इंसान को परिस्थिति के हिसाब से व्यवहार करना चाहिए


किसी गाँव में एक प्रसिद्ध पुजारी थे. वे घूम-घूम कर उपदेश देते थे. एक बार किसी शहर में उपदेश दे रहे थे तो वंहा एक लुटेरा भी था. उसने सोचा की पुजारी का उपदेश सुनने बहुत सारे लोग आते हे, अच्छा-खासा चढावा भी चढ़ता हे, तो क्यों ना इन्हें ही लुट लिया जाए. वह लोगों के बीच में बैठकर उपदेश सुनने लगा. पुजारी कह रहे थे “क्षमा और अहिंसा मनुष्य के आभूषण हे.” इन्हें नहीं छोड़ना चाहिए. उपदेश खत्म होने के बाद पुजारी दक्षिणा लेके रवाना हो गए. तब वो लुटेरा भी उनके पीछे चला गया. किसी सुनसान जगह पर जाकर उसने पुजारी को रोका और कहा की यह सारा माल मुझे दे दो वरना बेमतलब मारे जाओगे. पुजारी भी निडर था वह डरा नहीं. उसके पास एक लाठी थी उसने उसी लाठी से उस लुटेरे को पिटना स्टार्ट कर दिया. लुटेरा घबरा गया और बोला “आपने तो कहा था की क्षमा और अहिंसा मनुष्य के आभूषण हे और आप खुद ही हिंसा कर रहे हे.” पुजारी ने कहा की वो मेने सज्जनों के लिए कहा था तेरे जैसे दुष्टों के लिए नहीं. क्षमाशील होने का यह अर्थ नहीं की हम कायर हो जाए और तेरे जैसे दुष्ट इसका फायदा उठाये. इंसान को व्यवहार हालात के हिसाब से करना चाहिए.

यह कहानी हमें यह सीख देती हे की क्षमा का अर्थ कायरता नहीं हे. चाणक्य ने कहा था की सांप भले ही जहरीला ना हो, लेकिन उसे जहरीला होने का दिखावा तो करना ही चाहिए. हालात हमारे व्यवहार को तय करते हे की हमें किस जगह अच्छा बनना हे और किस जगह बहादुर.

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