कैसे द्रोपदी हुयी पांच पांडवों को पत्नी..Dropdi’S History
29 December 2016
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तथापि द्रौपदी के प्रति यूशिष्ठीर के आकर्षण को भी भापकर अर्जुन ने तत्काल उत्तर दिया,'एक ज्येष्ठतम भाई के अभी तक अविवाहित रहने पर एक कनिष्ठ भाई द्वारा विवाह करना घोर अधर्म का कार्य होगा. उस पाप से मेरी रक्षा कीजिए. विवाह करने का उचित क्रम होगा: प्रथम आप, दूसरा भीम और फिर मैं और मेरे बाद नकुल और सहदेव. उस रूप में निर्णय कीजिए, जो धर्म का अथवा हमारे परिवार का उल्लंघन न करे और जो बात पांचाल साम्राज्य के हित में हो, उसे भी ध्यान में रखिए, आपके निर्णय का हम सभी पालन करेंगे. कृष्ण (द्रौपदी) के साथ हम सभी आपके नियंत्रण में है.
द्रौपदी के कारण भाइयो के बीच एकता भंग होने के भय से युधिष्ठिर ने त्वरित गति से निर्णय ले लिया, 'द्रौपदी हमारी पत्नी होगी, हम सभी पांच भाइयो की पत्नी.'द्रौपदी से किसी ने भी यह नही पूछा की इस विषय में उनकी क्या भावनाए हैं और उनके क्या विचार हैं? उसके सम्बंध में लिए गए निर्णय को उसने बिना किसी विरोध के स्वीकार कर लिया और ऐसा प्रतीत होता था कि उसके मन में अप्रसन्नता अथवा ऐसी कोई अन्य भावना नही थी. इसके पश्चात त्वरित अंतराल में दो घटनाए घटित हुई, जो पांडवो के लिए पर्याप्त रूप से भावी महत्व की थी.
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प्रथम घटना थी
कृष्ण का अपने भाई बलराम के साथ पधारना; और उसके पश्चात पांडवो का द्रौपदी के साथ उसके पिता सम्राट द्रुपद के पास जाना. कृष्ण पधारे और उन्होंने इस साधारण शब्दो में पांडवो को अपना परिचय दिया, 'मैं कृष्ण हु. ' उन्होंने अपनी बुआ कुंती को प्रणाम किया. उसके पशचात युधिष्ठिर ने उनसे प्रशन किया, 'हम यहाँ छझ वेश में रह रहे हैं आपने हमे कैसे पहचान लिया?' आकर्षक शब्दो में दिया गया उत्तर था,'अग्नि चाहे, जिस रूप में स्वयं को छिपाए, फिर भी वह त्वरित गति से प्रकाश में आ जाएगी. पांडवो के अलावा मनुष्यो में कौन ऐसा होगा, जिसने उस अवस्था को प्राप्त किया है? यह बड़े सौभाग्य की बात थी की आप उन दुष्ट कौरवों के द्वारा आपके लिए अग्नि में जलकर भस्म होने की योजना से बचकर निकल आए हैं. हमारे यहाँ आने के कारण कहि कोई आपको पहचान न ले, अतः हम आपसे विदा लेंगे. 'द्रौपदी द्वारा इन सभी के साथ विवाह करने की बात कृष्ण और बलराम को नही बताई गई थी.
कृष्ण का अपने भाई बलराम के साथ पधारना; और उसके पश्चात पांडवो का द्रौपदी के साथ उसके पिता सम्राट द्रुपद के पास जाना. कृष्ण पधारे और उन्होंने इस साधारण शब्दो में पांडवो को अपना परिचय दिया, 'मैं कृष्ण हु. ' उन्होंने अपनी बुआ कुंती को प्रणाम किया. उसके पशचात युधिष्ठिर ने उनसे प्रशन किया, 'हम यहाँ छझ वेश में रह रहे हैं आपने हमे कैसे पहचान लिया?' आकर्षक शब्दो में दिया गया उत्तर था,'अग्नि चाहे, जिस रूप में स्वयं को छिपाए, फिर भी वह त्वरित गति से प्रकाश में आ जाएगी. पांडवो के अलावा मनुष्यो में कौन ऐसा होगा, जिसने उस अवस्था को प्राप्त किया है? यह बड़े सौभाग्य की बात थी की आप उन दुष्ट कौरवों के द्वारा आपके लिए अग्नि में जलकर भस्म होने की योजना से बचकर निकल आए हैं. हमारे यहाँ आने के कारण कहि कोई आपको पहचान न ले, अतः हम आपसे विदा लेंगे. 'द्रौपदी द्वारा इन सभी के साथ विवाह करने की बात कृष्ण और बलराम को नही बताई गई थी.
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