वॉट्सअप बैन आपको प्रायवेसी चाहिए या सुरक्षा..
5 July 2016
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गपशप करने से लेकर मूवी प्लान बनाने और बिज़नेस करने तक दुनिया का बड़ा हिस्सा अब वॉट्सअप के जरिये काम कर रहा है। इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट में इस पर पाबंदी के लिए याचिका लगाई गई। पहली बार यह सुनें तो इसकी कोई तुक नज़र नहीं आती बल्कि हास्यास्पद ही लगता है। वॉट्सअप पर पाबंदी कैसे लगाई जा सकती है? इससे क्या नुकसान होता है।
टेक्नोलॉजी कंपनियों को प्रायवेसी देनी चाहिए, दूसरी ओर पूरी प्रायवेसी किसी देश के लिए संभावित खतरा भी है। इसका हल तो यही है कि विवेकसम्मत ढंग से डेटा को डिक्रिप्ट किया जाए। अब हम यह कैसे जानेंगे कि यह डेटा लीक नहीं होगा और इसका न्यायसम्मत इस्तेमाल किया जाएगा? फिर सेलेक्टिव प्रायवेसी, प्रायवेसी है भी या नहीं? टेक्नोलॉजी कंपनियों और राज्य-व्यवस्था के शुभचिंतकों के बीच विवाद की अभी शुरुआत भर हुई है। यह कैसा विरोधाभास है कि दोनों यूज़र को सुरक्षा देना चाहते हैं और फिर भी वे आमने-सामने हैं
गपशप करने से लेकर मूवी प्लान बनाने और बिज़नेस करने तक दुनिया का बड़ा हिस्सा अब वॉट्सअप के जरिये काम कर रहा है। इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट में इस पर पाबंदी के लिए याचिका लगाई गई। पहली बार यह सुनें तो इसकी कोई तुक नज़र नहीं आती बल्कि हास्यास्पद ही लगता है। वॉट्सअप पर पाबंदी कैसे लगाई जा सकती है? इससे क्या नुकसान होता है।
हालांकि थोड़ी गहराई से सोचने पर कुछ तथ्य नज़र आता है। वॉट्सअप ने हाल ही में एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन शुरू किया है ताकि हेकर और साइबर अपराधी यूज़र का डेटा न चुरा ले। यानी भेजने और प्राप्त करने वाले के अलावा कोई भी उस संदेश तक पहुंच नहीं सकता। सरकार नहीं, यहां तक कि खुद वॉट्सअप भी नहीं। राष्ट्र के लिए खतरा उत्पन्न होने पर सुरक्षा मामलों में भी इस तक पहुंचना संभव नहीं है
whatsapp ban news india ऐसे में सरकार विरोधी तत्व इसका इस्तेमाल कुटिल साजिशों को अंजाम देने में कर सकते हैं। अभी तो सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है। बड़ा सवाल बना रहता है कि क्या संदिग्ध लोगों के निजी डेटा तक सरकार की पहुंच होनी चाहिए? यदि आप सोचें कि इसका उत्तर 'हां' है तो एपल-एफबीआई विवाद याद करें। एफबीआई के कहने पर भी एपल ने एक शूटर के फोन को अनलॉक करने से इनकार कर दिया। कहा कि ग्राहक की प्रायवेसी सर्वोच्च है। एपल का कहना था कि यदि एफबीआई एक यूज़र के फोन तक पहुंच गया तो वह किसी के भी फोन तक पहुंच सकता है। फिर सरकारी तंत्र इसका दुरुपयोग कर सकता है।
whatsapp ban news india ऐसे में सरकार विरोधी तत्व इसका इस्तेमाल कुटिल साजिशों को अंजाम देने में कर सकते हैं। अभी तो सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है। बड़ा सवाल बना रहता है कि क्या संदिग्ध लोगों के निजी डेटा तक सरकार की पहुंच होनी चाहिए? यदि आप सोचें कि इसका उत्तर 'हां' है तो एपल-एफबीआई विवाद याद करें। एफबीआई के कहने पर भी एपल ने एक शूटर के फोन को अनलॉक करने से इनकार कर दिया। कहा कि ग्राहक की प्रायवेसी सर्वोच्च है। एपल का कहना था कि यदि एफबीआई एक यूज़र के फोन तक पहुंच गया तो वह किसी के भी फोन तक पहुंच सकता है। फिर सरकारी तंत्र इसका दुरुपयोग कर सकता है।
टेक्नोलॉजी कंपनियों को प्रायवेसी देनी चाहिए, दूसरी ओर पूरी प्रायवेसी किसी देश के लिए संभावित खतरा भी है। इसका हल तो यही है कि विवेकसम्मत ढंग से डेटा को डिक्रिप्ट किया जाए। अब हम यह कैसे जानेंगे कि यह डेटा लीक नहीं होगा और इसका न्यायसम्मत इस्तेमाल किया जाएगा? फिर सेलेक्टिव प्रायवेसी, प्रायवेसी है भी या नहीं? टेक्नोलॉजी कंपनियों और राज्य-व्यवस्था के शुभचिंतकों के बीच विवाद की अभी शुरुआत भर हुई है। यह कैसा विरोधाभास है कि दोनों यूज़र को सुरक्षा देना चाहते हैं और फिर भी वे आमने-सामने हैं
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