कृत्रिम गर्भाधान की तकनीकों के बारे में artificial insemination Techinq
7 September 2016
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कृत्रिम गर्भाधान का मतलब हे की कोई महिला बच्चे को जन्म देने में असमर्थ होती हे या पुरुष में कुछ कमी होती हे तो चिकित्सा विज्ञान की मदद से कृत्रिम बच्चे को जन्म दिया जाता हे. नि:सन्तान दम्पतियों को सन्तान प्राप्ति में चिकित्सा विज्ञान मदद करता हे. मेडिकल भाषा में इसे ART कहते हे. शादी के कितने साल हो चुके हे, महिला-पुरुष की स्थिति क्या हे, इस आधार पर इलाज किया जाता हे. आज की इस पोस्ट में, में आपको कृत्रिम गर्भाधान की कुछ तकनीकों के बारे में बताऊंगा.
1. ICSI
शुक्राणुओं में कमजोरी या उनकी संख्या सामान्य से कम हे तब इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन तकनीक का उपयोग करते हे. इसमें स्त्री के अंडाणु बाहर निकालकर मिक्सिंग के बजाय उसकी बाहरी परत हटा देते हे. शुक्राणु को अंडे के न्यूक्लियस के अंदर एक मशीन के द्वारा छोड़ते हे. भ्रूण निर्माण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद उसे गर्भाशय में छोड़ा जाता हे.
शुक्राणुओं में कमजोरी या उनकी संख्या सामान्य से कम हे तब इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन तकनीक का उपयोग करते हे. इसमें स्त्री के अंडाणु बाहर निकालकर मिक्सिंग के बजाय उसकी बाहरी परत हटा देते हे. शुक्राणु को अंडे के न्यूक्लियस के अंदर एक मशीन के द्वारा छोड़ते हे. भ्रूण निर्माण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद उसे गर्भाशय में छोड़ा जाता हे.
2. IUI
विवाह के शुरूआती वर्षों में अगर सन्तान प्राप्ति में दिक्कत आ रही हे और पति-पत्नी दोनों की रिपोर्ट भी सामान्य हे, तब इंट्रा युटेरीन इन्सोमिनेशन तकनीक अपनाई जाती हे. प्रयोगशाला में पति के अच्छे शुक्राणु छांटकर पत्नी के गर्भाशय में प्रवेश कराये जाते हे. दो-तीन प्रयासों के बाद गर्भ ठहर सकता हे. नि:सन्तान दम्पतियों के लिए शुरू में यह तकनीक अपनाई जाती हे.
3. सरोगेसी
गर्भाशय निकल गया हे या बार-बार गर्भपात हो रहा हे तब सरोगेसी यानी दुसरे की कोख ली जाती हे. इसमें IVF तकनीक से बना भ्रूण तीसरी महिला की कोख में रखा जाता हे. इसमें 9 माह बाद जन्म लेने वाली सन्तान का DNA अपने जैविक माता-पिता का ही होता हे. जरूरत के अनुसार शुक्राणु या अंडाणु किसी और से भी लिए जा सकते हे.
अगर महिला की फैलोपियन ट्यूब बंद हे तो IVF तकनीक कारगार साबित होती हे. इसमें अंडाणु को बाहर निकालकर और कुछ इंजेक्शन लगाकर पुरुष के स्पर्म के मिलाने के बाद मशीन में रखा जाता हे. जब भ्रूण बनना शुरू हो जाता हे उसके बाद इसे गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर देते हे.
विवाह के शुरूआती वर्षों में अगर सन्तान प्राप्ति में दिक्कत आ रही हे और पति-पत्नी दोनों की रिपोर्ट भी सामान्य हे, तब इंट्रा युटेरीन इन्सोमिनेशन तकनीक अपनाई जाती हे. प्रयोगशाला में पति के अच्छे शुक्राणु छांटकर पत्नी के गर्भाशय में प्रवेश कराये जाते हे. दो-तीन प्रयासों के बाद गर्भ ठहर सकता हे. नि:सन्तान दम्पतियों के लिए शुरू में यह तकनीक अपनाई जाती हे.
3. सरोगेसी
गर्भाशय निकल गया हे या बार-बार गर्भपात हो रहा हे तब सरोगेसी यानी दुसरे की कोख ली जाती हे. इसमें IVF तकनीक से बना भ्रूण तीसरी महिला की कोख में रखा जाता हे. इसमें 9 माह बाद जन्म लेने वाली सन्तान का DNA अपने जैविक माता-पिता का ही होता हे. जरूरत के अनुसार शुक्राणु या अंडाणु किसी और से भी लिए जा सकते हे.
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अगर महिला की फैलोपियन ट्यूब बंद हे तो IVF तकनीक कारगार साबित होती हे. इसमें अंडाणु को बाहर निकालकर और कुछ इंजेक्शन लगाकर पुरुष के स्पर्म के मिलाने के बाद मशीन में रखा जाता हे. जब भ्रूण बनना शुरू हो जाता हे उसके बाद इसे गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर देते हे.
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