इंसान की उत्पत्ति मनुष्य कैसे बना manav ki utpatti
14 April 2016
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यह एक अनसुलझी रोचक पहेली है इसका सटीक प्रमाण कोई भी नहीं दे पाया है, इंसान की उत्पत्ति आज भी एक रहस्य है संसार में 2 मत चलते आ रहे है एक है धार्मिक तो दूसर वैज्ञानिकों हम दोनों हीं मतों के प्रमाणो को बताएँगे फिर आप बताये कौन सही है -
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार - सारे ब्रह्माण्ड का रचयिता भगवान है वह सर्वव्यापी एवं सर्वशक्तिमान है। उसी ने सूर्य, चांद, तारे, ग्रह, उपग्रह, जल थल, पेड़-पौधे एवं समस्त जीवों की रचना की है। मानव का पृथ्वी पर आगमन भी उसकी इच्छा और कृपा से हुआ है धार्मिक विद्वानों का मानना है कि आज से अरबों वर्ष पूर्व भगवान ने ऋषि मनु के रूप में प्रथम पुरुष, और शतरूपा के रूप में प्रथम स्त्री, की रचना की और सृष्टि की वृद्धि का दायित्व उन पर सौंपा इस दम्पत्ति ने सनक, सनातन, सनन्तकुमार एवं सनन्दन नामक चार पुत्रों को जन्म दिया (यहाँ क्लिक कर देश की 10 भयानक घटनाये बच्चियों को तक नहीं छोड़ा )
परंतु इन चारों पुत्रों ने शादी नहीं की और आजीवन ब्रहम्चर्य का पालन किया अतः प्रभु का सौंपा गया कार्य सम्पूर्ण नहीं हो सका भगवान ने फिर नारद मुनि को इस कार्य के लिये मृत्यु लोक में भेजा। लेकिन नारद जी भी सृष्टि की वृद्धि में कोई योगदान नहीं कर पाये क्योंकि उन्होंने अपने जीवनकाल में किसी कन्या से विवाह नहीं किया। अन्त में इस पुनीत कार्य का शुभारम्भ कश्यप ऋषि ने अपनी पत्नी अदिति एवं दिति के सहयोग से किया। ऐसा कहा जाता है कि अदिति से देवताओं की उत्पत्ति हुई तथा दिति से असुरो का जन्म हुआ। इसके पश्चात् सुरों और असुरो के परिवारों में निरन्तर वृद्धि होती गयी और पृथवी पर मनुष्यों का आधिपत्य होता चला गया
इस धार्मिक अवधारण के अनुसार जिस मानव को प्रथम बार पृथ्वी पर भेजा, वह आदि मानव शारीरिक एवं मानसिक रूप से पूर्णतः विकसित था आज के मनुष्य की तुलना में वह अधिक बलशाली, बुद्धिमान एवं तपस्वी था। असम्भव से असम्भव कार्य करने में वह समर्थ था। नारद जी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। वह स्वर्गलोक और मृत्युलोक में सशरीर भ्रमण कर सकते थे। इसके पश्चात् रामायण एवं महाभारत काल में पैदा होने वाले पुरुष भी आधुनिक मनुष्य से अधिक बलवान थे। इस युग में जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्ति महाभारत के भीम जैसा बलशाली नहीं है, जो हाथियों को उठाकर आसमान में फेंक दे। हमारा बड़ा से बड़ा तीरन्दाज भी अर्जुन की तरह घूमती मछली की ऑख की परछाईं को देखकर भेद नही सकता। आज तक इसयुग में किसी ऐसे शिशु का जन्म नहीं हुआ है जिसने गर्भावस्था में ही चक्रव्यूह तोड़ने की विद्या सीख ली हो।ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले आज के धनुष धारी में भी इतना सामर्थ्य नही है कि वह भीष्म पितामह की भांति बाणों से गंगा नदी का बहाव रोक सकें।
Biology - पृथ्वी पर सागरों एवं महासागरों का उद्भव हुआ। धरती पर जीवन की शुरूआत पहली बार इन सागरों के जल से ही हुई जल से उत्पन्न हुये जीवों का शरीर बहुत कोमल था पौधो पर फूल नहीं खिलतें थे। इसीलिए इस युग के पौधों को नान फलॉवरिंग अर्थात् फूलरहित कहा जाता है।
जैसे-जैसे समय और परिस्थियां बदलती गयी, जीवों में परिवर्तन होते गये। कुछ जीव लुप्त हो गये तथा कई नई प्रजातियों का अभ्युदय हुआ। ईसा से लगभग 500 मिलियन वर्ष पूर्व, कैम्ब्रीयन युग में सागरों में ऐसे जीवों की भरमार हो गई थी जिनमें रीढ़ की हड्डी(spinal cord) ही नहीं थी। इन जीवों को इनवर्टीब्रेट कहा जाता है। जल की रानी मछली का पर्दापण आज से 350 मिलियन वर्ष पूर्व हुआ। सिल्युरियन काल की इस मछली में फेफड़े नहीं थे। करोडों वर्षों के पश्चात् मछलियों ने अपने शरीर में फेफड़ों का विकास किया। इसी काल में जमीन पर पनपने वाले पौधों की भी उत्पत्ति हुई। परन्तु इस कालके आते-आते उन जीवों का पृथ्वी से बिल्कुल सफाया हो चुका था, जिनके शरीर में रीढ़ की हड्डी नहीं थी।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, धरती के पर्यावरण में भारी बदलाव आते गये। जो जीव इन परिवर्तनों के अनुसार अपने आप को ढाल नही सके, वे हमेशा के लिये विलुप्त हो गये। एम्फीबियन प्रजाति के जीव, जो जमीन पर रह सकते थे तथा पानी में भी (जैसे मेढक, मगरमछ, कछुआ ) आज से 320 मिलियन वर्ष पूर्व डिवोनियन काल में पृथ्वी पर प्रकट हुये।
मैसोजोइक युग के जुरासिक काल में डायनासोर का आगमन हुआ। इस भारी भरकम जीव ने लगभग 90 मिलियन वर्षों तक पृथ्वी पर साम्राज्य किया। परन्तु एक उल्कापिण्ड के पृथ्वी से टकराने से भूमण्डल का पर्यावरण इतना धूल-धूसरित हो गया कि सूर्य का प्रकाश भी कई वर्षों तक जमीन तक नहीं पहुंच पाया। पर्यावरण के इस बदलाव को डायनासोर सहन नहीं कर सके और आज से 65 मिलियन वर्ष पृथ्वी से हमेशा के लिये गायब हो गये
अनुमान scientists - इंसान आने वाले कुछ बर्षो में बदलाब करेगा प्रकृति के अनुसार और फिर इंसान भी दो भागो में विकास करेगा दोनों का जीनोम अलग हो जायेगा या क़ुदरत (Nature) में भयंकर बदलाब आयेगा भूकम्प आने से सभी नष्ठ हो जायेगा रहेगा केवल पानी
कृपया अगर आपको hindi me insan kab kaise hui विषय की कोई सटीक जानकारी हो तो कमेंट्स में जरूर बताये...
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार - सारे ब्रह्माण्ड का रचयिता भगवान है वह सर्वव्यापी एवं सर्वशक्तिमान है। उसी ने सूर्य, चांद, तारे, ग्रह, उपग्रह, जल थल, पेड़-पौधे एवं समस्त जीवों की रचना की है। मानव का पृथ्वी पर आगमन भी उसकी इच्छा और कृपा से हुआ है धार्मिक विद्वानों का मानना है कि आज से अरबों वर्ष पूर्व भगवान ने ऋषि मनु के रूप में प्रथम पुरुष, और शतरूपा के रूप में प्रथम स्त्री, की रचना की और सृष्टि की वृद्धि का दायित्व उन पर सौंपा इस दम्पत्ति ने सनक, सनातन, सनन्तकुमार एवं सनन्दन नामक चार पुत्रों को जन्म दिया (यहाँ क्लिक कर देश की 10 भयानक घटनाये बच्चियों को तक नहीं छोड़ा )
परंतु इन चारों पुत्रों ने शादी नहीं की और आजीवन ब्रहम्चर्य का पालन किया अतः प्रभु का सौंपा गया कार्य सम्पूर्ण नहीं हो सका भगवान ने फिर नारद मुनि को इस कार्य के लिये मृत्यु लोक में भेजा। लेकिन नारद जी भी सृष्टि की वृद्धि में कोई योगदान नहीं कर पाये क्योंकि उन्होंने अपने जीवनकाल में किसी कन्या से विवाह नहीं किया। अन्त में इस पुनीत कार्य का शुभारम्भ कश्यप ऋषि ने अपनी पत्नी अदिति एवं दिति के सहयोग से किया। ऐसा कहा जाता है कि अदिति से देवताओं की उत्पत्ति हुई तथा दिति से असुरो का जन्म हुआ। इसके पश्चात् सुरों और असुरो के परिवारों में निरन्तर वृद्धि होती गयी और पृथवी पर मनुष्यों का आधिपत्य होता चला गया
इस धार्मिक अवधारण के अनुसार जिस मानव को प्रथम बार पृथ्वी पर भेजा, वह आदि मानव शारीरिक एवं मानसिक रूप से पूर्णतः विकसित था आज के मनुष्य की तुलना में वह अधिक बलशाली, बुद्धिमान एवं तपस्वी था। असम्भव से असम्भव कार्य करने में वह समर्थ था। नारद जी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। वह स्वर्गलोक और मृत्युलोक में सशरीर भ्रमण कर सकते थे। इसके पश्चात् रामायण एवं महाभारत काल में पैदा होने वाले पुरुष भी आधुनिक मनुष्य से अधिक बलवान थे। इस युग में जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्ति महाभारत के भीम जैसा बलशाली नहीं है, जो हाथियों को उठाकर आसमान में फेंक दे। हमारा बड़ा से बड़ा तीरन्दाज भी अर्जुन की तरह घूमती मछली की ऑख की परछाईं को देखकर भेद नही सकता। आज तक इसयुग में किसी ऐसे शिशु का जन्म नहीं हुआ है जिसने गर्भावस्था में ही चक्रव्यूह तोड़ने की विद्या सीख ली हो।ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले आज के धनुष धारी में भी इतना सामर्थ्य नही है कि वह भीष्म पितामह की भांति बाणों से गंगा नदी का बहाव रोक सकें।
वैज्ञानिक विचार धारा - धार्मिक विचारों के ठीक विपरीत है विभिन्न क्षेत्रों में किए गए अनुसंधानों से वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि पृथ्वी का प्रत्येक प्राणी विकास की एक प्राकृतिक प्रक्रिया की उपज है। इस प्रक्रिया के अनुसार भिन्न भिन्न जीवों की उत्पत्ति भिन्न-भिन्न समय पर तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के भौगोलिक परिवेश में होती है।
आदिकाल से लेकर आजतक पृथ्वी के प्राकृतिक वातावरण में अनगिनत बदलाव आये हैं। इस बदलते पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए प्रत्येक जीव अपने अंदर अनेकों परिवर्तन करता है तथा विकास की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है। चिंपैंजी और गोरिल्ला से लेकर आजतक मनुष्य ने भी विकास की विभिन्नअवस्थाओं से गुजरते हुये आधुनिक स्वरूप धारण किया है
धीरे धीरे पृथ्वी ठण्डी होती गयी और प्रीकैम्ब्रियन युग के आते-आते, पृथ्वी पर कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुये। Hydrogen और Oxigen गैसों मिलने से जल की उत्पत्ति हुई,
Stages of human evolution
According to science - जीव निर्धारित मात्रा में ईधन लेकर स्वयं एक सेल्स के रूप में जन्म लेता है और ईधन का समाप्ति पर स्वतः ही समाप्त हो जाता है। न कोई इसे मारता है न ही कोई इसे जन्म देता है। एक अध्ययन के अनुसार, सूर्य भी 7.6 बिलियन वर्षों के बाद अपने ईधन की समाप्ति के पश्चात् स्वयं ही नष्ट होकर ब्लैक होल में परिवर्तित हो जायेगा तथा अपने चारों ओर स्थित सभी ग्रहों तथा उपग्रहों को निगल जायेगा। विकास और विनाश की यह प्रक्रिया सतत् है इसी प्राकृतिक प्रक्रिया के कारण प्रत्येक प्राणी का जन्म होता है तथा इसी के कारण उसका अन्त हो जाता है।
विभिन्न काल की चट्टानों (Rocks) में छिपे पड़े कंकालों एवं जीवांशा के अध्ययन से पता चलता है कि जब पृथ्वी परजीव के पनपने के लिये उपयुक्त वातावरण उपलब्ध हो जाता है तब ही जीव का सृष्टि पर आगमन होता है। लगभग 600 मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी का थल एवं वायुमण्डल बहुत गर्म था। इस प्रकार के पर्यावरण में किसी भी प्रकार के जीव का विकसित होना सम्भव नहीं था। अतः इस युग में करोड़ों वर्षों तक पृथ्वी बिना जीवन के वीरान ही पड़ी रही। यही कारण है पृथ्वी के इस प्राचीनतम प्रारम्भिक युग को अजोईक अथवा जीवन-रहित युग कहा जाता है
According to science - जीव निर्धारित मात्रा में ईधन लेकर स्वयं एक सेल्स के रूप में जन्म लेता है और ईधन का समाप्ति पर स्वतः ही समाप्त हो जाता है। न कोई इसे मारता है न ही कोई इसे जन्म देता है। एक अध्ययन के अनुसार, सूर्य भी 7.6 बिलियन वर्षों के बाद अपने ईधन की समाप्ति के पश्चात् स्वयं ही नष्ट होकर ब्लैक होल में परिवर्तित हो जायेगा तथा अपने चारों ओर स्थित सभी ग्रहों तथा उपग्रहों को निगल जायेगा। विकास और विनाश की यह प्रक्रिया सतत् है इसी प्राकृतिक प्रक्रिया के कारण प्रत्येक प्राणी का जन्म होता है तथा इसी के कारण उसका अन्त हो जाता है।
विभिन्न काल की चट्टानों (Rocks) में छिपे पड़े कंकालों एवं जीवांशा के अध्ययन से पता चलता है कि जब पृथ्वी परजीव के पनपने के लिये उपयुक्त वातावरण उपलब्ध हो जाता है तब ही जीव का सृष्टि पर आगमन होता है। लगभग 600 मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी का थल एवं वायुमण्डल बहुत गर्म था। इस प्रकार के पर्यावरण में किसी भी प्रकार के जीव का विकसित होना सम्भव नहीं था। अतः इस युग में करोड़ों वर्षों तक पृथ्वी बिना जीवन के वीरान ही पड़ी रही। यही कारण है पृथ्वी के इस प्राचीनतम प्रारम्भिक युग को अजोईक अथवा जीवन-रहित युग कहा जाता है
Biology - पृथ्वी पर सागरों एवं महासागरों का उद्भव हुआ। धरती पर जीवन की शुरूआत पहली बार इन सागरों के जल से ही हुई जल से उत्पन्न हुये जीवों का शरीर बहुत कोमल था पौधो पर फूल नहीं खिलतें थे। इसीलिए इस युग के पौधों को नान फलॉवरिंग अर्थात् फूलरहित कहा जाता है।
जैसे-जैसे समय और परिस्थियां बदलती गयी, जीवों में परिवर्तन होते गये। कुछ जीव लुप्त हो गये तथा कई नई प्रजातियों का अभ्युदय हुआ। ईसा से लगभग 500 मिलियन वर्ष पूर्व, कैम्ब्रीयन युग में सागरों में ऐसे जीवों की भरमार हो गई थी जिनमें रीढ़ की हड्डी(spinal cord) ही नहीं थी। इन जीवों को इनवर्टीब्रेट कहा जाता है। जल की रानी मछली का पर्दापण आज से 350 मिलियन वर्ष पूर्व हुआ। सिल्युरियन काल की इस मछली में फेफड़े नहीं थे। करोडों वर्षों के पश्चात् मछलियों ने अपने शरीर में फेफड़ों का विकास किया। इसी काल में जमीन पर पनपने वाले पौधों की भी उत्पत्ति हुई। परन्तु इस कालके आते-आते उन जीवों का पृथ्वी से बिल्कुल सफाया हो चुका था, जिनके शरीर में रीढ़ की हड्डी नहीं थी।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, धरती के पर्यावरण में भारी बदलाव आते गये। जो जीव इन परिवर्तनों के अनुसार अपने आप को ढाल नही सके, वे हमेशा के लिये विलुप्त हो गये। एम्फीबियन प्रजाति के जीव, जो जमीन पर रह सकते थे तथा पानी में भी (जैसे मेढक, मगरमछ, कछुआ ) आज से 320 मिलियन वर्ष पूर्व डिवोनियन काल में पृथ्वी पर प्रकट हुये।
मैसोजोइक युग के जुरासिक काल में डायनासोर का आगमन हुआ। इस भारी भरकम जीव ने लगभग 90 मिलियन वर्षों तक पृथ्वी पर साम्राज्य किया। परन्तु एक उल्कापिण्ड के पृथ्वी से टकराने से भूमण्डल का पर्यावरण इतना धूल-धूसरित हो गया कि सूर्य का प्रकाश भी कई वर्षों तक जमीन तक नहीं पहुंच पाया। पर्यावरण के इस बदलाव को डायनासोर सहन नहीं कर सके और आज से 65 मिलियन वर्ष पृथ्वी से हमेशा के लिये गायब हो गये
अनुमान scientists - इंसान आने वाले कुछ बर्षो में बदलाब करेगा प्रकृति के अनुसार और फिर इंसान भी दो भागो में विकास करेगा दोनों का जीनोम अलग हो जायेगा या क़ुदरत (Nature) में भयंकर बदलाब आयेगा भूकम्प आने से सभी नष्ठ हो जायेगा रहेगा केवल पानी
कृपया अगर आपको hindi me insan kab kaise hui विषय की कोई सटीक जानकारी हो तो कमेंट्स में जरूर बताये...
My question is how first man and woman born?
ReplyDeleteDharmik vichar dhara galat h
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