क्या हे दोस्ती के असली मायने और कायदे
3 August 2016
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सब रिश्तों की तरह दोस्ती का रिश्ता भी बहुत बड़ा रिश्ता होता हे. हर सुख-दुःख में एक सच्चा दोस्त साथ देता हे. हमने दोस्ती की कई मिसाल भी सुनी हे. दोस्ती के लिए लोग जान तक दे देते हे. रिश्ता कोई भी हो पति-पत्नी, माता-पिता, भाई-बहन यंहा तक की बॉस और कर्मचारी उसमे दोस्ती का होना जरुरी हे. लेकिन हर दोस्ती के असली मायने क्या होते हे यह हम जानेंगे आज की पोस्ट में.
1. दफ्तर से लोटा पति या खाना बनाने के बाद पत्नी गुमसुम हो. तो आमतोर पर ध्यान नहीं जाता. या एक बार पूछकर ओपचारिकता निभा ली जाती हे. लेकिन अगर कोई दोस्त गुमसुम हो तो उसकी उदासी का राज़ जाने बगेर हम नहीं मानते और हर सम्भव कोसिस करते हे उसे उदासी से बाहर लाने में. रिश्तों में भी ऐसी ही दोस्ती जरुरी हे.
दूसरा पहलु :- लेकिन कभी हमारा कोई अपना सिर्फ अकेलापन चाहता हे तो उसके पीछे पड़ा रहना गलत हे.
2. दोस्ती में हंसी-मजाक होता ही हे. दोस्तों की तरह हंसी मजाक से किसी भी रिश्ते में गर्मजोशी आती हे और ओपचारिकता की दीवार टूट जाती हे. जिससे लोग करीब आते हे और रिश्तों के लिए यह जरुरी भी हे.
दूसरा पहलु :- लेकिन हर रिश्ते की एक गरिमा होती हे. मजाक की भी एक सीमा होती हे और उसका ध्यान रखना जरुरी हे. मजाक के चक्कर में रिश्तों को ना भुलाएँ.
3. दोस्ती में कुछ छुपाया नहीं जाता. बाते साझा की जाती हे, चिंताएं बांटी जाती हे. अगर रिश्तों में भी ऐसा हो तो उसमे खुलापन आ जाता हे.
दूसरा पहलु :- जब माता-पिता, भाई-बहन, पिता-पुत्र इन के बिच में बात हो तो यह ध्यान रखना जरुरी होता हे की कोन सी बात, कितनी और किस अंदाज़ में कहनी हे.
4. अक्सर कहा जाता हे की अभिभावकों को बच्चों का दोस्त बनना चाहिए. खासतोर पर बढ़ते बच्चों का. इससे दूरियाँ नहीं बढती और रिश्ता मजबूत होता हे.
दूसरा पहलु :- फिर भी किसी अभिभावक के लिए यह जानना जरुरी हे की कब बच्चे का दोस्त बनना हे और कब माता-पिता की भूमिका में रहना हे. सिर्फ दोस्त बने रहने से रिश्ते में गंभीरता और सम्मान का भाव नहीं आ जाता.
1. दफ्तर से लोटा पति या खाना बनाने के बाद पत्नी गुमसुम हो. तो आमतोर पर ध्यान नहीं जाता. या एक बार पूछकर ओपचारिकता निभा ली जाती हे. लेकिन अगर कोई दोस्त गुमसुम हो तो उसकी उदासी का राज़ जाने बगेर हम नहीं मानते और हर सम्भव कोसिस करते हे उसे उदासी से बाहर लाने में. रिश्तों में भी ऐसी ही दोस्ती जरुरी हे.
दूसरा पहलु :- लेकिन कभी हमारा कोई अपना सिर्फ अकेलापन चाहता हे तो उसके पीछे पड़ा रहना गलत हे.
2. दोस्ती में हंसी-मजाक होता ही हे. दोस्तों की तरह हंसी मजाक से किसी भी रिश्ते में गर्मजोशी आती हे और ओपचारिकता की दीवार टूट जाती हे. जिससे लोग करीब आते हे और रिश्तों के लिए यह जरुरी भी हे.
दूसरा पहलु :- लेकिन हर रिश्ते की एक गरिमा होती हे. मजाक की भी एक सीमा होती हे और उसका ध्यान रखना जरुरी हे. मजाक के चक्कर में रिश्तों को ना भुलाएँ.
3. दोस्ती में कुछ छुपाया नहीं जाता. बाते साझा की जाती हे, चिंताएं बांटी जाती हे. अगर रिश्तों में भी ऐसा हो तो उसमे खुलापन आ जाता हे.
दूसरा पहलु :- जब माता-पिता, भाई-बहन, पिता-पुत्र इन के बिच में बात हो तो यह ध्यान रखना जरुरी होता हे की कोन सी बात, कितनी और किस अंदाज़ में कहनी हे.
4. अक्सर कहा जाता हे की अभिभावकों को बच्चों का दोस्त बनना चाहिए. खासतोर पर बढ़ते बच्चों का. इससे दूरियाँ नहीं बढती और रिश्ता मजबूत होता हे.
दूसरा पहलु :- फिर भी किसी अभिभावक के लिए यह जानना जरुरी हे की कब बच्चे का दोस्त बनना हे और कब माता-पिता की भूमिका में रहना हे. सिर्फ दोस्त बने रहने से रिश्ते में गंभीरता और सम्मान का भाव नहीं आ जाता.
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