चाह नहीं, मैं सुरबाला के.. पुष्प की अभिलाषा - पं० माखनलाल चतुर्वेदी pushp ki abhilasha lyrics in hindi
27 November 2015
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बचपन की ये कविता भूलें नहीं भूलती ।
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चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
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