कहानी मंदिर के बाहर गरीब भूख सर्दी से मर जाता हे उसका क्या.
15 June 2016
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Best Story For Poor People- नई नवेली दुल्हन जब ससुराल में आई तो उसकी सास बोली- बींदणी कल माता के मन्दिर में चलना है। बहू ने पूछा : सासु माँ एक तो ' माँ ' जिसने मुझ जन्म दिया और एक ' आप ' हो और कोन सी माँ है ? सास बडी खुश हुई कि मेरी बहू तो बहुत सीधी है. सास ने कहा - बेटा पास के मन्दिर में दुर्गा माता है सब औरतें जायेंगी हम भी चलेंगे. सुबह होने पर दोनों एक साथ मन्दिर जाती हे. आगे सास पीछे बहू. जैसे ही मन्दिर आया तो बहू ने मन्दिर में गाय की मूर्ति को देखकर कहा- माँ जी देखो ये गाय का बछड़ा दूध पी रहा है, मैं बाल्टी लाती हूँ और दूध निकालते है. सास ने अपने सिर पर हाथ पीटा कि बहू तो पागल है और बोली- बेटा ये स्टेच्यू है और ये दूध नही दे सकती, चलो आगे. मन्दिर में जैसे ही प्रवेश किया तो एक शेर की मूर्ति दिखाई दी.
फिर बहू ने कहा- माँ आगे मत जाओ ये शेर खा जायेगा सास को चिंता हुई की मेरे बेटे का तो भाग्य फूट गया और बोली- बेटा पत्थर का शेर कैसे खायेगा? चलो अंदर चलो मन्दिर में, और सास बोली - बेटा ये माता है और इससे मांग लो , यह माता तुम्हारी मांग पूरी करेंगी.बहू ने कहा - माँ ये तो पत्थर की है ये क्या दे सकती है? जब पत्थर की गाय दूध नही दे सकती, पत्थर का बछड़ा दूध पी नही सकता, पत्थर का शेर खा नही सकता तो ये पत्थर की मूर्ति क्या दे सकती है. अगर कोई दे सकती है तो आप है आप मुझे आशीर्वाद दीजिये। तभी सास की आँखे खुली वो बहू पढ़ी लिखी थी, तार्किक थी, जागरूक थी, तर्क और विवेक के सहारे बहु ने सास को जाग्रत कर दिया. अगर मानवता की प्राप्ति करनी है तो पहले असहायों, जरुरतमंदों, गरीबो की सेवा करो परिवार, समाज में लोगो की मदद करे.
अंधविश्वास और पाखण्ड को हटाना ही मानव सेवा है. बाकी मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारे, चर्च तो मानसिक गुलामी के केंद्र हैं ना कि ईश्वर प्राप्ति के मानव का सफर पत्थर से शुरु हुआ था। पत्थरों को ही महत्व देता है और आज पत्थर ही बन कर रह गया.
फिर बहू ने कहा- माँ आगे मत जाओ ये शेर खा जायेगा सास को चिंता हुई की मेरे बेटे का तो भाग्य फूट गया और बोली- बेटा पत्थर का शेर कैसे खायेगा? चलो अंदर चलो मन्दिर में, और सास बोली - बेटा ये माता है और इससे मांग लो , यह माता तुम्हारी मांग पूरी करेंगी.बहू ने कहा - माँ ये तो पत्थर की है ये क्या दे सकती है? जब पत्थर की गाय दूध नही दे सकती, पत्थर का बछड़ा दूध पी नही सकता, पत्थर का शेर खा नही सकता तो ये पत्थर की मूर्ति क्या दे सकती है. अगर कोई दे सकती है तो आप है आप मुझे आशीर्वाद दीजिये। तभी सास की आँखे खुली वो बहू पढ़ी लिखी थी, तार्किक थी, जागरूक थी, तर्क और विवेक के सहारे बहु ने सास को जाग्रत कर दिया. अगर मानवता की प्राप्ति करनी है तो पहले असहायों, जरुरतमंदों, गरीबो की सेवा करो परिवार, समाज में लोगो की मदद करे.
अंधविश्वास और पाखण्ड को हटाना ही मानव सेवा है. बाकी मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारे, चर्च तो मानसिक गुलामी के केंद्र हैं ना कि ईश्वर प्राप्ति के मानव का सफर पत्थर से शुरु हुआ था। पत्थरों को ही महत्व देता है और आज पत्थर ही बन कर रह गया.
1. चूहा अगर पत्थर का तो उसको पूजता है।(गणेश की सवारी मानकर)
लेकिन जीवित चूहा दिख जाये तो पिंजरा लगाता है और चूहा मार दवा खरीदता है।
2.सांप अगर पत्थर का तो उसको पूजता है।(शंकर का कंठहार मानकर)
लेकिन जीवित सांप दिख जाये तो लाठी लेकर मारता है और जबतक मार न दे, चैन नही लेता।
3.बैल अगर पत्थर का तो उसको पूजता है।(शंकर की सवारी मानकर)
लेकिन जीवित बैल(सांड) दिख जाये तो उससे बचकर चलता है ।
4.कुत्ता अगर पत्थर का तो उसको पूजता है।(शनिदेव की सवारी मानकर)
लेकिन जीवित कुत्ता दिख जाये तो 'भाग कुत्ते' कहकर अपमान करता है।
5. शेर अगर पत्थर का तो उसको पूजता है।(दुर्गा की सवारी मानकर)
लेकिन जीवित शेर दिख जाये तो जान बचाकर भाग खड़ा होता है।
लेकिन जीवित चूहा दिख जाये तो पिंजरा लगाता है और चूहा मार दवा खरीदता है।
2.सांप अगर पत्थर का तो उसको पूजता है।(शंकर का कंठहार मानकर)
लेकिन जीवित सांप दिख जाये तो लाठी लेकर मारता है और जबतक मार न दे, चैन नही लेता।
3.बैल अगर पत्थर का तो उसको पूजता है।(शंकर की सवारी मानकर)
लेकिन जीवित बैल(सांड) दिख जाये तो उससे बचकर चलता है ।
4.कुत्ता अगर पत्थर का तो उसको पूजता है।(शनिदेव की सवारी मानकर)
लेकिन जीवित कुत्ता दिख जाये तो 'भाग कुत्ते' कहकर अपमान करता है।
5. शेर अगर पत्थर का तो उसको पूजता है।(दुर्गा की सवारी मानकर)
लेकिन जीवित शेर दिख जाये तो जान बचाकर भाग खड़ा होता है।
पत्थर से इतना लगाव क्यों और जीवित से इतनी नफरत क्यों? सच हे हम मंदिरों में हजारो रूपये चड़ा देते हे, बहुत सा दान दे देते हे. लेकिन उसी मंदिर के बाहर गरीब भूख और सर्दी से मर जाता हे उसका क्या. भगवान की मूर्ति कुछ खा नहीं सकती लेकिन बाहर तड़पता इंसान जरुर कुछ खा सकता हे. किसी ने सही ही कहा हे की मंदिर-मस्जिद के अंदर चादरे चडती रही और बाहर एक गरीब सर्दी से मर गया. हमें अपनी सोच को बदलना होगा और जरूरतमन्दो की मदद के लिए आगे आना होगा.
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