दवाएं ही न बन जाएं हमारी दुश्मन side effects of drugs on the body medicines
वक़्त के साथ दवाएं भी बदल रही हैं दवाएं जीवनरक्षक होती हैं, लेकिन कुछ आदतें शरीर को इनका दुश्मन बना रही हैं। इसलिए दवाएं भी अपना असर खो रही हैं। पहले जिन दवाओं या दवाओं की कम खुराक से रोग ठीक हो जाता था, वहीं अब ज़्यादा खुराक की ज़रूरत पड़ने लगी है। कई मामलों में तो दवाओं के कम होते असर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) भी चिंतित है। यह सब जीवाणुओं में दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने के कारण हो रहा है। िचकित्सकीय भाषा में इसे ड्रग रेज़िस्टेंस यानी दवाओं के प्रति प्रतिरोधकता कहते हैं।
क्या है ड्रग रेज़िस्टेंस किसी रोग में जीवाणु शरीर को नुक़सान पहुंचाते हैं। एेसे जीवाणुओं को ख़त्म करने के लिए जो दवाएं दी जाती हैं उन्हें एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल दवाओं के रूप में जाना जाता है। शरीर को बैक्टीरिया, वायरस और फंगस ये तीन तरह के जीवाणु ही मनुष्य को सबसे ज़्यादा परेशान करते हैं। कुछ जीवाणु दवा के हिसाब से ख़ुद में बदलाव करते रहते हैं जिससे उस दवा से वो नहीं मरते। ये किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में ख़ुद को ढाल लेते हैं। दवाओं के खिलाफ़ अपने आप एक प्रतिरोधक क्षमता लगातार विकसित करते रहते हैं।
क्या हैं कारण एंटीमाइक्रोबियल दवाएं यदि सही अनुपात और तय अवधि तक न ली जाएं तो कुछ कीटाणु पूरी तरह नहीं मर पाते। ये बचे हुए कीटाणु उस एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैंै। इसका कारण एंटीबायोटिक्स का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल भी होता है। अक्सर लोग हल्के से संक्रमण आदि में एंटीबायोटिक दवाएं खाने लगते हैं। बार-बार एंटीबायोटिक दवाएं लेेने से शरीर पर इनका असर कम होने लगता है। ऐसे में जब इनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, तब इनका असर शरीर पर नहीं होता।
टीबी में है खतरा मलेरिया, टीबी, टायफॉइड के कीटाणुओं में ख़ुद में लगातार बदलाव करने की क्षमता ज़्यादा होती है। ये एक से ज़्यादा दवाओं के प्रति भी प्रतिरोधी हो जाते हैं। हाल ही में टीबी मल्टीड्रग रेज़िस्टेंस के मामले सामने आ रहे हैं। इसमें कई एंटीमाइक्रोब्रियल दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। अगर टीबी की दवाएं बीच में छोड़ दी जाएं, तो उसके वापस लौटने का ख़तरा रहता है। बाद में फिर वही दवाएं शरीर पर असर करना बंद कर देती हैं।
हमेशा नुक़सान नहीं करते बैक्टीरिया कुछ बैक्टीरिया हमारे शरीर के लिए फ़ायदेमंद भी होते हैं। लेकिन दवाओं की अधिकता से ये विटामिन बी-12, एंटीऑक्सीडेंट्स वाले बैक्टीरिया को भी ख़त्म कर देते हैं जिससे रोग होने की आशंका भी बढ़ जाती है
क्या है ड्रग रेज़िस्टेंस किसी रोग में जीवाणु शरीर को नुक़सान पहुंचाते हैं। एेसे जीवाणुओं को ख़त्म करने के लिए जो दवाएं दी जाती हैं उन्हें एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल दवाओं के रूप में जाना जाता है। शरीर को बैक्टीरिया, वायरस और फंगस ये तीन तरह के जीवाणु ही मनुष्य को सबसे ज़्यादा परेशान करते हैं। कुछ जीवाणु दवा के हिसाब से ख़ुद में बदलाव करते रहते हैं जिससे उस दवा से वो नहीं मरते। ये किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में ख़ुद को ढाल लेते हैं। दवाओं के खिलाफ़ अपने आप एक प्रतिरोधक क्षमता लगातार विकसित करते रहते हैं।
क्या हैं कारण एंटीमाइक्रोबियल दवाएं यदि सही अनुपात और तय अवधि तक न ली जाएं तो कुछ कीटाणु पूरी तरह नहीं मर पाते। ये बचे हुए कीटाणु उस एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैंै। इसका कारण एंटीबायोटिक्स का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल भी होता है। अक्सर लोग हल्के से संक्रमण आदि में एंटीबायोटिक दवाएं खाने लगते हैं। बार-बार एंटीबायोटिक दवाएं लेेने से शरीर पर इनका असर कम होने लगता है। ऐसे में जब इनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, तब इनका असर शरीर पर नहीं होता।
टीबी में है खतरा मलेरिया, टीबी, टायफॉइड के कीटाणुओं में ख़ुद में लगातार बदलाव करने की क्षमता ज़्यादा होती है। ये एक से ज़्यादा दवाओं के प्रति भी प्रतिरोधी हो जाते हैं। हाल ही में टीबी मल्टीड्रग रेज़िस्टेंस के मामले सामने आ रहे हैं। इसमें कई एंटीमाइक्रोब्रियल दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। अगर टीबी की दवाएं बीच में छोड़ दी जाएं, तो उसके वापस लौटने का ख़तरा रहता है। बाद में फिर वही दवाएं शरीर पर असर करना बंद कर देती हैं।
हमेशा नुक़सान नहीं करते बैक्टीरिया कुछ बैक्टीरिया हमारे शरीर के लिए फ़ायदेमंद भी होते हैं। लेकिन दवाओं की अधिकता से ये विटामिन बी-12, एंटीऑक्सीडेंट्स वाले बैक्टीरिया को भी ख़त्म कर देते हैं जिससे रोग होने की आशंका भी बढ़ जाती है
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