कहानी बंदर और मगरमच्छ की


बंदर रोज मगरमच्छ को जामुन खिलता ओर उसकी पत्नी के लिए भी दे देता. रोज मीठे-मीठे जामुन खाकर मगरमच्छ की पत्नी जिद कर बैठी कि जिसके दिए जामुन इतने मीठे हैं. वह खुद कितना मिठा होगा, इसलिए वह उसे ही खाना चाहती है. पत्नी की बात ओर पति न माने! पहले तो समझाने की कोशिश की लेकिन अन्तत: उसकी बात माननी ही पड़ी ओर तट पर आकर बंदर से कहाँ, “तुम्हारी भाभी ने तुम्हें भोजन पर बुलाया है, वह तुमसे मिलना चाहती है.”

बंदर ने इंकार कर दिया की वह पानी में कैसे जाएगा. उसे तो तैरना भी नही आता. तब मगरमच्छ ने समझाया कि वह अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाएगा. बंदर राज़ी हो गया. मगरमच्छ ने जब आदी नदी पार कर ली तो यह सोचक़र की अब यह बंदर कहाँ जाएगा, पानी में तैर तो नही सकता, पेड़ भी बहुत दूर छूट चुका, उसने राज खोल दिया तुम रोज़ मीठे-मीठे जामुन खाते हो तो तुम्हारा दिल भी बहुत मिठा होगा इसलिए मेरी पत्नी तुम्हारा दिल खाना चाहती है. बंदर ने सुना तो दंग रह गया. सोचा की बुरे फँसे, अब क्या करूँ लेकिन बंदर था बुद्धिमान. उसने संकट को भाँपकर कहाँ “अरे, यह बात तुमने मुझे पहले क्यों नही बताईं की भाभी ने दिल मँगाया है, मैं अपना दिल तो उसी जामुन के पेड़ पर छोड़ आया हूँ. वहीं कह देते तो अपना दिल पेड़ से उतार दे देता.” मूर्ख मगरमच्छ को पछतावा हुआ ओर वह उसे वापस तट पर ले गया. तट पर पहुचकर बंदर ने छलाँग लगाई ओर चड गया पेड़ पर. मगरमच्छ इंतज़ार ही करता रह गया पर बंदर वापस नही आया. मगरमच्छ के बुलाने पर उसने कहाँ' तुम दंगाबाज़ निकले. जितने ताउम्र तुम्हें ओर तुम्हारी पत्नी को मीठे फल खिलाये तुम उसी को खाने को तैयार हो गए? जीवन में मगरमच्छ जैसे दोस्त बनाने के बजाय बिना दोस्त के रह जाना बेहतर है.

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