एक मंत्र, इन उपायों से दूर हो सकती हैं बीमारियां और गरीबी TIPS


एक अक्षर का मंत्र, इन उपायों से दूर हो सकती हैं बीमारियां और गरीबी

उज्जैन। सृष्टि के आरंभ में सर्वप्रथम जो शब्द उत्पन्न हुआ, वह 'ऊँ’ ही था। पूजन से संबंधित सभी श्लोक एवं मंत्र का आरंभ इसी एकाक्षरी मंत्र से होता है। ऊँ वह सात्विक शक्ति है, जिसके जप के समय होने वाले स्पंदन से शरीर के सभी रोगाणुओं का नाश हो जाता है। ऊँ का बार-बार उच्चारण हमारे लिए कई प्रकार से सहायक होता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार बीमारियों को भगाने के अलावा हमारे आसपास के वातवरण को सुखद बनाने एवं जीवन में खुशहाली लाने के लिए भी इसका जप एवं ध्यान उपयोगी हैं।

कई शोधों में यह पाया गया है कि पुराणों और वेदों में आने वाले ऊँ मंत्र का उच्चारण शरीर के विभिन्न अंगों में तरंगे पैदा करता है और शरीर में नई उर्जा विकसित करता है।

कैसे करें उच्चारण - पांच अवयव- 'अ’ से अकार, 'उ’ से उकार एवं 'म’ से मकार, 'नाद’ और 'बिंदु’ इन पांचों को मिलाकर 'ऊँ’ एकाक्षरी मंत्र बनता है। आराम की अवस्था में बैठकर तर्जनी उंगली को अंगूठे पर लगाकर ज्ञान मुद्रा बना लें। उसके बाद पेड़ू (पेट के ठीक नीचे वाला भाग) से अ, हृदय से उ एवं नाक से म को नाद और बिंदु की ध्वनि सहित उच्चारित करें। श्वास को सामान्य बनाए रखें।

ऊँ का यह उच्चारण आत्मविश्वास में वृद्धि करेगा। मस्तिष्क में आने वाले नकारात्मक विचारों को दूर कर, सकारात्मक ऊर्जा का विकास करता है। शरीर के तंत्र सुचारु होकर ठीक ढंग से कार्य करते हैं तथा रक्त का संचार एक समान होता हैं, जिससे ब्लड प्रेशर एवं हृदय संबधी रोगों में लाभ होता है।(यहाँ क्लिक कर जाने हिन्दू संस्कृति मान्यताएँ व् उनके महत्ब)

धन की वृद्धि - जिसके यहां धन का अभाव हो, ऋण की अधिकता हो, दरिद्रता, व्यापार में हानि से परेशान हो, धन रुकता नहीं हो तथा कोई भी कार्य करने में बाधा आती हो, उन्हें पीले वस्त्र धारणकर, पीले आसन पर बैठकर पीले रंग के ऊँ का ध्यान करना चाहिए।

यह कार्य आप दिनभर में कभी भी कर सकते हैं, लेकिन सूर्योदय या सूर्यास्त के समय किया जाए तो ज्यादा लाभकारी होता है। जप के तत्काल बाद गर्म पदार्थों का सेवन नहीं करें। प्रतिदिन पंद्रह मिनट तक यह ध्यान, जाप करने से दरिद्रता और कामों में आने वाली बाधाएं दूर होने लगती हैं।

रोग निवारण - यदि किसी रोग से परेशान हैं तो ऊँ महामंत्र का जप करें। कुछ ही क्षणों में राहत होगी। मरीज लेटे हुए भी जाप कर सकता है। सर्दी जनित रोग में लाल रंग, वात रोग में सफेद, पित्त रोग में पीले, चोट अथवा घाव में नीले, घुटनों या जोड़ों के दर्द, नसों की समस्या, बुखार, कफ, जकडऩ आदि की शिकायत में नीले रंग के ऊँ का ध्यान आंख बंद कर करें।

मुंहासे या किसी चर्म रोग की स्थिति में अनामिका उंगली एवं अंगूठे के अग्रभाग को मिलाकर आराम से बैठ जाएं। दोनों हाथों को पैरों के घुटनों पर रखकर सफेद रंग के ऊँ का ध्यान करें। प्रतिदिन पांच से लेकर पंद्रह मिनट तक यह उपाय करने की कोशिश करें। यह ध्यान एवं जप आपकी त्वचा को चमकीला एवं कोमल बनाएगा।

वाद-विवादों से मुक्ति - यदि कोई व्यक्ति कानूनी विवाद में उलझा है और प्रयास के बाद भी विवाद हल नहीं हो रहा हो तो सूर्योदय से पहले सीधी हाथ की हथेली को उलटे हाथ हथेली पर रखें और पद्मासन में बैठ जाएं।

इसके बाद नीले रंग के ऊँ का ध्यान अपनी भौंहों के बीच करें। कुछ दिनों में आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा पैदा होगी तथा होरा का निर्माण होगा। इसके बाद आप किसी भी कार्य के लिए जाएंगे तो वहां के अधिकारी एवं विरोधी आपकी बातों का सम्मान करेंगे। आपके सभी कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाएंगे और विवादों का अंत होगा।

रिश्तों में मधुरता - परिवार में विवाद होता हो। पति-पत्नी में सांमजस्य नहीं हो या बच्चों के साथ तनाव रहता हो तो प्रतिदिन पंद्रह मिनट पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर, सफेद रंग के ऊँ का ध्यान एवं जप करें।

यदि पीपल के नीचे बैठकर यह उपाय कर पाना संभव नहीं हो तो घर में ही किसी शांत स्थान में बैठकर भी यह उपाय कर सकते हैं। आंखें आधी खुली रखें, दोनों हाथों की अनामिका उंगलियों को अंगूठे के मूल में लगाएं। ऐसा करने सें मन में शांति होगी। क्रोध खत्म होने से पारिवारिक विवादों का अंत होगा। शनिवार का जप विशेष फलदायक होता है।(यहाँ पढ़े इन 8 कारणों से डंसता(काटता) है सांप)

विद्या-बुद्धि की प्राप्ति 
जिसकी स्मरण शक्ति कमजोर हो, पढ़ाई में कमजोर विद्यार्थी और अधिक दिमाग और बोलचाल का काम करने वाले व्यक्तियों के लिए यह सर्वोत्तम उपासना है। प्रात:काल पूर्व दिशा की ओर मुंह कर, ज्ञान मुद्रा में बैठ जाएं तथा अधखुली आंखों से केसरी रंग के महामंत्र ऊं का ध्यान अपनी दोनों भौहों के बीच में करें। कम से कम 108 बार इसी विधि से ऊँ का उच्चारण करें।

इस उपासना से बुद्धि का विकास होता है, वाणी प्रखर होती है, ओजस्विता आती है। जप के बाद आंखों को धीरे से बंद कर, अपनी हथेलियों को रगड़कर समस्त अंग पर लगाने से अंग पुष्ट होते हैं एवं शरीर में कांति आती है।

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