न्यूज़ चेनलो का बढ़ता व्यापर news channel reality india
12 August 2021
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Live news channel hindi online updates - आज हम आपको एक ऐसा सच बताने जा रहे हे क्या आपको पता है टीवी चेन्नल्स में सबसे ज्यादा अगर कोई कमाई करने में टॉप है तो वह है न्यूज़ चेनल कैसे तो देखे - नाम भी इज़्ज़त भी और कमाई भी
पहले डिजिटल का दौर नहीं था मतलब टाटा स्काई या डिस टीवी या कोई और सेवाएं नहीं थे लोग केवल कोन्नेक्टन से चेन्नल देखते थे तब टीवी बैंड का स्पेस सीमित होता है।
टीवी सेट भी बैंड के हिसाब से होने चाहिए। कई टीवी सेट में पचास से ज़्यादा चैनल नहीं आते। इसीलिए पहले पचास में आने के लिए चैनल केबल आपरेटर को भारी मात्रा में कैरेज फीस देते हैं। इस मांग और आपूर्ति का उपभोक्ता से कोई लेना देना नहीं है। एनालॉग सिस्टम में होता यह है कि एक चैनल एक नंबर पर आता है और दूसरा किसी और नंबर पर।
अगर आप टाटा स्काई ऑन करें तो न्यूज़ चैनल एक जगह मिलेंगे, स्पोर्टस एक कैटगरी में। लेकिन एनालॉग में आपको पूरा सौ नंबर तक जाकर अपने पंसद के चैनल ढूंढने पड़ते हैं। इसीलिए न्यूज़ चैनलवाले भारी रकम केबल आपरेटर को देते हैं ताकि वो पहले दस या पहले बीस में चैनल को दिखाये।
कोई न्यूज़ चैनल अगर सौ करोड़ रुपये खर्च करता है तो उसमें से पचास से साठ करोड़ रुपये केबल कैरिज फीस से के रूप में चला जाता है। बीस पचीस करोड़ रुपये मार्केटिंग में और कांटेंट पर सबसे कम बीस करोड़ के करीब। यही वजह है कि कांटेंट सस्ता और चलताऊ होता जा रहा है।
सारा पैसा मार्केट में दिखने के लिए खर्च हो जाता है। केबल आपरेटरों के डिजिटल होने से बहुत राहत मिलने की बात कही जा रही है। एक तो यह है कि आपका चैनल किसी भी नंबर पर आएगा, साफ सुथरा ही दिखेगा। धुंधला नहीं। तो पहले दस और पचीस को लेकर मार खत्म।
जैसे अमुक चैनल के ब्रेक में पटना में अलग एडवरटीज़मेंट दिखेगा और लखनऊ में अलग। अभी तो केबल वाला यह करता है कि अमुक चैनल को हटा देता है। उससे जबरन ज्यादा पैसा मांगता है। उपभोक्ता कुछ नहीं कर सकता। उसे मजबूरन अपने पंसद का चैनल छोड़ उस नंबर पर दूसरा चैनल देखना पड़ता है। ज्यादातर केबल नेटवर्क राजनीतिक लोगों के हाथ में हैं
पहले डिजिटल का दौर नहीं था मतलब टाटा स्काई या डिस टीवी या कोई और सेवाएं नहीं थे लोग केवल कोन्नेक्टन से चेन्नल देखते थे तब टीवी बैंड का स्पेस सीमित होता है।
टीवी सेट भी बैंड के हिसाब से होने चाहिए। कई टीवी सेट में पचास से ज़्यादा चैनल नहीं आते। इसीलिए पहले पचास में आने के लिए चैनल केबल आपरेटर को भारी मात्रा में कैरेज फीस देते हैं। इस मांग और आपूर्ति का उपभोक्ता से कोई लेना देना नहीं है। एनालॉग सिस्टम में होता यह है कि एक चैनल एक नंबर पर आता है और दूसरा किसी और नंबर पर।
अगर आप टाटा स्काई ऑन करें तो न्यूज़ चैनल एक जगह मिलेंगे, स्पोर्टस एक कैटगरी में। लेकिन एनालॉग में आपको पूरा सौ नंबर तक जाकर अपने पंसद के चैनल ढूंढने पड़ते हैं। इसीलिए न्यूज़ चैनलवाले भारी रकम केबल आपरेटर को देते हैं ताकि वो पहले दस या पहले बीस में चैनल को दिखाये।
कोई न्यूज़ चैनल अगर सौ करोड़ रुपये खर्च करता है तो उसमें से पचास से साठ करोड़ रुपये केबल कैरिज फीस से के रूप में चला जाता है। बीस पचीस करोड़ रुपये मार्केटिंग में और कांटेंट पर सबसे कम बीस करोड़ के करीब। यही वजह है कि कांटेंट सस्ता और चलताऊ होता जा रहा है।
सारा पैसा मार्केट में दिखने के लिए खर्च हो जाता है। केबल आपरेटरों के डिजिटल होने से बहुत राहत मिलने की बात कही जा रही है। एक तो यह है कि आपका चैनल किसी भी नंबर पर आएगा, साफ सुथरा ही दिखेगा। धुंधला नहीं। तो पहले दस और पचीस को लेकर मार खत्म।
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जैसे अमुक चैनल के ब्रेक में पटना में अलग एडवरटीज़मेंट दिखेगा और लखनऊ में अलग। अभी तो केबल वाला यह करता है कि अमुक चैनल को हटा देता है। उससे जबरन ज्यादा पैसा मांगता है। उपभोक्ता कुछ नहीं कर सकता। उसे मजबूरन अपने पंसद का चैनल छोड़ उस नंबर पर दूसरा चैनल देखना पड़ता है। ज्यादातर केबल नेटवर्क राजनीतिक लोगों के हाथ में हैं
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