कहीं हम पूण्य के रूप में पाप तो नहीं कमा रहे??
24 August 2016
Add Comment
एक परिवार में बाज़ार से ब्रेड मँगवाई गई. उस पैकेट को जब खोला तो उसमें दुर्ग़ध आ रही थी. उसने अपनी बीवी-बच्चों को हिदायत दी कि ब्रेड न खायें. साथ ही कहाँ कि बाहर जो भिखारी बैठा है उसे ले जाकर दे दो. क्या आपके भीतर जरा भी इंसानियत है? सूबह की दाल, ग़र्मी के कारण खटटी हो गई. आप कहते हैं कि फेंकना मत, कोई भिखारी जा रहाँ हो तो उसे दे देना. सावधान! कही पुण्य के नाम पर हम पाप तो नही कमा रहे हैं. जो चीज़ तुम ख़ुद नही खा सकते, अपने बच्चे को नही खिला सकते वह किसी निर्धन के बच्चे को खिलाकर उसे बीमार करने की कोशिश कर रहे हो. अगर तुम्हे देना ही हे तो वही दो जिसका तुम ख़ुद उपयोग कर सको. बची हुई रोटी देने तक की सोच न रखे. जब आटा भिगोओ तब तुम उसमें दो मुटठी आटा ज़्यादा भिगोना ओर उसकी रोटी किसी ग़रीब भिखारी को दे देना, तुम्हारे तो आटे के डिब्बे भरे हैं, अतः दो मुट्ठी आटा निकालने पर फ़र्क़ नही पड़ेगा, पर उस ग़रीब के तो दो रोटी में काफ़ी फ़र्क़ पड़ जाएगा.
सच में कई बार परिवारों में देखने को मिलता हे की ठंडी रोटी हे तो उसे या तो किसी भिखारी को दे दी जाती हे या गाय या अन्य प्राणी को दी जाती हे. क्या वे हमसे अलग हे? क्या वो सांस नहीं लेते? क्या वो बीमार नहीं पड़ते? अगली बार ऐसा करने से पहले इन सवालों के बारे में सोचना और अपनी जमीर और इंसानियत को जिंदा रखना, क्योकि यह वो लोग हे जो छोटी सी मदद में भी लाखों दुवाएं दे जाते हे.
0 Response to "कहीं हम पूण्य के रूप में पाप तो नहीं कमा रहे??"
Post a Comment
Thanks for your valuable feedback.... We will review wait 1 to 2 week 🙏✅