यह तबाही इन दैवी तत्वों की ganga ji ki katha in hindi bhole nath shiv
20 November 2015
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गंगा के बारे में दो कहानियां बहुत महत्वपूर्ण हैं। एक तो यह कि जब वे स्वर्ग से इस पृथ्वी पर उतरीं तो उन्हें थामने के लिए शिव को अपनी जटाएं खोलनी पड़ीं। दूसरी यह कि शाप से भस्म हुए जो साठ हजार सगर पुत्र उनकी राह में आए, उन सबको मुक्ति मिल गई।
पुराणों में वर्णन आता है कि राजा सगर के साठ हजार पुत्र थे। उन्होंने खेल-खेल में उच्छृंखलता पूर्वक कपिल मुनि की तपस्या में बाधा डाली। कपिल मुनि कहीं शांत, निर्जन स्थल पर बैठ कर अपनी साधना कर रहे थे। सगर पुत्रों के आचरण से दुखी हो कर उन्होंने शाप दिया और वे सभी वहीं जल कर भस्म हो गए।सगर पुत्रों को मुक्ति दिलाने के लिए उनके वंशज राजा भगीरथ ने अपना राजपाट छोड़ कर ब्रह्मा की तपस्या की और उनसे अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए मां गंगा को पृथ्वी पर भेजने का वरदान मांगा।
तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने हां तो कर दी, किंतु भगीरथ को एक परामर्श भी दिया। उन्होंने कहा कि गंगा का वेग बहुत प्रचंड है। यदि वह स्वर्ग लोक से उतरकर सीधे पृथ्वी पर आएगी, तो पूरी पृथ्वी को ही बहा ले जाएगी।इसलिए भगीरथ से कहा कि तुम अपनी तपस्या से भगवान महादेव को प्रसन्न कर लो। वे गंगा को अपनी जटाओं में धारण करने की स्वीकृति दे देंगे। ऐसा होने से गंगा का वेग मध्यम हो जाएगा और तब वह पृथ्वी पर धीरे से अवतरित होगी। इस सलाह के बाद भगीरथ ने शिव को अपनी कठिन तपस्या से प्रसन्न किया और उनसे गंगा को अपने सिर पर धारण करने की प्रार्थना की। इस के बाद ही स्वर्ग से गंगा का अवतरण भगवान शिव की जटाओं में हुआ और वहां से वह हिमालय के गोमुख में प्रगट हुई।
महादेव की जटाओं से निकलकर हिमालय में गंगोत्री धाम से 18 किमी. दूर स्थित गोमुख में प्रगट होने के बाद यह भागीरथी के रूप में गंगोत्री पहुंचती है और वहां पर दो अलग-अलग धाराओं में आगे बढ़ती है। इन्हीं दो धाराओं को हम अलकनंदा और मंदाकिनी के नाम से जानते हैं। केदारनाथ के साथ बहने वाली धारा को मंदाकिनी कहा जाता है। गंगोत्री के बाद देवप्रयाग में यही मंदाकिनी, अलकनंदा में समाहित होकर आगे मैदानी भागों में बहने लगती है, जिसे हम गंगा के नाम से जानते हैं।हमने पुराणों की इन कहानियों को तो याद रखा, पर उसका मतलब भूल गए।
शिव की जटाओं में उतरने का आशय यह बताना था कि गंगा के अवतरण का वेग बहुत ज्यादा होगा। उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। लेकिन हमने इसके बारे में सोचना ही छोड़ दिया कि गंगा के उदगम के पास भी कभी जल का प्रवाह इतना तेज और विनाशकारी हो सकता है। दूसरे, सगर पुत्रों की मुक्ति का आशय यह है कि जो मृत और अचेतन है, वह इसकी राह में बचा नहीं रह सकता। गंगा उसे बहा कर ले ही जाएगी। प्राचीन हिंदू चिंतन में देवी- देवताओं को अदम्य शक्ति से परिपूर्ण माना गया है। इन अदम्य शक्तियों में पालक और विध्वंसकारी -दोनों प्रकार के तत्वों का समावेश होता है। वैदिक ग्रंथों में देवताओं की स्तुति करते समय उनसे यही प्रार्थना की जाती थी कि आपकी कृपा हम पर बनी रहे और आप हमारे शत्रुओं का विनाश करें।
उत्तराखंड में आई तबाही यह बताती है कि हमने इन दैवी तत्वों की विनाशकारी शक्तियों को भुला दिया है। इनकी प्रचंडता और सार्मथ्य को भुला कर हमने इसके अस्तित्व और पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ की और अंधाधुंध निर्माण कर इसकी अविरल धारा के आसपास सघन बस्तियां बसा दीं, नतीजा सामने है।पुराणों का मतलब सिर्फ चमत्कारपूर्ण किस्से-कहानी और कर्मकांड नहीं है।
पुराणों में वर्णन आता है कि राजा सगर के साठ हजार पुत्र थे। उन्होंने खेल-खेल में उच्छृंखलता पूर्वक कपिल मुनि की तपस्या में बाधा डाली। कपिल मुनि कहीं शांत, निर्जन स्थल पर बैठ कर अपनी साधना कर रहे थे। सगर पुत्रों के आचरण से दुखी हो कर उन्होंने शाप दिया और वे सभी वहीं जल कर भस्म हो गए।सगर पुत्रों को मुक्ति दिलाने के लिए उनके वंशज राजा भगीरथ ने अपना राजपाट छोड़ कर ब्रह्मा की तपस्या की और उनसे अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए मां गंगा को पृथ्वी पर भेजने का वरदान मांगा।
तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने हां तो कर दी, किंतु भगीरथ को एक परामर्श भी दिया। उन्होंने कहा कि गंगा का वेग बहुत प्रचंड है। यदि वह स्वर्ग लोक से उतरकर सीधे पृथ्वी पर आएगी, तो पूरी पृथ्वी को ही बहा ले जाएगी।इसलिए भगीरथ से कहा कि तुम अपनी तपस्या से भगवान महादेव को प्रसन्न कर लो। वे गंगा को अपनी जटाओं में धारण करने की स्वीकृति दे देंगे। ऐसा होने से गंगा का वेग मध्यम हो जाएगा और तब वह पृथ्वी पर धीरे से अवतरित होगी। इस सलाह के बाद भगीरथ ने शिव को अपनी कठिन तपस्या से प्रसन्न किया और उनसे गंगा को अपने सिर पर धारण करने की प्रार्थना की। इस के बाद ही स्वर्ग से गंगा का अवतरण भगवान शिव की जटाओं में हुआ और वहां से वह हिमालय के गोमुख में प्रगट हुई।
महादेव की जटाओं से निकलकर हिमालय में गंगोत्री धाम से 18 किमी. दूर स्थित गोमुख में प्रगट होने के बाद यह भागीरथी के रूप में गंगोत्री पहुंचती है और वहां पर दो अलग-अलग धाराओं में आगे बढ़ती है। इन्हीं दो धाराओं को हम अलकनंदा और मंदाकिनी के नाम से जानते हैं। केदारनाथ के साथ बहने वाली धारा को मंदाकिनी कहा जाता है। गंगोत्री के बाद देवप्रयाग में यही मंदाकिनी, अलकनंदा में समाहित होकर आगे मैदानी भागों में बहने लगती है, जिसे हम गंगा के नाम से जानते हैं।हमने पुराणों की इन कहानियों को तो याद रखा, पर उसका मतलब भूल गए।
शिव की जटाओं में उतरने का आशय यह बताना था कि गंगा के अवतरण का वेग बहुत ज्यादा होगा। उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। लेकिन हमने इसके बारे में सोचना ही छोड़ दिया कि गंगा के उदगम के पास भी कभी जल का प्रवाह इतना तेज और विनाशकारी हो सकता है। दूसरे, सगर पुत्रों की मुक्ति का आशय यह है कि जो मृत और अचेतन है, वह इसकी राह में बचा नहीं रह सकता। गंगा उसे बहा कर ले ही जाएगी। प्राचीन हिंदू चिंतन में देवी- देवताओं को अदम्य शक्ति से परिपूर्ण माना गया है। इन अदम्य शक्तियों में पालक और विध्वंसकारी -दोनों प्रकार के तत्वों का समावेश होता है। वैदिक ग्रंथों में देवताओं की स्तुति करते समय उनसे यही प्रार्थना की जाती थी कि आपकी कृपा हम पर बनी रहे और आप हमारे शत्रुओं का विनाश करें।
उत्तराखंड में आई तबाही यह बताती है कि हमने इन दैवी तत्वों की विनाशकारी शक्तियों को भुला दिया है। इनकी प्रचंडता और सार्मथ्य को भुला कर हमने इसके अस्तित्व और पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ की और अंधाधुंध निर्माण कर इसकी अविरल धारा के आसपास सघन बस्तियां बसा दीं, नतीजा सामने है।पुराणों का मतलब सिर्फ चमत्कारपूर्ण किस्से-कहानी और कर्मकांड नहीं है।
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