ओज क्या है या तेज़ का अर्थ oj meaning in hindi shakti
31 January 2016
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मनुष्य शरीर में जो वीर्य बनता है। वीर्य के संयम से मानव देह में एक अदभुत अलोकिक शक्ति उत्पन्न होती है जिसको सम्मोहन भी कहते हे चहरे पर चमक लालिमा लिए हुए जो तेज़ प्रकाश मान चमक होती हे। जिसे प्राचीन कलिक वैद्य धन्वंतरि ने ‘ओज’ नाम दिया है, शास्त्रो में बल भी कहा गया है। इससे वाणी में बल, अपने कार्यो में उत्साह युक्त यह सब वीर्य के सयोग व नियमन से होता हे।
उर्जयति बलं वर्धयति प्राणान् वा धारयीत्योजः।
'शरीर की ऊर्जा व बल बढ़ाने वाले, प्राणों को धारण करने वाले पदार्थ को वीर्य कहते हैं।'
ओज सप्तधातुओं का उत्कृष्ट सार भाग है। जिस प्रकार मधुमक्खियों द्वारा फूलों से एकत्रित किये रस से शहद का निर्माण होता है, उसी प्रकार रस-रक्तादि धातुओं के निर्माण के समय उत्पन्न सारभूत भाग से ओज का निर्माण होता है। दूध में अदृश्य रूप में घी निहित रहता है, वैसे ही संपूर्ण शरीर में ओज व्याप्त रहता है। इसका मुख्य स्थान हृदय है। ओज के ही कारण मनुष्य सभी प्रकार के कार्य करने में समर्थ होता है। ओज कारण है व बल उसका कार्य है। जितन ओज अधिक उतना वर्ण और स्वर उत्तम रहता है तथा मन, बुद्धि व इन्द्रियाँ अपना कार्य करने में उत्तम रूप से प्रवृत्त होती हैं। ओजस्वी व्यक्ति धीर, वीर, बुद्धिमान, बलवान और हर क्षेत्र में यशस्वी होता है। व्याधि-प्रतिकार की क्षमता ओज पर निर्भर होती है।(यहाँ देखे खाना खाने के तरीके जरूरी है भोजन नियम)
ओज के गुणः ओज सौम्य, स्निग्ध, शीत, मृदु, प्रसन्न आदि 10 गुणों से युक्त है।
मद्य के उष्ण, तीक्षण, अम्लादि 10 गुण ओज के 10 गुणों से पूर्णतः विरूद्ध होने के कारण मद्यपान से ओज का शीघ्र नाश हो जाता है। गाय के घी के सभी गुण ओज के गुणों के समान हैं जिससे ओज की शीघ्र वृद्धि होती है।
ओजक्षय के कारण -
ओजक्षय के लक्षणः
उर्जयति बलं वर्धयति प्राणान् वा धारयीत्योजः।
'शरीर की ऊर्जा व बल बढ़ाने वाले, प्राणों को धारण करने वाले पदार्थ को वीर्य कहते हैं।'
ओज सप्तधातुओं का उत्कृष्ट सार भाग है। जिस प्रकार मधुमक्खियों द्वारा फूलों से एकत्रित किये रस से शहद का निर्माण होता है, उसी प्रकार रस-रक्तादि धातुओं के निर्माण के समय उत्पन्न सारभूत भाग से ओज का निर्माण होता है। दूध में अदृश्य रूप में घी निहित रहता है, वैसे ही संपूर्ण शरीर में ओज व्याप्त रहता है। इसका मुख्य स्थान हृदय है। ओज के ही कारण मनुष्य सभी प्रकार के कार्य करने में समर्थ होता है। ओज कारण है व बल उसका कार्य है। जितन ओज अधिक उतना वर्ण और स्वर उत्तम रहता है तथा मन, बुद्धि व इन्द्रियाँ अपना कार्य करने में उत्तम रूप से प्रवृत्त होती हैं। ओजस्वी व्यक्ति धीर, वीर, बुद्धिमान, बलवान और हर क्षेत्र में यशस्वी होता है। व्याधि-प्रतिकार की क्षमता ओज पर निर्भर होती है।(यहाँ देखे खाना खाने के तरीके जरूरी है भोजन नियम)
ओज के गुणः ओज सौम्य, स्निग्ध, शीत, मृदु, प्रसन्न आदि 10 गुणों से युक्त है।
मद्य के उष्ण, तीक्षण, अम्लादि 10 गुण ओज के 10 गुणों से पूर्णतः विरूद्ध होने के कारण मद्यपान से ओज का शीघ्र नाश हो जाता है। गाय के घी के सभी गुण ओज के गुणों के समान हैं जिससे ओज की शीघ्र वृद्धि होती है।
ओजक्षय के कारण -
- अति मैथुन
- अति व्यायाम
- अत्यधिक उपवास
- अल्प व रूक्ष भोजन
- भय, शोक, चिंता
- जागरण, तीव्र वायु
- धूप का सेवन,
- कफ
- रक्त
- शुक्र अथवा मल का अधिक मात्रा में बाहर निकल जाना
ओजक्षय के लक्षणः
ओजक्षय के कारण मनुष्य भयभीत व चिंतित रहता है। उसकी इन्द्रियों की कार्यक्षमता घट जाती है तथा वर्ण, स्वर बदल जाते हैं। वह निस्तेज, बलहीन व कृश हो जाता है। ओज का अधिक क्षय होने पर प्रलाप, मूर्च्छा व मृत्यु तक हो जाती है।
ओजवर्धक पदार्थः
ओजवृद्धि का मुख्य कारण मन की प्रसन्नता व निर्द्वन्दता (समता) है। इसकी प्राप्ति तत्त्वज्ञान से होती है।
मधुर, स्निग्ध, शीतवीर्य, हितकर व मनोनुकूल आहार तथा सुखशीलता ओजवर्धक है।
आँवला, अश्वगंधा, यष्टिमधु, जीवन्ती (डोडी), गाय का दूध व घी, अंगूर, तुलसी के बीज, सुवर्ण आदि रसायन द्रव्य उत्कृष्ट् ओजवर्धक हैं। ब्रह्मचर्य परम ओजवर्धक है।
ओजवर्धक पदार्थः
ओजवृद्धि का मुख्य कारण मन की प्रसन्नता व निर्द्वन्दता (समता) है। इसकी प्राप्ति तत्त्वज्ञान से होती है।
मधुर, स्निग्ध, शीतवीर्य, हितकर व मनोनुकूल आहार तथा सुखशीलता ओजवर्धक है।
आँवला, अश्वगंधा, यष्टिमधु, जीवन्ती (डोडी), गाय का दूध व घी, अंगूर, तुलसी के बीज, सुवर्ण आदि रसायन द्रव्य उत्कृष्ट् ओजवर्धक हैं। ब्रह्मचर्य परम ओजवर्धक है।
Hi p
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