जानिये श्राद्ध पक्ष का महत्व, मान्यता, साम्रगी और विधि के बारे में
26 September 2016
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भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से अशविन कुष्ण पक्ष अमावस्या तक का काल पितृपक्ष होता है. मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरो को मुक्त कर देते है, ताकि वे अपने वंशजो से श्राद्ध ग्रहण कर सके. इस कालखण्ड में तर्पण के अलावा पिंडदान का भी महत्व है. तीर्थस्थान के साथ-साथ तर्पण की क्रिया घर पर भी कर सकते है. तर्पण से मतलब है अंजुरी भरकर जल देना.
मान्यता
व्यक्त्ति के तीन पूर्वज-पिता, दादा और परदादा क्रम से वसु, रूद्र और आदित्य के समान माने जाते हैं. श्राद्ध में वे ही अन्य सभी पूर्वजो के प्रतिनिधि होते है. जीवन के पशचात प्रत्येक मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण,दूसरा ऋषि ऋण और तीसरा पितृ ऋण. पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध कर्म करके व्यक्त्ति अपने तीनो ऋणों से मुक्त्त हो सकता है, ऐसी मान्यता है.
तिथि
श्राद्ध पितृ पक्ष के दौरान किए जाने चाहिए. लेकिन अमावस्या का श्राद्ध ऐसे भूले- बिसरे लोगो के लिए होता है, जिन्हें पहले परिस्थितिवश श्राद्ध का भाग नही मिल पाया. इस दिन ज्ञात-अज्ञात पूर्वजो का विधि-विधान से पीड़दान, तर्पण, श्राद्ध कर सकते हैं. इस दिन को ही सर्वपितृ श्राद्ध कहा गया है. माता का श्राद्ध नवमी को, अकाल मृत्यु वालो का श्राद्ध चतुदर्शी को किया जाता है.
सामग्री
श्राद्ध में काले तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्व होता है. इसके अलावा आम, बहेड़ा, बेल, अनार, पुराना आँवला, खीर, नारियल, फासला, नारंगी, खजूर, अंगूर, निलकेथ, परवल, चिरौजी, बेर, जंगली बेर, इंद्र जो आदि के सेवन का भी निधान है. पके हुए चावल, दूध और तिल को मिश्रित करके पिंड बनाते हैं. इस प्रकिया को 'सपिंडीकरण' कहते है.
विधिमध्याहन (12 बजे के बाद) ही श्राद्ध का सही समय है. घर पर तर्पण के लिए बड़ी थाली में जल, दूध,काले तिल ले लें और कुशा लेकर हाथ में रखे. दक्षिण दिशा में मुख करके तीन-तीन अंजुरी तर्पण करे. पिता-माता, दादा-दादी, परदादा-परदादी के साथ द्वितीय पक्ष यानि ननिहाल पक्ष से नाना-नानी को भी तर्पण करे. इसमें दाहिने हाथ के अंगूठे से जल तर्पण करे और कुशा भी उसी तरफ रहेगी.
भोग
श्राद्ध कर्म में ब्राह्यणों से पहले गाय,श्वान (कुत्ता) और कोए को भोग लगाए. पंडितो को भोजन नही करा रहे तो आटा, दाल, घी, शक्कर मिलाकर उसमे कुछ दक्षिण रखकर दान करे. पितरो को तर्पण का जल तुलसी आदि में न चढ़ाए. इसे किसी फलदार वृक्ष की जड़ में डाल सकते है. सलाह- पं. प्रहलाद पड़्या एवं आचार्य डॉ. आत्माराम गौतम
मान्यता
व्यक्त्ति के तीन पूर्वज-पिता, दादा और परदादा क्रम से वसु, रूद्र और आदित्य के समान माने जाते हैं. श्राद्ध में वे ही अन्य सभी पूर्वजो के प्रतिनिधि होते है. जीवन के पशचात प्रत्येक मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण,दूसरा ऋषि ऋण और तीसरा पितृ ऋण. पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध कर्म करके व्यक्त्ति अपने तीनो ऋणों से मुक्त्त हो सकता है, ऐसी मान्यता है.
तिथि
श्राद्ध पितृ पक्ष के दौरान किए जाने चाहिए. लेकिन अमावस्या का श्राद्ध ऐसे भूले- बिसरे लोगो के लिए होता है, जिन्हें पहले परिस्थितिवश श्राद्ध का भाग नही मिल पाया. इस दिन ज्ञात-अज्ञात पूर्वजो का विधि-विधान से पीड़दान, तर्पण, श्राद्ध कर सकते हैं. इस दिन को ही सर्वपितृ श्राद्ध कहा गया है. माता का श्राद्ध नवमी को, अकाल मृत्यु वालो का श्राद्ध चतुदर्शी को किया जाता है.
सामग्री
श्राद्ध में काले तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्व होता है. इसके अलावा आम, बहेड़ा, बेल, अनार, पुराना आँवला, खीर, नारियल, फासला, नारंगी, खजूर, अंगूर, निलकेथ, परवल, चिरौजी, बेर, जंगली बेर, इंद्र जो आदि के सेवन का भी निधान है. पके हुए चावल, दूध और तिल को मिश्रित करके पिंड बनाते हैं. इस प्रकिया को 'सपिंडीकरण' कहते है.
विधिमध्याहन (12 बजे के बाद) ही श्राद्ध का सही समय है. घर पर तर्पण के लिए बड़ी थाली में जल, दूध,काले तिल ले लें और कुशा लेकर हाथ में रखे. दक्षिण दिशा में मुख करके तीन-तीन अंजुरी तर्पण करे. पिता-माता, दादा-दादी, परदादा-परदादी के साथ द्वितीय पक्ष यानि ननिहाल पक्ष से नाना-नानी को भी तर्पण करे. इसमें दाहिने हाथ के अंगूठे से जल तर्पण करे और कुशा भी उसी तरफ रहेगी.
भोग
श्राद्ध कर्म में ब्राह्यणों से पहले गाय,श्वान (कुत्ता) और कोए को भोग लगाए. पंडितो को भोजन नही करा रहे तो आटा, दाल, घी, शक्कर मिलाकर उसमे कुछ दक्षिण रखकर दान करे. पितरो को तर्पण का जल तुलसी आदि में न चढ़ाए. इसे किसी फलदार वृक्ष की जड़ में डाल सकते है. सलाह- पं. प्रहलाद पड़्या एवं आचार्य डॉ. आत्माराम गौतम
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