मजदूर सुमित बन गए अब कलेक्टर बिना कोचिंग पहली ही बार में Uppsc topper Sumit Vishwakarma self study biography hindi
8 April 2019
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IAS Sumit Vishwakarma from Seoni mp 29 साल के सुमित कुमार विश्वकर्मा ने यूपीएससी की परीक्षा में सेल्फ स्टडी से पहले ही प्रयास में 53वीं रैंक हासिल की। उनकी संघर्षगाथा अभावग्रस्त जिंदगी के बावजूद कुछ कर गुजरने का जज्बा रखने वाले युवाओं के लिए प्रेरणा बन सकती है। कल तक उनके हाथ में मकान के निर्माण कार्य मे इस्तेमाल होने वाली कन्नी हुआ करती थी। पिछले दस वर्षों से ये कन्नी ही राह के कांटें साफ कर रही थी।
दिन में हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद देर रात तक पढ़ाई और सुबह दो घंटे रिवीजन के बाद फिर काम पर निकल जाने वाली दिनचर्या इतनी सरल भी नहीं होती। मगर सुमित के लिए ये सब उनके सपने को पूरा करने का माध्यम था। बकौल सुमित पिता के साथ बचपन से ही राजगीर मिस्त्री का काम सीख गया था। इसमें पैसा भी ठीक मिलता था। एक से दो सप्ताह काम कर बाकी समय पढ़ाई कर सकता था। दूसरी कोई नौकरी करता तो ऐसा नहीं कर पाता।
मजे की बात तो यह है कि इस मुकाम को हासिल करने के लिए सुमित ने कोई कोचिंग भी नही की। सुमित मिसाल है उन लोगों के लिए, जो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। अपने मिस्त्री पिता के साथ पहले मजदूरी, फिर बेलदारी और फिर मिस्त्री का हुनर सीखने वाले सुमित ने सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और कैंपस में सिलेक्शन भी पाया। पर सुमित के भाग्य में तो कुछ और ही लिखा था। एमपीपीएससी की परीक्षा दी तो प्री तक नहीं निकला। लेकिन फिर नए उत्साह के साथ तैयारी शुरू की।
पिछले चार साल से यूपीएससी की तैयारी कर रहे सुमित ने इस बार ऐसी बाजी मारी कि उसके जज्बे की कहानी सुनकर इंटरव्यू लेने वाले पैनल के हर सदस्य को दांतों तले उँगली दबाने मजबूर होना पड़ा। 45 मिनिट का इंटरव्यू पूरे एक घण्टे तक चला। पैनलिस्ट के हर एक सवाल का सुमित ने सटीक जवाब दिया। आखिरी सवाल था ओके का फुल फॉर्म क्या होता है...बेहद ही सादगी के साथ सुमित ने जवाब दिया ऑबजेक्शन किल्ड। इस जवाब के साथ ही सुमित ने भी आखिरकार अपने ऑब्जेक्शन (लक्ष्य) को किल्ड (पूरा करना) कर ही लिया। नतीजे आने के बाद सुमित के पिता विष्णु कुमार खुद पर गर्व करके फूले नही समा रहे।
सुमित ने यूपीएससी की परीक्षा में सेल्फ स्टडी से पहले ही प्रयास में 53वीं रैंक हासिल की
29 साल के सुमित सिवनी जिले के बम्हौरी गांव के रहने वाले हैं। दो भाईयों में बड़े हैं। दो महीने पहले ही शादी हुई है। घर में पिता के अलावा मां हैं। 250 मतदाताओं वाले उनके गांव में पेयजल का बड़ा संकट है। ठंड में ही हैंडपम्प जवाब दे जाते हैं। फिर एक किमी दूर कुएं से पानी भरना पड़ता है। 20 वर्ष पहले पिता की अंगुली पकड़े वे नए सपनों के साथ जबलपुर पहुंचे। यहां गुलौआ स्थित शासकीय स्कूल से पांचवीं की पढ़ाई की। छठवीं से आठवीं दूसरे शासकीय स्कूल में पढ़े। फिर किस्मत ने करवट बदली और गांव जाना पड़ा। कारण बना बाबा की बीमारी। मेहता स्थित स्कूल नौंवी व दसवीं की तो कहानी से 12वीं की पढाई। इसके बाद फिर जबलपुर आ गए। आइटीआइ की बन रही बिल्डिंग में काम किया और प्रवेश भी ले लिया। इसके बाद निजी इंजीनियरिंग कॉलेज से बीई की पढ़ाई पूरी।
सुमित का बीई पढ़ाई के दौरान ही पावर प्लांट में कैम्पस सलेक्शन हो गया। दो महीने नौकरी भी की। तभी अचानक घर के हालात के चलते बिना अवकाश लिए छुट्टी पर चले गए। दो महीने बाद पहुंचे तो हाथ में टर्मिनेशन लेटर था। निराशा के इस भंवर में बुआ के लडक़े मनीष विश्वकर्मा उनकी जिंदगी की डगमगा रही नैय्या के खेवईया बने। फारेस्ट विभाग में कार्यरत मनीष ने प्रेरित किया कि तुम सरकारी जॉब के लिए बने हो, एक बार सेलेक्शन हो गया तो कोई नहीं निकाल पाएगा। पिछले चार साल खुद को झोंक दिया। दिन में मिस्त्री का काम कर रात में पांच घंटे तो सुबह ढाई घंटे की नियमित सेल्फ स्टडी चालू की। 13 मार्च को उनका दिल्ली में इंटरव्यू था। अधिकतर सवाल खुद से जुड़े थे। बेबाकी से जवाब देकर सुनिश्चित कर लिया कि परिश्रम का कोई विकल्प नहीं होता है।
उधर, आईपीएस बनने, छोड़ दी एक लाख सैलरी वाली नौकरी
अधारताल न्यू रामनगर निवासी 23 वर्षीय अभिनय विश्वकर्मा ने पहले ही प्रयास में यूपीएससी सिविल सर्विसेज में 196वीं रैंक हासिल कर ली। अभिनय ने आईपीएस बनने का सपना पूरा करने के लिए एक लाख रुपए महीने की जॉब छोड़ दी थी। इंटरव्यू में पहुंचे तो सवाल पुलवाम अटैक से जुड़ा था। पैनलिस्ट ने पूछा कि अगर आप वहां पदस्थ होते तो, प्रशासनिक अधिकारी के रूप में क्या कदम उठाते? अभिनय के जवाब प्रभावित करने वाले थे। दिल्ली में रहकर प्रिपरेशन की और रोज 15 से 18 घंटे पढ़ाई की। बकौल अभिनय परीक्षा पास करना कठिन नहीं है, जरूरी है कि आप कितने समर्पित हैं। यदि आप अपना सौ प्रतिशत देंगे तो सफलता जरूर मिलेगी। सोशल मीडिया से दूर रहते हुए, सिर्फ अपने पैरेंट्स और भाइयों से ही बात करता, जो मुझे हमेशा मोटीवेट करते थे।
दिन में हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद देर रात तक पढ़ाई और सुबह दो घंटे रिवीजन के बाद फिर काम पर निकल जाने वाली दिनचर्या इतनी सरल भी नहीं होती। मगर सुमित के लिए ये सब उनके सपने को पूरा करने का माध्यम था। बकौल सुमित पिता के साथ बचपन से ही राजगीर मिस्त्री का काम सीख गया था। इसमें पैसा भी ठीक मिलता था। एक से दो सप्ताह काम कर बाकी समय पढ़ाई कर सकता था। दूसरी कोई नौकरी करता तो ऐसा नहीं कर पाता।
बिना कोचिंग पहली ही बार में पाया मुकाम
मजे की बात तो यह है कि इस मुकाम को हासिल करने के लिए सुमित ने कोई कोचिंग भी नही की। सुमित मिसाल है उन लोगों के लिए, जो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। अपने मिस्त्री पिता के साथ पहले मजदूरी, फिर बेलदारी और फिर मिस्त्री का हुनर सीखने वाले सुमित ने सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और कैंपस में सिलेक्शन भी पाया। पर सुमित के भाग्य में तो कुछ और ही लिखा था। एमपीपीएससी की परीक्षा दी तो प्री तक नहीं निकला। लेकिन फिर नए उत्साह के साथ तैयारी शुरू की।
45 मिनट का इंटरव्यू घंटे भर चला
पिछले चार साल से यूपीएससी की तैयारी कर रहे सुमित ने इस बार ऐसी बाजी मारी कि उसके जज्बे की कहानी सुनकर इंटरव्यू लेने वाले पैनल के हर सदस्य को दांतों तले उँगली दबाने मजबूर होना पड़ा। 45 मिनिट का इंटरव्यू पूरे एक घण्टे तक चला। पैनलिस्ट के हर एक सवाल का सुमित ने सटीक जवाब दिया। आखिरी सवाल था ओके का फुल फॉर्म क्या होता है...बेहद ही सादगी के साथ सुमित ने जवाब दिया ऑबजेक्शन किल्ड। इस जवाब के साथ ही सुमित ने भी आखिरकार अपने ऑब्जेक्शन (लक्ष्य) को किल्ड (पूरा करना) कर ही लिया। नतीजे आने के बाद सुमित के पिता विष्णु कुमार खुद पर गर्व करके फूले नही समा रहे।
सुमित ने यूपीएससी की परीक्षा में सेल्फ स्टडी से पहले ही प्रयास में 53वीं रैंक हासिल की
फर्श से ऐसे पहुंचे अर्श पर
29 साल के सुमित सिवनी जिले के बम्हौरी गांव के रहने वाले हैं। दो भाईयों में बड़े हैं। दो महीने पहले ही शादी हुई है। घर में पिता के अलावा मां हैं। 250 मतदाताओं वाले उनके गांव में पेयजल का बड़ा संकट है। ठंड में ही हैंडपम्प जवाब दे जाते हैं। फिर एक किमी दूर कुएं से पानी भरना पड़ता है। 20 वर्ष पहले पिता की अंगुली पकड़े वे नए सपनों के साथ जबलपुर पहुंचे। यहां गुलौआ स्थित शासकीय स्कूल से पांचवीं की पढ़ाई की। छठवीं से आठवीं दूसरे शासकीय स्कूल में पढ़े। फिर किस्मत ने करवट बदली और गांव जाना पड़ा। कारण बना बाबा की बीमारी। मेहता स्थित स्कूल नौंवी व दसवीं की तो कहानी से 12वीं की पढाई। इसके बाद फिर जबलपुर आ गए। आइटीआइ की बन रही बिल्डिंग में काम किया और प्रवेश भी ले लिया। इसके बाद निजी इंजीनियरिंग कॉलेज से बीई की पढ़ाई पूरी।
दो महीने की नौकरी गंवायी, फिर कसी कमर
सुमित का बीई पढ़ाई के दौरान ही पावर प्लांट में कैम्पस सलेक्शन हो गया। दो महीने नौकरी भी की। तभी अचानक घर के हालात के चलते बिना अवकाश लिए छुट्टी पर चले गए। दो महीने बाद पहुंचे तो हाथ में टर्मिनेशन लेटर था। निराशा के इस भंवर में बुआ के लडक़े मनीष विश्वकर्मा उनकी जिंदगी की डगमगा रही नैय्या के खेवईया बने। फारेस्ट विभाग में कार्यरत मनीष ने प्रेरित किया कि तुम सरकारी जॉब के लिए बने हो, एक बार सेलेक्शन हो गया तो कोई नहीं निकाल पाएगा। पिछले चार साल खुद को झोंक दिया। दिन में मिस्त्री का काम कर रात में पांच घंटे तो सुबह ढाई घंटे की नियमित सेल्फ स्टडी चालू की। 13 मार्च को उनका दिल्ली में इंटरव्यू था। अधिकतर सवाल खुद से जुड़े थे। बेबाकी से जवाब देकर सुनिश्चित कर लिया कि परिश्रम का कोई विकल्प नहीं होता है।
उधर, आईपीएस बनने, छोड़ दी एक लाख सैलरी वाली नौकरी
अधारताल न्यू रामनगर निवासी 23 वर्षीय अभिनय विश्वकर्मा ने पहले ही प्रयास में यूपीएससी सिविल सर्विसेज में 196वीं रैंक हासिल कर ली। अभिनय ने आईपीएस बनने का सपना पूरा करने के लिए एक लाख रुपए महीने की जॉब छोड़ दी थी। इंटरव्यू में पहुंचे तो सवाल पुलवाम अटैक से जुड़ा था। पैनलिस्ट ने पूछा कि अगर आप वहां पदस्थ होते तो, प्रशासनिक अधिकारी के रूप में क्या कदम उठाते? अभिनय के जवाब प्रभावित करने वाले थे। दिल्ली में रहकर प्रिपरेशन की और रोज 15 से 18 घंटे पढ़ाई की। बकौल अभिनय परीक्षा पास करना कठिन नहीं है, जरूरी है कि आप कितने समर्पित हैं। यदि आप अपना सौ प्रतिशत देंगे तो सफलता जरूर मिलेगी। सोशल मीडिया से दूर रहते हुए, सिर्फ अपने पैरेंट्स और भाइयों से ही बात करता, जो मुझे हमेशा मोटीवेट करते थे।
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