक का आधार
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है। हालांकि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर ने अपने फैसले में कहा कि अडल्टरी (विवाहेतर संबंध) तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन यह अपराध नहीं होगा।
3. अगर पत्नी खुदकुशी करती है तो...
अपने फैसले में चीफ जस्टिस और जस्टिस खानविलकर ने कहा कि विवाहेतर संबंध अपराध तो नहीं होगा, लेकिन अगर पत्नी अपने लाइफ पार्टनर (पति) के व्यभिचार के कारण खुदकुशी करती है। तो ऐसे केस में सबूत पेश करने के बाद पति पर खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला चल सकता है।
4. स्त्री की देह पर उसका अपना हक
कोर्ट ने कहा कि स्त्री की देह पर उसका अपना हक है, इससे समझौता नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि यह उसका अधिकार है, उस पर किसी तरह की शर्तें नहीं थोपी जा सकती हैं।
5. महिला के यौन इच्छाओं को रोकता है कानून
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में अडल्टरी कानून को मनमाना बताया। उन्होंने कहा कि यह महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। अडल्टरी कानून महिला की यौन इच्छाओं को रोकता है और इसलिए यह असंवैधानिक है। उन्होंने कहा कि महिला को शादी के बाद यौन इच्छाओं से वंचित नहीं किया जा सकता है।
6. सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की दलील
इससे पहले 8 अगस्त को हुई सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था कि अडल्टरी अपराध है और इससे परिवार और विवाह तबाह होता है।
7. अब तक पुरुषों को माना जाता था अपराधी
गौरतलब है कि आईपीसी की धारा-497 के प्रावधान के तहत पुरुषों को अपराधी माना जाता है जबकि महिला पीड़िता मानी गई है। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता का कहना था कि महिलाओं को अलग तरीके से नहीं देखा जा सकता क्योंकि आईपीसी की किसी भी धारा में जेंडर विषमताएं नहीं हैं।
8. धारा-497 पुरुषों के साथ भेदभाव वाला कानून
याचिका में कहा गया था कि आईपीसी की धारा-497 के तहत जो कानूनी प्रावधान हैं वह पुरुषों के साथ भेदभाव वाला है। आपको बता दें कि अडल्टरी के मामले में पुरुषों को दोषी पाए जाने पर सजा दिए जाने का प्रावधान है जबकि महिलाओं को नहीं।
बता दें कि 1860 में बना अडल्टरी कानून लगभग 158 साल पुराना था। इसके तहत अगर कोई पुरुष किसी दूसरी शादीशुदा औरत के साथ उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है, तो महिला के पति की शिकायत पर पुरुष को अडल्टरी कानून के तहत अपराधी माना जाता था। ऐसा करने पर पुरुष को पांच साल की कैद और जुर्माना या फिर दोनों ही सजा का प्रवाधान था।
10. किसने दायर की थी याचिका?
केरल के एक अनिवासी भारतीय (NRI) जोसेफ साइन ने इस संबंध में याचिका दाखिल की थी। जिसमें आइपीसी की धारा-497 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था और जनवरी में इसे संविधान पीठ को भेजा गया था।
कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि पत्नी का मालिक नहीं है पति। कोर्ट ने धारा 497 को महिला के सम्मान के खिलाफ बताया। एेसे समझिए, अडल्टरी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसल
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1. 497 महिला के सम्मान के खिलाफसुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि आइपीसी की धारा 497 महिला के सम्मान के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को हमेशा समान अधिकार मिलना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि महिला को समाज की इच्छा के हिसाब से सोचने को नहीं कहा जा सकता। संसद ने भी महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा पर कानून बनाया हुआ है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली इस बेंच ने कहा कि हमारे लोकतंत्र की खूबी ही मैं, तुम और हम की है।
2. अपराध नहीं, हो सकता है तलाक का आधार
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है। हालांकि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर ने अपने फैसले में कहा कि अडल्टरी (विवाहेतर संबंध) तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन यह अपराध नहीं होगा।
3. अगर पत्नी खुदकुशी करती है तो...
अपने फैसले में चीफ जस्टिस और जस्टिस खानविलकर ने कहा कि विवाहेतर संबंध अपराध तो नहीं होगा, लेकिन अगर पत्नी अपने लाइफ पार्टनर (पति) के व्यभिचार के कारण खुदकुशी करती है। तो ऐसे केस में सबूत पेश करने के बाद पति पर खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला चल सकता है।
4. स्त्री की देह पर उसका अपना हक
कोर्ट ने कहा कि स्त्री की देह पर उसका अपना हक है, इससे समझौता नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि यह उसका अधिकार है, उस पर किसी तरह की शर्तें नहीं थोपी जा सकती हैं।
5. महिला के यौन इच्छाओं को रोकता है कानून
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में अडल्टरी कानून को मनमाना बताया। उन्होंने कहा कि यह महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। अडल्टरी कानून महिला की यौन इच्छाओं को रोकता है और इसलिए यह असंवैधानिक है। उन्होंने कहा कि महिला को शादी के बाद यौन इच्छाओं से वंचित नहीं किया जा सकता है।
6. सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की दलील
इससे पहले 8 अगस्त को हुई सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था कि अडल्टरी अपराध है और इससे परिवार और विवाह तबाह होता है।
7. अब तक पुरुषों को माना जाता था अपराधी
गौरतलब है कि आईपीसी की धारा-497 के प्रावधान के तहत पुरुषों को अपराधी माना जाता है जबकि महिला पीड़िता मानी गई है। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता का कहना था कि महिलाओं को अलग तरीके से नहीं देखा जा सकता क्योंकि आईपीसी की किसी भी धारा में जेंडर विषमताएं नहीं हैं।
8. धारा-497 पुरुषों के साथ भेदभाव वाला कानून
याचिका में कहा गया था कि आईपीसी की धारा-497 के तहत जो कानूनी प्रावधान हैं वह पुरुषों के साथ भेदभाव वाला है। आपको बता दें कि अडल्टरी के मामले में पुरुषों को दोषी पाए जाने पर सजा दिए जाने का प्रावधान है जबकि महिलाओं को नहीं।
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बता दें कि 1860 में बना अडल्टरी कानून लगभग 158 साल पुराना था। इसके तहत अगर कोई पुरुष किसी दूसरी शादीशुदा औरत के साथ उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है, तो महिला के पति की शिकायत पर पुरुष को अडल्टरी कानून के तहत अपराधी माना जाता था। ऐसा करने पर पुरुष को पांच साल की कैद और जुर्माना या फिर दोनों ही सजा का प्रवाधान था।
10. किसने दायर की थी याचिका?
केरल के एक अनिवासी भारतीय (NRI) जोसेफ साइन ने इस संबंध में याचिका दाखिल की थी। जिसमें आइपीसी की धारा-497 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था और जनवरी में इसे संविधान पीठ को भेजा गया था।
Hi sir m I ask something
ReplyDeleteबोले क्या जानना है
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