कहानी कथनी और करनी में अंतर की Kathni Or Karni Me Antar
7 September 2016
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पिता अपने बच्चे के साथ कार में एक शहर से दुसरे शहर जा रहे थे. पिता कार चला रहे थे और बच्चा पीछे बता था. उन्हें पुत्र बहुत प्रिय था इसलिए वो बहुत आराम से कार चला रहे थे. इतने में कुछ मिनटों बाद एक अत्याधुनिक स्मार्ट कार तेज रफ्तार से उनकी गाड़ी से आगे निकल गयी.
यह देख पुत्र ने कहा “पापा, वह कार हमसे आगे निकल गई हे, आप स्पीड बढाओ ना और उससे आगे निकलो ना. पिता ने मुस्कुराते हुए कहा “यह सम्भव नहीं हे. हमारी कार इतनी स्मार्ट और अच्छी नहीं हे की उससे तेज दोड़ सके. कुछ देर बाद एक और कार आगे निकल गई. बेटा थोडा नाराज़ होते हुए फिर गाड़ी की रफ्तार तेज करने पर जोर देने लगा.
यह देख पुत्र ने कहा “पापा, वह कार हमसे आगे निकल गई हे, आप स्पीड बढाओ ना और उससे आगे निकलो ना. पिता ने मुस्कुराते हुए कहा “यह सम्भव नहीं हे. हमारी कार इतनी स्मार्ट और अच्छी नहीं हे की उससे तेज दोड़ सके. कुछ देर बाद एक और कार आगे निकल गई. बेटा थोडा नाराज़ होते हुए फिर गाड़ी की रफ्तार तेज करने पर जोर देने लगा.
पिता ने थोड़ी नाराजगी से जवाब दिया “तुम केवल उन कारों को देख रहे हो जो हमसे आगे हे, उन्हें नहीं जो हमसे पीछे हे. यदि हम इन आगे जाती स्मार्ट कारों को पकड़ने की कोशिस करेंगे तो अंत में खुद को ही नुकसान पहुंचाएंगे”.
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यह सुन बेटे ने सहजता से कहा “लेकिन पापा आप तो मेरी तुलना उन बच्चो से करते हे, जो मुझसे ज्यादा स्मार्ट हे और फिर चाहते हे की में उनसे बेहतर बनू. ऐसे में यदि में जबरदस्ती उनकी तरह बनने का प्रयास करूँगा, तो अंत में खुद को ही नुकसान नहीं पहुंचाउंगा क्या !”
यह सुन बेटे ने सहजता से कहा “लेकिन पापा आप तो मेरी तुलना उन बच्चो से करते हे, जो मुझसे ज्यादा स्मार्ट हे और फिर चाहते हे की में उनसे बेहतर बनू. ऐसे में यदि में जबरदस्ती उनकी तरह बनने का प्रयास करूँगा, तो अंत में खुद को ही नुकसान नहीं पहुंचाउंगा क्या !”
बेटे की बातों ने पापा को गहरी सोच में डाल दिया था, क्योकि उन्हें भी अपनी कथनी और करनी का यह अंतर नहीं पता था.
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