हनुमान जी क्यों आये थे महाभारत में hanuman ji role in mahabharat
29 December 2015
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महाभारत के अनुसार, युद्ध के दौरान अर्जुन के रथ पर स्वयं हनुमानजी विराजित थे। पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हनुमान अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 2 जनवरी, शनिवार को है। इस अवसर पर हम आपको बता रहे हैं हनुमानजी से जुड़ी कुछ रोचक बातें। युद्ध समाप्त होने के बाद क्या हुआ और क्यों हनुमानजी अर्जुन के रथ पर विराजित थे। ये पूरा प्रसंग इस प्रकार है-
इसलिए जला अर्जुन का रथ महाभारत के अनुसार, जब कौरव सेना का नाश हो गया तो दुर्योधन भाग कर एक तालाब में छिप गया। पांडवों को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने दुर्योधन को युद्ध के लिए ललकारा। दुर्योधन तालाब से बाहर निकला और भीम ने उसे पराजित कर दिया। दुर्योधन को मरणासन्न अवस्था में छोड़कर पांडव अपने-अपने रथों पर कौरवों के शिविर में आए। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से पहले रथ से उतरने को कहा, बाद में वे स्वयं उतरे
श्रीकृष्ण के उतरते ही अर्जुन के रथ पर बैठे हनुमानजी भी उड़ गए। तभी देखते ही देखते अर्जुन का रथ जल कर राख हो गया। यह देख अर्जुन ने श्रीकृष्ण से इसका कारण पूछा? तब श्रीकृष्ण ने बताया कि ये रथ तो दिव्यास्त्रों के वार से पहले ही जल चुका था, सिर्फ मेरे बैठे रहने के कारण ही अब तक यह भस्म नहीं हुआ था। जब तुम्हारा काम पूर्ण हो गया, तभी मैंने इस रथ को छोड़ा। इसलिए यह अभी भस्म हुआ है।
गंधमादन पर्वत पर रहते थे हनुमानजी
कमल पुष्प की खोज में चलते-चलते भीम एक केले के बगीचे में पहुंच गए। यह बगीचा गंधमादन पर्वत की चोटी पर कई योजन लंबा-चौड़ा था। भीम नि:संकोच उस बगीचे में घुस गए। इस बगीचे में भगवान श्रीहनुमान रहते थे। उन्हें अपने भाई भीमसेन के वहां आने का पता लग गया। (धर्म ग्रंथों के अनुसार, हनुमानजी पवन देवता के पुत्र हैं और भीम भी, इसलिए ये दोनों भाई हैं।) हनुमानजी ने सोचा कि यह मार्ग भीम के लिए उचित नहीं है। यह सोचकर उनकी रक्षा करने के विचार से वे केले के बगीचे में से होकर जाने वाले संकरे रास्ते को रोककर लेट गए।
भीम को रोकना चाहते थे हनुमान
भीम को बगीचे के संकरे रास्ते पर लेटे हुए वानरराज हनुमान दिखाई दिए। उनके होंठ पतले थे, जीभ और मुंह लाल थे, कानों का रंग भी लाल-लाल था, भौंहें चंचल थीं तथा खुले हुए मुख में सफेद, नुकीले और तीखे दांत और दाढ़ें दिखती थीं। बगीचे में इस प्रकार एक वानर को लेटे हुए देखकर भीम उनके पास पहुंचे और जोर से गर्जना की। हनुमानजी ने अपनी आंखें खोलकर उपेक्षापूर्वक भीम की ओर देखा और कहा- तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो? मैं रोगी हूं, यहां आनंद से सो रहा था, तुमने मुझे क्यों जगा दिया? यहां से आगे यह पर्वत अगम्य है, इस पर कोई नहीं चढ़ सकता। अत: तुम यहां से चले जाओ।
द्रौपदी ने कहा था भीम को कमल लाने के लिए
वनवास के दौरान पांडव जब बदरिकाश्रम में रह रहे थे, तभी एक दिन वहां उड़ते हुए एक सहस्त्रदल कमल आ गया। उसकी गंध बहुत ही मनमोहक थी। उस कमल को द्रौपदी ने देख लिया। द्रौपदी ने उसे उठा लिया और भीम से कहा- यह कमल बहुत ही सुंदर है। मैं यह कमल धर्मराज युधिष्ठिर को भेंट करूंगी। अगर आप मुझसे प्रेम करते हैं तो ऐसे बहुत से कमल मेरे लिए लेकर आइए। द्रौपदी के ऐसा कहने पर भीम उस दिशा की ओर चल दिए, जिधर से वह कमल उड़ कर आया था। भीम के चलने से बादलों के समान भीषण आवाज आती थी, जिससे घबराकर उस स्थान पर रहने वाले पशु-पक्षी अपना आश्रय छोड़कर भागने लगे। arjuna's chariot in mahabharata arjun chariot arjuna and hanuman story arjun and hanuman in mahabharata arjuna chariot burns chariot name of arjuna hanuman flag on arjuna ratha arjuna chariot horses
hanuman flag images |
श्रीकृष्ण के उतरते ही अर्जुन के रथ पर बैठे हनुमानजी भी उड़ गए। तभी देखते ही देखते अर्जुन का रथ जल कर राख हो गया। यह देख अर्जुन ने श्रीकृष्ण से इसका कारण पूछा? तब श्रीकृष्ण ने बताया कि ये रथ तो दिव्यास्त्रों के वार से पहले ही जल चुका था, सिर्फ मेरे बैठे रहने के कारण ही अब तक यह भस्म नहीं हुआ था। जब तुम्हारा काम पूर्ण हो गया, तभी मैंने इस रथ को छोड़ा। इसलिए यह अभी भस्म हुआ है।
गंधमादन पर्वत पर रहते थे हनुमानजी
कमल पुष्प की खोज में चलते-चलते भीम एक केले के बगीचे में पहुंच गए। यह बगीचा गंधमादन पर्वत की चोटी पर कई योजन लंबा-चौड़ा था। भीम नि:संकोच उस बगीचे में घुस गए। इस बगीचे में भगवान श्रीहनुमान रहते थे। उन्हें अपने भाई भीमसेन के वहां आने का पता लग गया। (धर्म ग्रंथों के अनुसार, हनुमानजी पवन देवता के पुत्र हैं और भीम भी, इसलिए ये दोनों भाई हैं।) हनुमानजी ने सोचा कि यह मार्ग भीम के लिए उचित नहीं है। यह सोचकर उनकी रक्षा करने के विचार से वे केले के बगीचे में से होकर जाने वाले संकरे रास्ते को रोककर लेट गए।
भीम को रोकना चाहते थे हनुमान
भीम को बगीचे के संकरे रास्ते पर लेटे हुए वानरराज हनुमान दिखाई दिए। उनके होंठ पतले थे, जीभ और मुंह लाल थे, कानों का रंग भी लाल-लाल था, भौंहें चंचल थीं तथा खुले हुए मुख में सफेद, नुकीले और तीखे दांत और दाढ़ें दिखती थीं। बगीचे में इस प्रकार एक वानर को लेटे हुए देखकर भीम उनके पास पहुंचे और जोर से गर्जना की। हनुमानजी ने अपनी आंखें खोलकर उपेक्षापूर्वक भीम की ओर देखा और कहा- तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो? मैं रोगी हूं, यहां आनंद से सो रहा था, तुमने मुझे क्यों जगा दिया? यहां से आगे यह पर्वत अगम्य है, इस पर कोई नहीं चढ़ सकता। अत: तुम यहां से चले जाओ।
द्रौपदी ने कहा था भीम को कमल लाने के लिए
वनवास के दौरान पांडव जब बदरिकाश्रम में रह रहे थे, तभी एक दिन वहां उड़ते हुए एक सहस्त्रदल कमल आ गया। उसकी गंध बहुत ही मनमोहक थी। उस कमल को द्रौपदी ने देख लिया। द्रौपदी ने उसे उठा लिया और भीम से कहा- यह कमल बहुत ही सुंदर है। मैं यह कमल धर्मराज युधिष्ठिर को भेंट करूंगी। अगर आप मुझसे प्रेम करते हैं तो ऐसे बहुत से कमल मेरे लिए लेकर आइए। द्रौपदी के ऐसा कहने पर भीम उस दिशा की ओर चल दिए, जिधर से वह कमल उड़ कर आया था। भीम के चलने से बादलों के समान भीषण आवाज आती थी, जिससे घबराकर उस स्थान पर रहने वाले पशु-पक्षी अपना आश्रय छोड़कर भागने लगे। arjuna's chariot in mahabharata arjun chariot arjuna and hanuman story arjun and hanuman in mahabharata arjuna chariot burns chariot name of arjuna hanuman flag on arjuna ratha arjuna chariot horses
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