कविता : मंजिले मिले या ना मिले EK Poem
31 August 2016
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आज की इस पोस्ट में, में आपको एक कविता बता रहा हु मंजिलों के बारे में. उम्मीद करता हु की आपको पसंद आएगी. कई सारी बातें अक्सर कविताओं के माध्यम से कही जाती हे. ऐसी ही कई बातें इस कविता में कही गयी हे.
ना मिली छांव कहीं
यूँ तो कई शजर मिले
वीरान ही मिले
सफ़र में जो भी शहर मिले !
मंजिले मिले या ना मिले
मुझे कोई परवाह नहीं
मुझे तलाश हे मंजिल की
मंजिल को खबर मिले !!
यूँ तो कई शजर मिले
वीरान ही मिले
सफ़र में जो भी शहर मिले !
मंजिले मिले या ना मिले
मुझे कोई परवाह नहीं
मुझे तलाश हे मंजिल की
मंजिल को खबर मिले !!
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हर गुनाह इंसान
के चेहरे पर दर्ज़ रहता हे
देखना अगर किसी रोज़
आईने से नजर मिले !!
छोटी सी बात का लोग
फ़साना बना देते हे
अब कैसे यंहा किसी से
कोई खुल कर मिले !!
सबको मिला कुछ ना कुछ
खास कुदरत से
फूलों को मिली खुशबु
परिंदों को पर मिले !!
बहुत मुश्किल से मिलता हे
कोई चाहने वाला
खोना मत तुम्हे कोई
शख्स ऐसा अगर मिले !!
कंहा हु किस हाल में हु
कोई बताये मुझे
एक मुद्दत हुयी मुझे
अपनी ही खबर मिले !!
हर गुनाह इंसान
के चेहरे पर दर्ज़ रहता हे
देखना अगर किसी रोज़
आईने से नजर मिले !!
छोटी सी बात का लोग
फ़साना बना देते हे
अब कैसे यंहा किसी से
कोई खुल कर मिले !!
सबको मिला कुछ ना कुछ
खास कुदरत से
फूलों को मिली खुशबु
परिंदों को पर मिले !!
बहुत मुश्किल से मिलता हे
कोई चाहने वाला
खोना मत तुम्हे कोई
शख्स ऐसा अगर मिले !!
कंहा हु किस हाल में हु
कोई बताये मुझे
एक मुद्दत हुयी मुझे
अपनी ही खबर मिले !!
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