डॉक्टर जब इलाज में लापरवाही दिखाएं तो कानून जरुर पड़े IPC Acts


बहुत से मामलों में ऐसा होता हे जब doctor या अस्पताल की गलतियों के चलते मरीज को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक नुकसान पहुँचता हे. इसे ही क़ानूनी भाषा में चिकित्सकीय लापरवाही कहा जाता हे. इसके लिए आपको कानून की जानकारी होना जरुरी हे. अगर कभी आपके साथ भी ऐसा हो तो आप ठोस कदम उठा सकें. आईये जानते हे आपके अधिकार और कानून.
1. क्या हे चिकित्सकीय लापरवाही
यह दो आधार पर मानी जाती हे, पहला – जब doctor योग्यता ना होते हुए किसी मरीज की जिम्मेदारी ले और उसे नुकसान पहुंचे और दूसरा – जब योग्यता होते हुए doctor अपने मरीज पर परिस्थितियों के अनुसार ध्यान न दें, सही इलाज ना करें और अन्य लापरवाही बरतें, जिससे किसी भी प्रकार की शारीरिक या मानसिक नुकसान हो. इसमें doctor के सहायकों की गलतियाँ भी शामिल हे, जिन पर नजर रखना उसकी जिम्मेदारी होती हे. अदालत में सिर्फ पीड़ित को यह साबित करना होता हे की doctor की गलती के चलते उसे या उसके पारिवारिक सदस्य को नुकसान पहुंचा हे. READ NEXT ->>रहस्यमय जगहें वैज्ञानिक आज तक नहीं सुलझा पाये
2. कोन कर सकता हे मुकदमा
doctor की लापरवाही के केस में पीड़ित खुद या मृत्यु के बाद उसका वारिस या कोई भी नजदीकी रिश्तेदार कानून की शरण ले सकता हे. आपराधिक मुकदमा कभी भी दायर किया जा सकता हे. लेकिन उपभोक्ता अदालत में दो साल के भीतर मुकदमा दायर करना होता हे. यह बाद में भी किया जा सकता हे, परन्तु इसके लिए उचित कारण जरुरी होता हे. मुकदमा यदि 20 लाख रूपये के हर्जाने का हो तो जिला अदालत, 20 लाख से एक करोड़ का हो तो राज्य अदालत और एक करोड़ से अधिक का हो तो रास्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में दर्ज़ किया जा सकता हे.

3. मदद के लिए कानून
नुकसान होने पर पीड़ित तीन तरह के उपाय कर सकता हे. नुकसान की भरपाई के लिए उपभोक्ता फ़ोरम में मुकदमा दायर कर सकता हे, doctor को सज़ा दिलाने के लिए अदालत जाया जा सकता हे और doctor का लाइसेंस रद्द कराने के लिए state medical काउन्सिल में शिकायत की जा सकती हे.

4. इन चार धाराओं के तहत मिलती हे सज़ा
लापरवाही से मृत्यु होने पर IPC की धारा 304 (A) के तहत doctor को दो साल की जेल हो सकती हे. जीवन को खतरा उत्पन्न होने पर धारा 336 में तीन माह की जेल का प्रावधान हे. छोटी चोट की स्थिति में धारा 337 के तहत doctor को 6 माह की जेल हो सकती हे. गंभीर शारीरिक और मानसिक चोट की स्थिति में धारा 338 के तहत दो साल का कारावास भी हो सकता हे.

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