तोते को मिल गया उत्तर Best Osho Story On How To Live a Life
11 October 2016
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Osho Story on Life in Hindi
इस कहानी में ओशो (Osho) जीवन जीने की कला के बारे में बता रहे हैं, जीवन में आने वाली परेशानियों, दुखों से छुटकारा कैसे पाये, इस पर ओशो का सीधा सा जवाब हैं - जीवन भी एक नदी के तरह हैं उसके खिलाफ बहने की चाह मत रखो, उसके बहाव के साथ बहो फिर न कोई दुःख होगा न कोई परेशानी - आइये आगे पढ़िए यह कहानी.
ऐसे जियें जैसे है ही नहीं। हवाओं की तरह , पत्तों की तरह, पानी की तरह, बादलों की तरह।
एक पंडित था। बहुत शास्त्र उसने पढे थे। बहुत शास्त्रों का ज्ञाता था उसने एक तोता भी पाल रखा था। पंडित शस्त्र पढता था, तोता भी दिन-रात सुनते-सुनते काफी शस्त्र सीख गया था। क्योंकि शस्त्र सीखने में तोते जैसी बुद्धि आदमी में हो, तभी आदमी भी सीख पाता है। सो तोता खुद ही था। पंडित के घर और पंडित भी इकट्ठे होते थें, शास्त्रों की चर्चा चलती थी। तोता भी काफी निष्णांत हो गया। तोतों में यह भी खबर हो गई की वह तोता पंडित हो गया।
फिर गांव में एक बहुत बडे साधु का एक महात्मा का आना हुआ। नदी के बाहर वह साधु आकर ठहरा था। पंडित के घर में भी चर्चा आई वे सब मित्र उनके सत्संग करने वाले, सारे लोग उस साधु के पास जाने को तैयार हुए। कुछ जिज्ञासा से जब वे घर से निकलने लगे तो उस तोते ने कहा - मेरी भी एक प्रार्थना है, महात्मा से पूछना, मेरी आत्मा भी मुक्त होना चाहती है, मैं क्या करूं ? मैं कैसे हो जाउं कि मेरी आत्मा मुक्त हो जाये ?
सो उन पंडितों ने कहा कि ठीक हैं हम जरूर तुम्हारी जिज्ञासा भी पुछ लेंगे। वे नदी पर पहुंचे तब वह महात्मा नग्न नदि पर स्नान कर रहा था। वह स्नान करता जा रहा था। घाठ पर ही वे खडे हो गये और उन्होंने कहा हमारे पास एक तोता हैं वह बडा पंडित हो गया है। उस महात्मा ने कहा इसमें कोई भी आश्चर्य नही हैं सब तोते पंडित हो सकते है, क्याकि सभी पंडित तोते होते है। हो गया होगा फिर क्या ? उन मित्रों ने कहा उसने यह जिज्ञासा कि हैं कि मैं कैसा हो जांउ, मैं क्या करूं कि मेरी आत्मा मुक्त हो सके ?
यह पुछना ही था की वह महात्मा जो नहा रहा था, उसकी आंख बंद हो गई जैसे वह बेहोश हो गया हो सके हाथ-पैर शिथिल हो गये, धार थी तेज थी, नदी उसे बहा ले गई । वे तो खउे रहे गये चकित, उत्तर तो दे ही नहीं पाया वह और यह क्या हुआ, उसे चक्कर आ गया, गश्त आ गया, मुर्छा आ गई क्या हो गया ?
नदी की तेज धार थी, कहां नदी उसे ले गई, कुछ पता नहीं । वे बडे दुखी घर वापस लौटे, कई दफा मन में भी हुआ इस तोते ने खुब प्रश्न पुछवाया कोई अपशुकन तो नहीं हो गया, घर से चलते वक्त मूहूर्त ठीक था या नहीं ? यह प्रश्न कैसा था, कहीं प्रश्न में कुछ गडबड तो नही थी | हो क्या गया महात्मा को, वे सब दुखी घर लौटे तोते ने उनसे आते ही पूछा - मेरी बात पुछी थी ?
उन्होंने कहा - पुछा था, और बडा अजीब हुआ, उत्तर देने के पहले ही महात्मा का तो देहांत हो गया, वे तो एकदम बेहोश हो गये, मृत हो गये, नदी उन्हें बहा ले गई, उत्तर नहीं दे पाये वह। इतना कहना था कि तोते की आंख बन्द हो गईं। वह फडफडाया और पिंजरे में गिरकर मर गया। तब तो निश्चित हो गया, उस प्रश्न में ही कोई खराबी है।
दो हत्याएं हो गई, व्यर्थ ही। तोता मर गया था। द्वार खोलना पडा, तोते के पिंजरे का द्वार खुलते ही वह हैरान हो गये तोता उडा और सामने के वृक्ष पर जाकर बैठ गया और हंसा उसने कहा कि उत्तर तो उन्होंने दिया लेकिन तुम समझ नही सके। मैं समझ गया उनकी बात और मैं मुक्त भी हो गया तुम्हारें पिंजरे के बाहर हो गया। अब तुम भी ऐसा ही करो तो तुम्हारी आत्मा भी मुक्त हो सकती है।
ओशो - मैं यही कहना चाहता हूं कि ऐसे जिएं जैसे है ही नहीं, हवाओं की तरह, पत्तों की तरह, पानी तरह, बादलों की तरह, जैसा हमारा कोई होना नहीं है। जैंसे मैं नही हूं। जितनी गहराई में ऐसा जीवन प्रकट होगा उतनी गेहराई में मुक्ति निकट आ जाती है। इस तरह जिएं जैसे हैं ही नहीं। बस साधना का इससे ज्यादा गहरा कोई सुत्र नहीं है। अपने आपको Surrender कर दें फिर देखें चरों और से आनंद की फुहारें आने लगेगी
मेरा नाम - Parul Agrawal ,मेरा ब्लॉग - http://hindimind.in (Stories Site)
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