कविता पूछा नही परिंदों से..Poem For Freedom Birds
कहते हे उड़ते हुए पंछी आसमान की शोभा बढाते हे. इन पंछियों का तो क्या कहना. इन्ही पर आधारित एक कविता हे जो इनका हाल बयाँ करती हे. आईये जानते हे उस कविता के बारे में.
Poem For Freedom Birds
अमन-चैन को रोज उड़ाते पूछा नही परिंदों से,
की जग में जीते हैं कैसे पूछा नही परिंदों से.
सारा जहाँ उनका है अपना कोई नही है सीमा बंधन,
उन्होंने तय किया है कैसे पूछा नही परिंदों से.
नाम दिए है हमने उनके नही पराया उनका कोई,
हिल-मिलकर रहते है कैसे पूछा नही परिंदों से.
अल-सवेरे कलख करते शाम ढले घर को आते हैं,
घड़ी नही हैं, करते कैसे पूछा नही परिंदों से.
धुप कभी तो छाव कभी है एक सरीखे घाव नही हैं,
मिलकर सब सहते है कैसे पूछा नही परिंदों से.
कल का किया जुगाड़ नही था आज-अभी मस्ती में रहते,
कल का क्या, चहकते कैसे पूछा नही परिंदों से.
इस कोने से उस कोने तक महा मौन की भाषा में,
अभिव्यक्त करते हैं कैसे पूछा नही परिंदों से.
अमन-चैन को रोज उड़ाते पूछा नही परिंदों से,
की जग में जीते हैं कैसे पूछा नही परिंदों से.
सारा जहाँ उनका है अपना कोई नही है सीमा बंधन,
उन्होंने तय किया है कैसे पूछा नही परिंदों से.
नाम दिए है हमने उनके नही पराया उनका कोई,
हिल-मिलकर रहते है कैसे पूछा नही परिंदों से.
अल-सवेरे कलख करते शाम ढले घर को आते हैं,
घड़ी नही हैं, करते कैसे पूछा नही परिंदों से.
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धुप कभी तो छाव कभी है एक सरीखे घाव नही हैं,
मिलकर सब सहते है कैसे पूछा नही परिंदों से.
कल का किया जुगाड़ नही था आज-अभी मस्ती में रहते,
कल का क्या, चहकते कैसे पूछा नही परिंदों से.
इस कोने से उस कोने तक महा मौन की भाषा में,
अभिव्यक्त करते हैं कैसे पूछा नही परिंदों से.
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