लालू प्रसाद यादव की जीवनी सुनाई खुद Lalu Prasad Yadav biography


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अपने 69वें जन्मदिन पर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद बचपन की यादों में लौट गये। नेताओं - कार्यकर्ताओं की भीड़ छटी तो चंद लोगों के बीच अपनी गरीबी-मुफ्लिसी के दिन गिनाने लगे। पटना के रिपोर्टर इन्द्रभूषण बता रहे हैं लालू की कहानी ज्यों की त्यों...
Born: June 11, 1948 (age 68), Gopalganj
Spouse: Rabri Devi (m. 1973)
Succeeded by: Mamata Banerjee
Party: Rashtriya Janata Dal
Children:(son)-Tejashwi Yadav , Tej Pratap Yadav, Misa Bharti Yadav,

कहा : 'जनमदिन कहां पता बा। गांव फुलवरिया के बगल के माड़ीपुर के स्कूल में नाम लिखाये गईनी तो छतुबथुआ गांव के मास्टर सूर्यबली मिश्रा पूछनी की उम्र का लिखाई। हम हीं कहनी कि 6-7 साल लिख दीं। फिर काठ के पटरी और भट्‌ठा के साथ स्कूल जाने लगे। भंगरइया घास से पटरी पर लिखा मिटाते थे। स्कूल फीस के रूप में हर शनिवार को रस्सी-पगहा और गुड़-चावल देने लगे। पैसे नहीं थे। स्कूल में घंटी-वंटी नहीं थे। उसकी छत के छेद से आने वाले धूप की लकीरों से टिफिन और छुट्‌टी तय होता था। इस बीच चाचा यदुनन्दन चौधरी पटना गये। उन्होंने मेरे भाई मुकुन्द चौधरी को भी पटना बुला लिया। रोज 11 आना मजूरी करने वाले भाई के साथ हम पटना आये और 5वीं क्लास में मेरा नाम शेखपुरा मोड़ के मीडिल स्कूल में लिखाया। पटना में हमलोग 'चौधरी' से 'यादव' बन गये। उस स्कूल में शेखपुरा गांव के ही कैलाशपति जी और मुंशी मास्टर से एक साल पढ़े। फिर बीएमपी 5 के मीडिल स्कूल में छठी में नाम लिखाया। हम फुटबॉल और नाटक खेलने लगे। 7वीं पास भी यहीं से किया। वेटरनरी क्वार्टर के 10/10 के रूम में हमारा बड़ा परिवार रहता था। घर में शौचालय नहीं था। खेत में जाते थे। भाई की कमाई 45 रूपया महीना हो गया तो हमारा नाम मिलर हाई स्कूल में 8वां में लिखाया। सहाय साहब हेडमास्टर थे। हम एनसीसी में शामिल हुए और फुटबॉल खेलने लगे। फुटबॉलर लीडर बन गये। डेरा में रोशनी की व्यवस्था का पैसा नहीं था।
वेटरनी कॉलेज के बरामदे में पढ़ते थे। स्कूल के पुअर ब्वायज फंड से पढ़ाई चलने लगी। कभी रिक्शा चलाया तो कभी चाय की दुकान पर हेल्परी की। डंटा-बिस्कुट बेचा। वेटरनरी से मिलर स्कूल आने के लिए दबंगियत से शेखपुरा गांव के एक सम्पन्न लड़के को पटाया और उसकी साईकिल की कैरियर पर बैठ स्कूल आने लगे। 5 नम्बर से मैट्रिक में सेकेण्ड डिविजन छूट गया। बीएन कॉलेज में नाम लिखाया तो अलजेबरा की वजह से साइंस छोड़ दिये और मुर्दा-मेढ़क के ऑपरेशन के डर से डाक्टर बनने का सपना छोड़ दिया। पॉलिटिकल साइंस और हिस्ट्री से बीए किया। 1971 में पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ के चुनाव में शामिल हो गये और वोटिंग डलवाने का मुद्दा बना जीत कर संघ के महासचिव बने। कोई गाईड या गार्जियन नहीं था जो बताये कि आगे क्या किया जाए। कुछ दोस्तों ने कहा कि वकील बन जाओगो तो नून-रोटी का जुगाड़ हो जाएगा। हमने एलएलबी में नामांकन करा लिया। वेटरनरी कॉलेज में क्लर्क का काम करने लगे। इस कमाई से कुछ पैसा बचा कर पोस्ट ऑफिस में जमा किया। इस बीच शादी के लिए गांव-घर से हमारे अगुआ पटना आने लगे। डाक्टर दोस्त रामचन्द्र ने कहा कि परिवार ठीक है, शादी कर लो। हमने अपने कमाये रुपये से 5 सेट सोना-चांदी का गहना खरीदा।

तिलक में 3000 रुपया चढ़ा।
हम गांव पहुंचें और पालकी पर बैठ शादी के लिए निकल पड़े। बीच रास्ते में रंजन यादव और नागेश्वर शर्मा अपना गाड़ी लेकर पटना से पहुंचे तो पालकी से उतार अपनी गाड़ी में बिठा 'दुआर' लगाया। शादी तो हो गई पर राबड़ी का गौना रह गया। इस बीच पटना में संपूर्ण क्रांति आंदोलन शुरू हो गया था। हम पटना आ गये। 18 मार्च 1974 को राबड़ी का पटना आना तय हुआ और उसी दिन पटना में आंदोलन हिंसक हो गया। आर्मी के जवान सड़क पर उतर आये और छात्रों की पिटाई शुरू हो गई। हल्ला हो गया कि लालू मारा गया। हमारे भाई हमें खोजने निकले। हम किसी तरह बचते-बचाते एयरपोर्ट के गेट के पास भाई से मिले और कहा कि राबड़ी को कह दीजिएगा हम ठीक हैं। घर नहीं आ सकते। भूमिगत हो गये। 23 मार्च को कदमकुआं में हमारी गिरफ्तारी हो गई पर आंदोलन सफल रहा। 77 में हम सांसद और 80 85 में एमएलए बने। और 1990 में गांव का लालू बिहार का सीएम बन गया to ye thi lalu yadav ki jivni

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