शीघ्रपतन गुप्त रोग कारण इलाज shighrapatan rokne ke upay


शुक्र को 'वीर्य' भी कहते हैं वीर्य का अर्थ होता है ऊर्जा और शुक्र ऊर्जावान, मलरहित सर्वशुद्ध धातु होती है, इसीलिए इसे 'वीर्य' नाम दिया गया है। वीर्य में नया शरीर पैदा करने की शक्ति होती है, इसलिए भी इस धातु को 'वीर्य' कहा गया है 

शुक्राणु तथा शुक्राशय ग्रंथि, पौरुष ग्रंथि तथा मूत्रप्रसेकीय ग्रंथियों से होने वाले स्राव का मिश्रण शुक्र यानी वीर्य है। शुक्रल द्रव का लगभग 30 प्रतिशत भाग पौरुष ग्रंथि से निकलने वाले स्वच्छ स्राव से और 70 प्रतिशत भाग शुक्राशय ग्रंथि से निकलने वाला होता है, जो मिलकर शुक्रलद्रव बनता है। यही द्रव स्खलन के समय शिश्न से बाहर निकलता है।

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भावप्रकाश ग्रंथ के अनुसार जिस प्रकार दूध में घी, गन्ने में रस छिपा रहता है, उसी प्रकार सारे शरीर में शुक्र धातु छिपे रूप में व्याप्त रहती है। मर्द और नामर्द का फर्क इसी के कारण से होता है।


शरीर की सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र परम श्रेष्ठ होती है। रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र ये सात धातुएं शरीर को धारण करती हैं, ये पुष्ट होती हैं और हमारा आहार अंत में सातवीं धातु शुक्र के रूप में बनता है।

सातों धातुओं के पुष्ट और सबल होने पर ही हमारा शरीर स्वस्थ रहता है। शरीर में सबसे मुख्य और प्रबल वस्तु शुक्र होती है। आयुर्वेद में लिखा है कि शुक्र को सोच-समझकर प्राकृतिक ढंग से ही खर्च करना चाहिए।

आज जो 'बीज' शब्द प्रचलित है, यह 'वीर्य' से ही बना हुआ मालूम पड़ता है। जैसे अच्छा बीज हो तो उपज भी अच्छी होती है, इसी प्रकार शुद्ध और दोषरहित वीर्य से अच्छे शरीर वाली संतान पैदा होती है।

शुद्ध और दोषरहित वीर्य गाढ़ा, चिकना, शुभ्र-सफेद, मलाई जैसा मधुर, जलनरहित और बिल्लौरी शीशे जैसा स्वच्छ होता है। पतला, मैला, पीला, पतले दूध जैसा, बदबूदार, झागदार और पानी की तरह टपकने वाला वीर्य दूषित, कमजोर और विकारयुक्त होता है।

वीर्य दूषित कैसे होता है?

अधिक मैथुन करने, सदैव कामुक विचार करते रहने, शक्ति से अधिक श्रम या व्यायाम करने, पोषक आहार का सेवन करने, मादक पदार्थों का सेवन करने, अप्राकृतिक तरीकों से वीर्यपात करने, अश्लील साहित्य पढ़ने या चित्र देखने, प्रकृति विरुद्ध पदार्थों का सेवन करने, रोगग्रस्त व्यक्ति के साथ यौन संबंध करने, तेज मिर्च-मसालेदार और खटाईयुक्त पदार्थों का अति सेवन करने,

 मधुर स्निग्ध और धातु पौष्टिक पदार्थों का सेवन न करने, नमकीन, तीखे व चटपटे व्यंजनों का अति सेवन करने, चिंता, शोक, भय और मानसिक तनाव से सदा ग्रस्त रहने, किसी गुप्त संक्रामक रोग के हो जाने, क्षय रोग होने, वृद्धावस्था से और शरीर एवं स्वास्थ्य को हानि करने वाले पदार्थों का सेवन करने से वीर्य दूषित होता है।

वीर्य शुद्ध कैसे रहता है?

वीर्य को दूषित करने वाले उपर्युक्त सभी कारणों से बचे रहने और इनके विपरीत आहार-विहार एवं आचरण करने से शरीर की सभी धातुएं शुद्ध एवं पुष्ट बनी रहेंगी तो जाहिर है कि वीर्य भी शुद्ध तथा पुष्ट बना रहेगा।

वीर्य शुद्ध और पुष्ट अवस्था में रहेगा तो न कभी सोते हुए स्वप्नदोष होगा और न कभी जाते हुए शीघ्रपतन ही होगा। जब ये व्याधियां न होंगी तो इनका इलाज कराने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।

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