कहानी द्रोपदी की ममता और कोमलता की


महाभारत युद्ध के दोरान द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा ने एक रात चोरी छिपे द्रोपदी के पांचो पुत्रों को मार डाला. सुबह उनके शव देखकर पांडव खेमे में हलचल मच गयी. हर और रुदन और चीख-पुकार थी. द्रोपदी अपने बेटों के शव देखकर सदमे में आ गयी. वह रह रह कर अचेत हो जाती और फिर होश में आने पर विलाप करती. उसकी करुण क्रंदन से पुरे वातावरण में हाहाकार मच गया. पांडव यह देखकर हत्यारे की खोज में निकल गए. उन्हें पता चला की यह हत्यारे उनके गुरु के बेटे अश्वथामा ने की हे. वे उसे पकड़कर द्रोपदी के सामने ले आये. द्रोपदी जड़वत बेठी थी. पांडव द्रोपदी की दयनीय दशा देखकर बोले, पांचाली लो इस पापी का सर धड़ से अलग कर दो. अपराधी तुम्हारे सामने हे. सभी द्रोपदी को देखने लगे द्रोपदी ने यह देखकर अपना चेहरा उठाया और अश्वथामा को एकटक देखने लगी. उसके आँखों से आंसुओं की धारा बह निकली. वह बोली “अश्वथामा को छोड़ दो”. इसे मारने पर आपके गुरु और गुरु पत्नी को उतनी ही तीव्र वेदना होगी जितनी मुझे हो रही हे. इसकी जान लेने से मेरे बेटे तो वापिस नहीं आयेंगे लेकिन एक माँ की ममता का खून जरुर हो जायेगा. में एक माँ की गोद सुनी नहीं करुँगी. द्रोपदी की बात सुनकर पांडव हैरान रह गए. 
माँ की ममता और कोमलता का इस से अच्छा उदहारण तो कोई हो ही नहीं सकता. सच में माँ तो माँ हे. इतना दर्द सहने के बाद भी दिल में कोमलता लाना बड़ा मुश्किल होता हे. इसलिए भगवान भी इस शक्ति के आके झुक जाते हे. इसलिए किसी ने सही ही कहा हे 
"उपर जिसका अंत नहीं उसे भगवान कहते हे और
सारे जंहा में जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हे."

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