ऋष‌ि मुन‌ि वर्षों तक ‌ब‌िना भोजन कैसे रहते थे पढ़े


निराहार यानि बिना कुछ खाये रह कर भी लंबे समय तक जीवित और जवान रहा जा सकता है। इच्छा करें तो पूरी उम्र जीवित रह सकते हैं। योग और अध्यात्म शास्त्र में तो इस तरह के अनेक दावे और प्रमाण या उदाहरण दिए गए हैं।

अब जीव विज्ञान भी इस दावे की पुष्टि करते हैं। इस तरह के उदाहरण पेश करते हुए कहा गया है कि शीतकाल में मेढ़क कुछ नहीं खाते, सांप सिर्फ हवा के सहारे ही रह जाते हैं, कछुए जमीन में गहराई पर अपने अंग छिपाए पड़े रहते हैं।

रीछ बर्फीले तूफानों के दिनों में अपनी मांद में जा छुपता है और समय अनुकूल होने पर आहार की तलाश में बाहर आता है। इस तरह की जानकारी प्रस्तुत करते हुए वन्यजीवन का अध्ययन में निरत रहे फ्रांस के प्रो. श्मिट कोहेन ने 1600 से ज्यादा जीवों की खानपान की आदतों के ब्यौरे इकट्टे किए और कहा कि शीत की प्रधानता और विश्राम की बहुलता होने पर जीव कोषों का क्षय बन्द हो जाता है।

भोजन के बिना शरीर का कुछ नहीं बिगड़ता। भूख आदि भी नहीं लगती। स्वस्थ, परिपुष्ट और लंबे समय तक सक्रिय रहने के लिए डाक्टरों केमिस्टों के परामर्श के अनुसार रहना ही काफी नहीं है।

कुछ और अधिक गहराई में जाते हुए प्रकृति विज्ञानी शरद सहस्बुद्धे ने लिखा है कि स्वास्थ्य और आयु का संबंध अच्छे और पौष्टिक भोजन और रहन सहन पर ही निर्भर होता तो कोई भी अमीर आदमी न तो कमजोर दिखाई पड़ता न बीमार और न वह अधूरी आयु में ही काल कवलित होता।

बहुतेरे लोग हैं जो पानी भी फैमिली डॉक्टर से पूछकर ही पीते हैं। अपनी समझ से वे अमृत के अतिरिक्त और जो कुछ दुनिया में है सो सब कुछ पाप पुण्य खाते हैं पर न अस्वस्थता पिण्ड छोड़ती है न दुर्बलता।

बेशक पौष्टिक और सन्तुलित आहार का महत्व है, औषध उपचार और पथ्य परहेज का भी महत्व है। लेकिन स्वास्थ्य का आधार इतना उथला नहीं है। उसके लिए उन बातों पर ध्यान देना चाहिए जो अन्तरंग जीवन से संबंधित हैं।

अन्तःचेतना के अनुरूप ही मन, मस्तिष्क, नाड़ी संस्थान और अन्य अंग अवयवों के क्रिया-कलाप चलते हैं। आन्तरिक उद्वेग ऐसी आग भीतर ही भीतर जला देते और कि स्वास्थ्य के लिए उत्तरदायी तत्व अपने आप नष्ट हो जाते हैं।

इस तरह के अस्तव्यस्त और शरीर तथा मन के संवेगों पर बिना जाने समझे चलते जाने में शरीर, स्वास्थ्य और जीवन फूंकता चला जाता है। वरना प्रकृति के बनाए साठ सत्तर किलोग्राम की यह मशीन हर तरह से समर्थ और सक्षम है।

अनियमित और अव्यवस्थित दिनचर्या का भी ऐसा ही कुप्रभाव पड़ता है। शरीर की स्थिरता का भी ऐसा ही कुप्रभाव पड़ता है। शरीर की स्थिरता रखने वाली अन्तरंग प्रणाली जब एक ढर्रे को अपना लेती है तो सब कुछ ठीक से चलने लगता है।

यदि हर दिन नई-नई दिनचर्या, क्रम व्यवस्था और रीति-नीति बदलें तो उस स्थिति में भीतर भी कोई प्रणाली निर्धारित नहीं हो पाती और उस अव्यवस्था से पाचन प्रणाली से लेकर स्नायु संस्थान की सुरक्षा के लिए नियमित और निर्धारित दिनचर्या आवश्यक है।

अनावश्यक ताप पैदा करने वाले मनोविकार-विक्षोभ एवं उद्देश्यों से बचने और शान्ति सन्तुलित, सन्तुष्ट और हंसी-खुशी का नियमित जीवन जीने का प्रयत्न करना चाहिए। आहार सीमित और समय पर हो।

सादा और अनुत्तेजक साथ ही भूख से कम मात्रा में। ऐसी सावधानी बरतने से पेट में वह ताप उत्पन्न नहीं होता जिसके कारण तीन चौथाई मनुष्यों को अपनी जीवनी-शक्ति से बुरी तरह हाथ धोना पड़ता है। body starts to eat itself what happens to your body without food what happens to the human body without food what happens to the body without water what happens to the body without sleep what happens to the body without oxygen

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