महावीर स्वामी जीवन परिचय कहानी | Biography of mahavir swami in hindi


Mahavir swami story in english bhagwan mahavir jivan charitra jeevan parichay bhagwan mahavir life history mahavir swami wikipedia quotes story in gujarati images  जैन धर्म Jain dharm ki jankari में महावीर स्वामी वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौंबीसवें 24वें तीर्थंकर है जैन धर्म के मतानुसार Mahavir Swami से पूर्व 23 तीर्थकर हुए थे तीर्थकर Meaning अपने अपने समय के महान समाज सुधारक उन सभी जैन तीर्थकर में महावीर स्वामी भी एक तीर्थकर थे हमे कमेंट्स कर बताये अगर पता हो तो भगवान महावीर के सिद्धांत महावीर की प्रमुख शिक्षाएं क्या थी भगवान महावीर की दीक्षा महावीर स्वामी के नाना का नाम
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थकर थे आपके मन में एक सवाल उठ रहा होगा की आखिर ये तीर्थकर क्या होते है तो मै आपको बता दू की तीर्थकर मतलब संसार रूपी सागर से तारने वाले होते है! महावीर स्वामी के बाद तीर्थकर की परम्परा खत्म हो जाती है! महावीर स्वामी के बाद आचार्य के द्वारा जैन धर्म की परम्परा का निर्वाह किया जाता रहा है!
   Biography of mahavir swami mahavir jayanti 
जन्म - चैत्र शुक्ल त्रयोदशी (करीब ढाई हजार साल पहले हुआ था)
जन्म स्थान - कुंडलग्राम, वैशाली के निकट
मोक्ष -कार्तिक अमावस्या मोक्ष स्थान पावापुरी, जिला नालंदा, बिहार
पिता का नाम राजा सिद्धार्थ, माता का नाम त्रिशला था

जब महावीर स्वामी का जन्म हुआ उसके बाद उनके पिता जी के धन धान्य आदि में बहुत वृद्धि हुई इसलिए महावीर स्वामी का नाम वर्द्धमान रखा गया उनको वर्द्धमान महावीर भी कहा जाता था महावीर स्वामी बल और विक्रम में संसार में अजेय माने जाते थे इसलिए वह महावीर नाम से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गए महावीर स्वामी जैन धर्म के प्रवर्तक रहे है इस कारण भारतीय जनमानस में उनका प्रमुख्य स्थान है

राजघराने में जन्मे वर्द्धमान महावीर का बचपन एक राजकुमार की तरह ब्यतीत हुआ! उनके पिता ने उनके लिए हर एक साधन की ब्यवस्था घर पर ही कर रखी थी! अल्पायु में ही वर्द्धमान की शिछा शुरु हो गयी थी! और बहुत ही जल्दी वह सभी विधाओ और कलायो में पारंगत हो गए! वर्द्धमान का विवाह यशोदा नामक एक राजकुमारी के साथ हुआ! लेकिन वर्द्धमान का मन घर परिवार में नहीं लगता था! लेकिन इसके बाद भी वह प्रजा , राज्य और परिवार के प्रति अपने कर्तव्य से उदासीन भी नहीं रहते थे! लेकिन उनकी किस्मत ने उनके लिए कुछ और भी सोच रखा था! इस कारण वह आध्यत्म की ओर कुछ विशेष रूचि रखते थे

अपने माता पिता की मौत के बाद 30 साल की आयु में वर्द्धमान ने अपने बड़े भाई नंदीवर्द्धमान की अनुमति लेकर गृहस्थी से नाता तोड़कर यति धर्म ग्रहण कर लिया! यति धर्म उनसे पूर्व तीर्थकरो द्वारा प्रतिपादित जैन धर्म ही था! फिर वह दीछा ग्रहण कर 12 साल तक कठोर तप में लीन हो गए! उसके बाद उनको सत्य की अनुभूति हुई! और वह कैवल्य पद को प्राप्त हो गए! महवीर स्वामी सांसारिक दुःख , मोह , शोकादि से हमेशा के लिए मुक्त हो गए! केवल आनंद और अलौकिक सुख की अनुभूति ही ” कैवल्य” है! यही साधना की अंतिम उचाई है ! जैन धर्म के इस विराट कैवल्य को महावीर स्वामी ने प्राप्त किया! एक वीतरागी ही राजमहल के बैभव को त्याग कर सकता था! महावीर स्वामी ने यही किया!

महावीर स्वामी से 250 वर्ष पूर्व एक तीर्थकर हुए थे! जैन धर्म के अनुसार तीर्थकर समय के सदगुरु है! वह जन्मजाति ज्ञानी होते है! और संसार के जीवो को कल्याण की दीछा देने के लिए पैदा होते है! इसलिय वह जगतगुरु कहलाते है! कैवल्य पद तो उनके अन्य शिष्य भी प्राप्त कर लेते है! परन्तु तीर्थकर अन्य नहीं हो सकते है! कैवल्य पद प्राप्त करने के बाद महवीर स्वामी तीर्थकर बन गए! महावीर स्वामी को केवल जैन धर्म के लोग ही नहीं बल्कि हर मानवतावादी ब्यक्ति भी ईश्वर के समकछ मनाते थे!

एक तीर्थकर के लिए सारा संसार एक समान होता है! वह संसार के दुखी मानव को सुख शांति देकर उनका उद्धार करना चाहता है! इसी प्रकार Mahavir Swami अब स्व- अनुभूत ज्ञान के प्रचार में जुट गए! उनके उपदेशो का प्रचार साधारण ब्यक्ति से लेकर राज परिवार तक समान रूप से हुआ! राजा महाराजा भी उनके प्रचारित धर्म से दिछित हुए! अंग , मगध , आदि राज्यों के अधिपतियो ने उनसे ज्ञान ग्रहण किया! महावीर स्वामी ने सभी जाति और धर्म के लिए अपने ज्ञान के द्वारा को समान रूप से खोल दिया! जैन धर्म को अनेक लोगो ने अपनाकर अपना जीवन धन्य किया!


Mahavir Swami के शासन काल में सर्वत्र ज्ञान का प्रचार प्रसार हुआ! जैन धर्म ग्रंथो के अनुसार महावीर स्वामी के शासन काल में गौतम प्रमुख्य 14 हजार साधु , चंदनबाला प्रमुख्य 36 हजार साधुविया , आनंद प्रमुख्य एक लाख 59 हजार उपासक तथा जयंती प्रमुख्य 3 लाख 18 हजार उपासिकाय थी! महवीर स्वामी के 11 हजार गणधर केवली थे! जो उनके प्रधान शिष्य थे! हम कह सकते है की जैन धर्म का प्रचार प्रचार महावीर स्वामी के समय में सबसे ज्यादा हुआ! पीड़ित मानवता को जैन धर्म ने बहुत अधिक सहायता प्रदान किया!

जैन धर्म का ब्यापक प्रचार करने के बाद 527 में 72 वर्ष की आयु में पावापुरी में Mahavir Swami ने निर्वाण प्राप्त किया! राजगीर के समीप पवानगर आज भी जैन धर्म के लोगो का एक बहुत बड़ा तीर्थ स्थल है! यह स्थान बिहार शरीफ रेलवे स्टेशन से लगभग 10 k.m. दूर है! यंहा पर जैन धर्म के लाखो अनुयाई हर साल उनके दर्शन के लिए आते है! जैन धर्म का हर एक अनुयायी इस तीर्थ स्थल का दर्शन करना अपने जीवन का सौभाग्य समझता है!

सैकड़ो वर्ष पूर्व शरीर त्याग देने पर भी भगवान महावीर के दिव्य सन्देश आज भी हमारा मार्गदर्शन कर रहे है! महावीर स्वामी ने संसार को शांति और अहिंसा की राह दिखाई , जो सबके लिए इस अशांत युग में अनुकरणीय है! बेशक जैन धर्म ईश्वर प्राप्ति एवं सत्कर्म करने का एक पंथ है! लेकिन महावीर स्वामी ने एक दिव्यात्मा के रूप में सत्य अहिंसा और और सभी प्राणी से प्रेम करने का सन्देश भी प्रदान किया है! महावीर की शिछाये और उपदेश इस पृथ्वी के कायम रहने तक लोगो के लिए प्रेरणास्रोत बनी रहेगी

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