रोगी की सेवा देखभाल how to treat patients with depression
26 November 2015
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बहुत से रोगी अपनी खतरनाक बीमारियों से बहुत ज्यादा डर जाते हैं, वे अपने रोग और दर्द आदि से बहुत परेशान हो जाते हैं, उनका अपनी शारीरिक क्रियाओं पर नियन्त्रण नहीं रह जाता और वे दूसरे लोगों पर बोझ बन जाते हैं। ऐसे समय में रोगी को सम्भालना एक बहुत ही नाजुक काम है, जिसके लिए काफी सब्र और सही तरह के सेवा की जरूरत है।
दिमागी सुरक्षा और मदद-
जिस रोगी का आखिरी समय चल रहा होता है उसे हर समय ये डर सताता रहता है कि डॉक्टर या उसके आसपास के लोग उससे कुछ छिपा रहे हैं। वैसे तो रोगी को खुद ही एहसास हो जाता है कि वह अब कुछ ही पल का मेहमान है। बहुत से रोगी इस सच को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं और बहुत से इसका दिल से स्वागत करते हैं। वे अपनी इच्छाशक्ति को मजबूत करके हालात पर काबू पाने की कोशिश करते हैं।
रोगी के आखिरी समय (मृत्यु के समय) में 5 प्रकार का भावात्मक प्रदर्शन होता है-
अस्वीकारना-
रोगी ये बात स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होता कि वे मृत्यु के करीब पहुंच रहा है।
गुस्सा-
रोगी को अपने डॉक्टर पर, आसपास के लोगों पर, अपनी किस्मत पर यहां तक कि खुद पर भी गुस्सा आता रहता है।
सौदेबाजी-
रोगी अपने भोजन, रोजाना लेने वाली औषधि, मशहूर डॉक्टरों, पण्डितों आदि के पास जाकर इलाज में चमत्कार होने की कल्पना करता है।
उदासीनता-
रोगी को जब अपने बचने की बिल्कुल आस दिखाई नहीं देती तो वह उदासीन हो जाता है।
स्वीकारना-
कई रोगी बहुत ही खुशकिस्मत होते हैं जो अपनी मृत्यु के पहले ही इस अवस्था को समझ लेते हैं। ऐसे रोगी अपने बचे हुए जीवन को ही शांति से जी लेना चाहते हैं।
रोगी के आखिरी समय में उसके रिश्तेदार, दोस्त आदि पहले से भी ज्यादा उसके पास हो जाते हैं। इसलिए रोगी के आसपास वाले लोगों को अपना ज्यादा से ज्यादा समय और सहारा रोगी को देना चाहिए जिससे रोगी अपने आपको असहाय महसूस न करें। मृत्यु के समय में रोगी को काफी मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन उसके करीबी लोगों को सब्र और समझदारी से काम लेना चाहिए। रोगी को अच्छी-अच्छी बातों में लगाकर रखें ताकि कुछ पल के लिए वह अपनी मृत्यु को भूल जाए।
रोगी की साफ-सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।रोगी के शरीर को रोजाना गर्म पानी से साफ करना चाहिए।उसके कपड़ों को रोजाना बदलना चाहिए।रोगी के बिस्तर और चादर आदि को रोजाना बदलना चाहिए।रोजाना रोगी के दान्त, मुंह और जीभ की सफाई करनी चाहिए।कानों के मैल को रोजाना साफ करना चाहिए।अगर रोगी के नाखून बढ़े हो तो उन्हें काट देना चाहिए।रोगी को हमेशा सूखा और साफ रखना चाहिए।अगर रोगी के आसपास साफ-सफाई का पूरी तरह ध्यान न रखा जाए तो रोगी अपने आपको आरामदायक महसूस नहीं करता और संक्रमण का खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाएगा।अगर रोगी अपने आखिरी समय में किसी चीज को निगलने में असमर्थ हो जाए तो उसे हल्का पौष्टिक भोजन जैसे दूध, फलों का रस, सब्जियों का रस, सोयाबीन, चावल, दाल और फल देने चाहिए।
दिमागी सुरक्षा और मदद-
जिस रोगी का आखिरी समय चल रहा होता है उसे हर समय ये डर सताता रहता है कि डॉक्टर या उसके आसपास के लोग उससे कुछ छिपा रहे हैं। वैसे तो रोगी को खुद ही एहसास हो जाता है कि वह अब कुछ ही पल का मेहमान है। बहुत से रोगी इस सच को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं और बहुत से इसका दिल से स्वागत करते हैं। वे अपनी इच्छाशक्ति को मजबूत करके हालात पर काबू पाने की कोशिश करते हैं।
रोगी के आखिरी समय (मृत्यु के समय) में 5 प्रकार का भावात्मक प्रदर्शन होता है-
अस्वीकारना-
रोगी ये बात स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होता कि वे मृत्यु के करीब पहुंच रहा है।
गुस्सा-
रोगी को अपने डॉक्टर पर, आसपास के लोगों पर, अपनी किस्मत पर यहां तक कि खुद पर भी गुस्सा आता रहता है।
सौदेबाजी-
रोगी अपने भोजन, रोजाना लेने वाली औषधि, मशहूर डॉक्टरों, पण्डितों आदि के पास जाकर इलाज में चमत्कार होने की कल्पना करता है।
उदासीनता-
रोगी को जब अपने बचने की बिल्कुल आस दिखाई नहीं देती तो वह उदासीन हो जाता है।
स्वीकारना-
कई रोगी बहुत ही खुशकिस्मत होते हैं जो अपनी मृत्यु के पहले ही इस अवस्था को समझ लेते हैं। ऐसे रोगी अपने बचे हुए जीवन को ही शांति से जी लेना चाहते हैं।
रोगी के आखिरी समय में उसके रिश्तेदार, दोस्त आदि पहले से भी ज्यादा उसके पास हो जाते हैं। इसलिए रोगी के आसपास वाले लोगों को अपना ज्यादा से ज्यादा समय और सहारा रोगी को देना चाहिए जिससे रोगी अपने आपको असहाय महसूस न करें। मृत्यु के समय में रोगी को काफी मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन उसके करीबी लोगों को सब्र और समझदारी से काम लेना चाहिए। रोगी को अच्छी-अच्छी बातों में लगाकर रखें ताकि कुछ पल के लिए वह अपनी मृत्यु को भूल जाए।
रोगी की साफ-सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।रोगी के शरीर को रोजाना गर्म पानी से साफ करना चाहिए।उसके कपड़ों को रोजाना बदलना चाहिए।रोगी के बिस्तर और चादर आदि को रोजाना बदलना चाहिए।रोजाना रोगी के दान्त, मुंह और जीभ की सफाई करनी चाहिए।कानों के मैल को रोजाना साफ करना चाहिए।अगर रोगी के नाखून बढ़े हो तो उन्हें काट देना चाहिए।रोगी को हमेशा सूखा और साफ रखना चाहिए।अगर रोगी के आसपास साफ-सफाई का पूरी तरह ध्यान न रखा जाए तो रोगी अपने आपको आरामदायक महसूस नहीं करता और संक्रमण का खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाएगा।अगर रोगी अपने आखिरी समय में किसी चीज को निगलने में असमर्थ हो जाए तो उसे हल्का पौष्टिक भोजन जैसे दूध, फलों का रस, सब्जियों का रस, सोयाबीन, चावल, दाल और फल देने चाहिए।
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