इन 5 कामों से हमेशा नुकसान रामायण में कहा गया है
20 June 2019
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Ramcharitmanas Gyan Shiksha Lesson Hindi श्लोक
राग यानी अत्यधिक प्रेम
जीवन में किसी भी बात की अति बुरी होती है। किसी से भी अत्यधिक या हद से ज्यादा प्रेम करना गलत ही होता है। बहुत ज्यादा प्रेम की वजह से हम सही-गलत को नहीं पहचान पाते है। कई बार बहुत अधिक प्रेम की वजह से मनुष्य अधर्म तक कर जाता है जैसे गुरु द्रोणाचार्य।
गुरु द्रोणाचार्य जानते थे कि कौरव अधर्मी है, फिर भी अपने पुत्र अश्वत्थामा से बहुत अधिक प्रेम करने की वजह से वे जीवनभर अधर्म का साथ देते रहे। पुत्र से अत्यधिक प्रेम के कारण ही गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु भी हुई थी। इसलिए किसी से भी ज्यादा मोह नहीं करना चाहिए।
रोष यानी क्रोध
क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है। क्रोध में मनुष्य अच्छे-बुरे की पहचान नहीं कर पाता है। जिस व्यक्ति का स्वभाव गुस्से वाला होता है, वह बिना सोच-विचार किये किसी का भी बुरा कर सकता है। क्रोध की वजह से मनुष्य का स्वभाव दानव के समान हो जाता है।
क्रोध में किए गए कामों की वजह से बाद में शर्मिदा होना पड़ता है और कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है। इसलिए इस आदत को छोड़ देना चाहिए।
ईर्ष्या यानी जलन
जो मनुष्य दूसरों के प्रति अपने मन में ईर्ष्या या जलन की भावना रखता है, वह निश्चित ही पापी, छल-कपट करने वाला, धोखा देने वाला होता है।
वह दूसरों के नीचा दिखाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। जलन की भावना रखने वाले के लिए सही-गलत के कोई पैमाने नहीं होते हैं जैसे दुर्योधन। दुर्योधन सभी पांडवों की वीरता और प्रसिद्धि से जलता था। इसी जलन की भावना की वजह से दुर्योधन ने जीवनभर पांडवों का बूरा करने की कोशिश की और अंत में अपने कुल का नाश कर दिया।
अतः हमें ईष्या या जलन की भावना कभी अपने मन में नहीं आने देना चाहिए।
मद यानी अहंकार
सामाजिक जीवन में सभी के लिए कुछ सीमाएं होती हैं। हर व्यक्ति को उन सीमाओं का हमेशा पालन करना चाहिए, लेकिन अहंकारी व्यक्ति की कोई सीमा नहीं होती। अंहकार में मनुष्य को अच्छे-बुरे किसी का भी होश नहीं रहता है।
अहंकार के कारण इंसान कभी दूसरों की सलाह नहीं मानता, अपनी गलती स्वीकार नहीं करता और दूसरों का सम्मान नहीं करता। ऐसा व्यक्ति अपने परिवार और दोस्तों को कष्ट पहुंचाने वाला होता है।
मोह यानी लगाव
सभी को किसी ना किसी वस्तु या व्यक्ति से लगाव जरूर होता है। यह मनुष्य के स्वभाव में शामिल होता है, परन्तु किसी भी वस्तु या व्यक्ति से अत्यधिक मोह भी बर्बादी का कारण बन सकता है। किसे से भी बहुत ज्यादा लगाव होने पर भी व्यक्ति सही-गलत का फैसला नहीं कर पाता है और उसके हर काम में उसका साथ देने लगता है।
जिसकी वजह से कई बार नुकसार का भी सामना करना पड़ जाता है, उदारहण के लिए धृतराष्ट्र। धृतराष्ट्र को अपने पुत्र दुर्यौधन के लिए बहुत अधिक लगाव था। जिसकी वजह से धृतराष्ट्र ने जीवनभर अधर्म में दुर्योधन का साथ दिया और इसी मोह की वजह से उनके पुरे कुल का नाश हो गया।
अतः किसी से भी बहुत ज्यादा मोह रखना गलत होता है, इसे छोड़ देना चाहिए।
रागु रोषु इरिषा मदु मोहु, जनि जनि सपनेहुं इन्ह के बस होहु।अर्थात- राग (अत्यधिक प्रेम), रोष (क्रोध), ईर्ष्या (जलन), मद (अहंकार) और मोह (लगाव)- इस पांच कामों से हमेशा नुकसार ही होता है, अतः इनसे सपने में भी दूर ही रहना चाहिए।
सकल प्रकार बिकार बिहाई, मन क्रम बचन करेहु सेवकाई।।
राग यानी अत्यधिक प्रेम
जीवन में किसी भी बात की अति बुरी होती है। किसी से भी अत्यधिक या हद से ज्यादा प्रेम करना गलत ही होता है। बहुत ज्यादा प्रेम की वजह से हम सही-गलत को नहीं पहचान पाते है। कई बार बहुत अधिक प्रेम की वजह से मनुष्य अधर्म तक कर जाता है जैसे गुरु द्रोणाचार्य।
गुरु द्रोणाचार्य जानते थे कि कौरव अधर्मी है, फिर भी अपने पुत्र अश्वत्थामा से बहुत अधिक प्रेम करने की वजह से वे जीवनभर अधर्म का साथ देते रहे। पुत्र से अत्यधिक प्रेम के कारण ही गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु भी हुई थी। इसलिए किसी से भी ज्यादा मोह नहीं करना चाहिए।
रोष यानी क्रोध
क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है। क्रोध में मनुष्य अच्छे-बुरे की पहचान नहीं कर पाता है। जिस व्यक्ति का स्वभाव गुस्से वाला होता है, वह बिना सोच-विचार किये किसी का भी बुरा कर सकता है। क्रोध की वजह से मनुष्य का स्वभाव दानव के समान हो जाता है।
क्रोध में किए गए कामों की वजह से बाद में शर्मिदा होना पड़ता है और कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है। इसलिए इस आदत को छोड़ देना चाहिए।
ईर्ष्या यानी जलन
जो मनुष्य दूसरों के प्रति अपने मन में ईर्ष्या या जलन की भावना रखता है, वह निश्चित ही पापी, छल-कपट करने वाला, धोखा देने वाला होता है।
वह दूसरों के नीचा दिखाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। जलन की भावना रखने वाले के लिए सही-गलत के कोई पैमाने नहीं होते हैं जैसे दुर्योधन। दुर्योधन सभी पांडवों की वीरता और प्रसिद्धि से जलता था। इसी जलन की भावना की वजह से दुर्योधन ने जीवनभर पांडवों का बूरा करने की कोशिश की और अंत में अपने कुल का नाश कर दिया।
अतः हमें ईष्या या जलन की भावना कभी अपने मन में नहीं आने देना चाहिए।
मद यानी अहंकार
सामाजिक जीवन में सभी के लिए कुछ सीमाएं होती हैं। हर व्यक्ति को उन सीमाओं का हमेशा पालन करना चाहिए, लेकिन अहंकारी व्यक्ति की कोई सीमा नहीं होती। अंहकार में मनुष्य को अच्छे-बुरे किसी का भी होश नहीं रहता है।
अहंकार के कारण इंसान कभी दूसरों की सलाह नहीं मानता, अपनी गलती स्वीकार नहीं करता और दूसरों का सम्मान नहीं करता। ऐसा व्यक्ति अपने परिवार और दोस्तों को कष्ट पहुंचाने वाला होता है।
मोह यानी लगाव
सभी को किसी ना किसी वस्तु या व्यक्ति से लगाव जरूर होता है। यह मनुष्य के स्वभाव में शामिल होता है, परन्तु किसी भी वस्तु या व्यक्ति से अत्यधिक मोह भी बर्बादी का कारण बन सकता है। किसे से भी बहुत ज्यादा लगाव होने पर भी व्यक्ति सही-गलत का फैसला नहीं कर पाता है और उसके हर काम में उसका साथ देने लगता है।
जिसकी वजह से कई बार नुकसार का भी सामना करना पड़ जाता है, उदारहण के लिए धृतराष्ट्र। धृतराष्ट्र को अपने पुत्र दुर्यौधन के लिए बहुत अधिक लगाव था। जिसकी वजह से धृतराष्ट्र ने जीवनभर अधर्म में दुर्योधन का साथ दिया और इसी मोह की वजह से उनके पुरे कुल का नाश हो गया।
अतः किसी से भी बहुत ज्यादा मोह रखना गलत होता है, इसे छोड़ देना चाहिए।
शानदार पोस्ट ... बहुत ही बढ़िया लगा पढ़कर .... Thanks for sharing such a nice article!! :) :)
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