दूरदर्शन के कार्यक्रम जिन्होंने हमारा बचपन यादगार बनाया Doordarshan serials
20 October 2015
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केबल टीवी क्रन्ति से पहले दूरदर्शन ने टीवी पर राज किया .इसका कारण सिर्फ यह नहीं था कि दूरदर्शन एकमात्र चैनल था ,कारण यह भी था कि दूरदर्शन हर आयु-वर्ग का मनोरंजन करता था. केबल टीवी से चैनल तो बहुत बढ़ गये है पर हम कितने चैनल देखते है ? कितनी देर देखते है ? देखते क्या हैं..बस चैनल बदलते रहते हैं. चलिए थोडा सा दूरदर्शन के दिनों को याद करते हैं .
बच्चो के कार्यक्रम : दूरदर्शन पर सिर्फ रविवार को कार्टून आते थे . चूँकि भारत की एनीमेशन इंडस्ट्री उस समय विकसित नहीं थी इसलिए डिज्नी के कार्टून हिंदी में डब करके दिखाए जाते थे जैसे मोगली जंगल बुक , टेलस्पिन , डक टेल्स ,अलादीन ,ऐलिस इन वंडरलैंड आदि. “टर रम टू ” एक मजेदार कार्यक्रम था जिसका उद्देश्य मनोरंजन के साथ शिक्षा देने का था. मेरे सबसे प्रिय कार्टूनों में से एक का नाम था ‘वर्तमान’ ,जोकि दोपहर में आया करता था . इस कार्टून में एनीमेशन बहुत सी औसत स्तर का हुआ करता था परन्तु कहानी ,पात्र और शिक्षा बेहतरीन होती थी. इन्टरनेट पर बहुत खोजने पर भी इसके विडियो नहीं मिल रहे मुझे. अगर किसी को पता हो तो कृपया लिंक बताने का कष्ट करें.
पोटली बाबा की कार्यक्रम में एक बूढा बाबा कहानियां सुनाते थे. बच्चों के लिए रोचक ज्ञानवर्धक कार्यक्रम तरंग आता था जोकि सीआईईटी की तरफ से प्रायोजित हुआ करता था. तरंग का शुरुआती गाना हुआ करता था — सीआईईटी ले कर आया तरंग तरंग, उमंग है तरंग, पहेली पहली पहली है तरंग, मज़ा मज़ा मज़ा है तरंग—. लाल बुझक्कड़ चाचा, गोपू और गीतू के किरदार और उनकी सरल बातें हम मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चों से मिलती हुई लगती थी.
अ आ इ ई हो गयी छुट्टी अ आ इ ई हो गयी छुट्टी
हो गयी छुट्टी…
बंद पुस्तकें कापी बस्ते अब दिन बीते हसते हसते
रंग जमेगा आई छुट्टी धूम मचेगा आई छुट्टी
अ आ इ ई हो गयी छुट्टी अ आ इ ई हो गयी छुट्टी
हो गयी छुट्टी…
गर्मी की छुट्टियों में छुट्टी-छुट्टी आया करता था जिसके लिए हम लोगों में बड़ा उत्साह रहता था पर ज्यादा नही, क्योंकि छुट्टी-छुट्टी में आने वाले कार्यक्रम के सारे एपिसोड बार-बार साल दरसाल वही दिखाए जाते थे. कुछ नहीं से कुछ सही, गर्मी के लम्बे दिन और धूप से खेलना भी नहीं होता था सो टीवी ही सही.
सप्ताहांत में दोपहर में क्षेत्रीय भाषा में फिल्मे आती थी ज्यादातर दक्षिण भारत की. फिल्म में स्क्रीन के नीचे इंग्लिश में सबटाइटल होते थे और कभी कभार हिंदी में भी. मैंने तो कई फ़िल्में देखी, कुछ आर्टिस्टिक और हट-के टाइप की होती थी ये फ़िल्में , बॉलीवुड की फिल्मों से हटकर ज्यादा सरल और असल जिन्दगी से मिलती हुई सी.
रात में आने वाली हिंदी फिल्मों में पहले बस एक बार प्रचार आते थे परन्तु बाद में इतने ज्यादा आने लगे कि कितनों ने ही रात की फ़िल्में देखना छोड़ दिया. ‘जीत’ फिल्म अक्सर आती थी जिसमे सलमान खान, करिश्मा कपूर, सनी देओल थे. प्रचार डालने के चक्कर में फिल्म को इतना काटा जाता था कि अंत में जा के समझ ही नहीं आता था कि हो क्या रहा है. ” जीत” फिल्म इस चक्कर में मैंने कई बार देखी और हर बार मुझे नए-नए सीन देखने मिलते थे क्यूंकि कमर्शिअल एड हर बार अलग अलग जगह जोड़े जाते थे. जीत, जिद्दी , घायल ,घातक , बिच्छू , बरसात , जंजीर कईयों बार दिखाई गयी थी.
चूंकि घरवाले रात की फिल्म देखने नहीं देते थे ,सो मै सबके सोने का इंतज़ार करता ,फिर टीवी चला के वॉल्यूम बटन एकदम धीमे करके पूरी फिल्म खड़े-खड़े स्पीकर से कान सटाए ही देख डालता था . पकडे जाना तो स्वाभाविक था पर फिर भी बहुत फिल्मे देखी मैंने ऐसे ही …वो जमाना ही था टीवी की दीवानगी का.
स्वतंत्रता दिवस , गाँधी जयंती पर रिचर्ड एटनबरो की बनाई हुई और बेन किंग्सले अभिनीत फिल्म “गाँधी” जरुर दिखाई जाती थी. यह एक आश्चर्य वाली बात है की गाँधी जी के ऊपर सबसे अच्छी फिल्म एक विदेशी ने बनायीं. बेन किंग्सले मूलतः गुजराती पिता की संतान हैं और बेन का असली नाम ‘कृष्ण पंडित भान जी‘ है. शायद गाँधी जी की तरह एक गुजराती होने की वजह से वो यह किरदार परदे पर जीवंत करने में कामयाब रहे.
कृषि दर्शन किसानो के ज्ञान और मार्गदर्शन का प्रोग्राम था जिस से की शाम की शुरुआत होती थी . भले ही हमलोगों को इस सीरियल ने बोर किया हो परन्तु यह दूरदर्शन के सबसे सफल कार्यक्रमों में से एक था जिससे हजारों गांवों के लाखों किसानो का भला हुआ. इस कार्यक्रम के अंत में लोकगीत आते थे , जब वो आने लगता था तब मै राहत की सांस लेता था की चलो अब ख़तम होने वाला है .
फोटो स्रोत : कृषि दर्शन
फोटो स्रोत : कृषि दर्शन
चित्रहार और रंगोली फ़िल्मी गाने देखने के एकमात्र स्रोत थे. मजे बात ये थी की इनमे कभी भी एकदम नए रिलीज़ गाने और वो भी पूरे, कभी नहीं दिखाये जाते थे. शुरुआत में ब्लैक एंड वाइट गाने आते थे (जो की बोझ लगते थे पर बड़ों के पसंद की वजह से पूरे चलते थे) और जब हम बच्चों का उत्साह चरम पर होता की अंत के नए गाने देखे ,कोई न कोई बड़ा अवश्य टीवी बंद कर देता था. कितनी बार होता कि टीवी चल रही होती कोई बड़ा आस-पास न होता, हम इंतज़ार कर रहे होते कि नया गाना बस आने वाला है कि अचानक कही से मम्मी या पापा आ कर टीवी बंद कर देते .
कसम से मेरी आँखों में तो आंसू आ जाते थे और मै जानता हूँ की ये असम्भव है की आप भी कभी रोये न हो. ‘मोहरा’ फिल्म के ‘तू चीज़ बड़ी है मस्त मस्त’ गाने को देख कर शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने सर पर रुमाल, अंगोछा आदि बांध कर खुद को शीशे में न देखा हो और डांस स्टेप की नक़ल न की हो.
‘साजन‘ का गाना ‘ बहोत प्यार करते हैं तुमको सनम’ शायद कुछ ज्यादा ही आता था. मेरा बचपना था तब और कोई ऐसा अरमान कतई नहीं था सो मै बहुत ही पकता था इस गाने से .
रामानंद सागर जी के सीरियल कैसे भुला सकता है कोई. रामायण उनका सबसे बेहतरीन कार्यक्रम था जिसने टीवी-भक्ति लोगो में पैदा की . इसके अतिरिक्त ऑंखें, जय गंगा मैया, अलिफ़ लैला, जय श्री कृष्णा, तिलिस्म-ए-होशरुबा, हातिमताई आदि कार्यक्रम भी रामानंद सागर जी के प्रोडक्शन में बने थे. मजेदार बात यह होती थी कि रामानंद सागर के सभी कार्यक्रमों में ज्यादातर वही कलाकार होते थे, हर कार्यक्रम में उन्हें ही लिया जाता था.
कई बार वही कलाकार किसी सीरियल में कोई मुस्लिम शेख तो किसी में महामंत्री बन कर एक ही दिन में दो बार दिखता था. कार्यक्रमों के ज्यादातर सेट, कपडे, हथियार, सामान भी वही होते थे. स्पेशल इफेक्ट्स भी बहुत सामान्य स्तर का होता था. सीरियल के किसी सीन में कलाकारों के चेहरे के भावो को बार-बार दिखाना, आती जाती सेना को आगे से, पीछे से, बीच से बार-बार दिखाकर एपिसोड को खीचना आदि जैसे बहुत से सीनों की शुरुआत शायद इन्ही सीरियल से शुरू हुई थी.
टर्निंग पॉइंट ज्ञान विज्ञानं से भरपूर कार्यक्रम होता था जिसमे गिरीश कर्नाड एंकर हुआ करते थे. पर्यावरण से सम्बंधित माइक पाण्डेय का कार्यक्रम ‘अर्थ मैटर्स ‘आता था . सिद्धार्थ काक और रेणुका शहाने ‘सुरभि ‘ में आते थे और एक साथ नमस्कार बोल कर कार्यक्रम शुरू करते थे . भारत की विभिन्न विविधताओं और अजब अनोखे रंगों को प्रदर्शित करने वाला यह कार्यक्रम बड़े-बच्चों सभी का स्वस्थ मनोरंजन करता था.
मेरे ख्याल में सुरभि पहला कार्यक्रम था जिसमे नियमित इनामी प्रतियोगिता होती थी .भारत के संस्कृति और सामान्य ज्ञान से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते थे और इनाम में भारत के विभिन्न राज्यों के टूर-पैकेज दिए जाते थे. एक एपिसोड में एक खेत सी जगह दिखाई गयी जहा मचान सा बाँध कर पौधे लगाये गए थे जिनकी बेलें उन मचानो से लटक रही थी. पूछा गया की ये किस चीज़ की खेती है जो की असल में पान की थी. उस एपिसोड में लाखों लोगों ने उत्तर भेजे जिनके पोस्टकार्ड अगले एपिसोड में दिखाया गया था ,उसे देखकर मुझे पहली बार अंदाजा लगा की सुरभि कितना लोकप्रिय सीरियल था.
दूरदर्शन में कभी कभी नए प्रयोग भी देखने को मिलते थे. जैसे की सन 2001 में जब मैं 12वीं कक्षा में था और बोर्ड के एग्जाम चल रहे थे, उस समय दिन में 12 बजे से एक बजे तक डिस्कवरी चैनल के आधे-आधे घंटे के दो कार्यक्रम दिखाये जाते थे जिसे में रोज़ देखता था और देखने के बाद अपने एग्जाम सेंटर जाता था जहा पर 2 बजे से मेरे बोर्ड एग्जाम होते थे.
शनिवार सुबह 10 बजे के लगभग डॉक्युमेंट्री का कार्यक्रम आता था ‘द ओपन फ्रेम’ जिसमे भारत की बेहतरीन पुरस्कृत डाक्युमेंट्रीज़ दिखाई जाती थी.
फोटो स्रोत : 'जीत ' फिल्म बीसों बार दिखाई गयी और हर बार मैंने नए सीन देखे
फोटो स्रोत : ‘जीत ‘ फिल्म बीसों बार दिखाई गयी और हर बार मैंने नए सीन देखे
अब बात करते हैं कुछ धारावाहिक की. ये जो है जिंदगी, मुंगेरीलाल के हसीं सपने, विक्रम-बेताल, रामायण, महाभारत, टीपू सुल्तान, अकबर द ग्रेट, व्योमकेश बक्शी, द ग्रेट मराठा, अंजुमन, सुराग, तहकीकात, संसार, मालगुडी डेज, तेनालीराम, बुनियाद, हम लोग, जय हनुमान, श्री कृष्णा, ॐ नमः शिवाय, कैप्टेन व्योम, चंद्रकांता, फ़र्ज़, वक़्त की रफ़्तार, अपराजिता, इतिहास, शांति, औरत, फरमान, देख भाई देख, एक से बढ़कर एक, ट्रक धिना धिन, भारत एक खोज, इंतज़ार और सही, चाणक्य, अलिफ़ लैला, आँखें, आपबीती, हम पंछी एक डाल के, फ्लॉप शो आदि ने हमारा मनोरंजन किया .
बच्चो के कार्यक्रम : दूरदर्शन पर सिर्फ रविवार को कार्टून आते थे . चूँकि भारत की एनीमेशन इंडस्ट्री उस समय विकसित नहीं थी इसलिए डिज्नी के कार्टून हिंदी में डब करके दिखाए जाते थे जैसे मोगली जंगल बुक , टेलस्पिन , डक टेल्स ,अलादीन ,ऐलिस इन वंडरलैंड आदि. “टर रम टू ” एक मजेदार कार्यक्रम था जिसका उद्देश्य मनोरंजन के साथ शिक्षा देने का था. मेरे सबसे प्रिय कार्टूनों में से एक का नाम था ‘वर्तमान’ ,जोकि दोपहर में आया करता था . इस कार्टून में एनीमेशन बहुत सी औसत स्तर का हुआ करता था परन्तु कहानी ,पात्र और शिक्षा बेहतरीन होती थी. इन्टरनेट पर बहुत खोजने पर भी इसके विडियो नहीं मिल रहे मुझे. अगर किसी को पता हो तो कृपया लिंक बताने का कष्ट करें.
पोटली बाबा की कार्यक्रम में एक बूढा बाबा कहानियां सुनाते थे. बच्चों के लिए रोचक ज्ञानवर्धक कार्यक्रम तरंग आता था जोकि सीआईईटी की तरफ से प्रायोजित हुआ करता था. तरंग का शुरुआती गाना हुआ करता था — सीआईईटी ले कर आया तरंग तरंग, उमंग है तरंग, पहेली पहली पहली है तरंग, मज़ा मज़ा मज़ा है तरंग—. लाल बुझक्कड़ चाचा, गोपू और गीतू के किरदार और उनकी सरल बातें हम मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चों से मिलती हुई लगती थी.
अ आ इ ई हो गयी छुट्टी अ आ इ ई हो गयी छुट्टी
हो गयी छुट्टी…
बंद पुस्तकें कापी बस्ते अब दिन बीते हसते हसते
रंग जमेगा आई छुट्टी धूम मचेगा आई छुट्टी
अ आ इ ई हो गयी छुट्टी अ आ इ ई हो गयी छुट्टी
हो गयी छुट्टी…
गर्मी की छुट्टियों में छुट्टी-छुट्टी आया करता था जिसके लिए हम लोगों में बड़ा उत्साह रहता था पर ज्यादा नही, क्योंकि छुट्टी-छुट्टी में आने वाले कार्यक्रम के सारे एपिसोड बार-बार साल दरसाल वही दिखाए जाते थे. कुछ नहीं से कुछ सही, गर्मी के लम्बे दिन और धूप से खेलना भी नहीं होता था सो टीवी ही सही.
सप्ताहांत में दोपहर में क्षेत्रीय भाषा में फिल्मे आती थी ज्यादातर दक्षिण भारत की. फिल्म में स्क्रीन के नीचे इंग्लिश में सबटाइटल होते थे और कभी कभार हिंदी में भी. मैंने तो कई फ़िल्में देखी, कुछ आर्टिस्टिक और हट-के टाइप की होती थी ये फ़िल्में , बॉलीवुड की फिल्मों से हटकर ज्यादा सरल और असल जिन्दगी से मिलती हुई सी.
रात में आने वाली हिंदी फिल्मों में पहले बस एक बार प्रचार आते थे परन्तु बाद में इतने ज्यादा आने लगे कि कितनों ने ही रात की फ़िल्में देखना छोड़ दिया. ‘जीत’ फिल्म अक्सर आती थी जिसमे सलमान खान, करिश्मा कपूर, सनी देओल थे. प्रचार डालने के चक्कर में फिल्म को इतना काटा जाता था कि अंत में जा के समझ ही नहीं आता था कि हो क्या रहा है. ” जीत” फिल्म इस चक्कर में मैंने कई बार देखी और हर बार मुझे नए-नए सीन देखने मिलते थे क्यूंकि कमर्शिअल एड हर बार अलग अलग जगह जोड़े जाते थे. जीत, जिद्दी , घायल ,घातक , बिच्छू , बरसात , जंजीर कईयों बार दिखाई गयी थी.
चूंकि घरवाले रात की फिल्म देखने नहीं देते थे ,सो मै सबके सोने का इंतज़ार करता ,फिर टीवी चला के वॉल्यूम बटन एकदम धीमे करके पूरी फिल्म खड़े-खड़े स्पीकर से कान सटाए ही देख डालता था . पकडे जाना तो स्वाभाविक था पर फिर भी बहुत फिल्मे देखी मैंने ऐसे ही …वो जमाना ही था टीवी की दीवानगी का.
स्वतंत्रता दिवस , गाँधी जयंती पर रिचर्ड एटनबरो की बनाई हुई और बेन किंग्सले अभिनीत फिल्म “गाँधी” जरुर दिखाई जाती थी. यह एक आश्चर्य वाली बात है की गाँधी जी के ऊपर सबसे अच्छी फिल्म एक विदेशी ने बनायीं. बेन किंग्सले मूलतः गुजराती पिता की संतान हैं और बेन का असली नाम ‘कृष्ण पंडित भान जी‘ है. शायद गाँधी जी की तरह एक गुजराती होने की वजह से वो यह किरदार परदे पर जीवंत करने में कामयाब रहे.
कृषि दर्शन किसानो के ज्ञान और मार्गदर्शन का प्रोग्राम था जिस से की शाम की शुरुआत होती थी . भले ही हमलोगों को इस सीरियल ने बोर किया हो परन्तु यह दूरदर्शन के सबसे सफल कार्यक्रमों में से एक था जिससे हजारों गांवों के लाखों किसानो का भला हुआ. इस कार्यक्रम के अंत में लोकगीत आते थे , जब वो आने लगता था तब मै राहत की सांस लेता था की चलो अब ख़तम होने वाला है .
फोटो स्रोत : कृषि दर्शन
फोटो स्रोत : कृषि दर्शन
चित्रहार और रंगोली फ़िल्मी गाने देखने के एकमात्र स्रोत थे. मजे बात ये थी की इनमे कभी भी एकदम नए रिलीज़ गाने और वो भी पूरे, कभी नहीं दिखाये जाते थे. शुरुआत में ब्लैक एंड वाइट गाने आते थे (जो की बोझ लगते थे पर बड़ों के पसंद की वजह से पूरे चलते थे) और जब हम बच्चों का उत्साह चरम पर होता की अंत के नए गाने देखे ,कोई न कोई बड़ा अवश्य टीवी बंद कर देता था. कितनी बार होता कि टीवी चल रही होती कोई बड़ा आस-पास न होता, हम इंतज़ार कर रहे होते कि नया गाना बस आने वाला है कि अचानक कही से मम्मी या पापा आ कर टीवी बंद कर देते .
कसम से मेरी आँखों में तो आंसू आ जाते थे और मै जानता हूँ की ये असम्भव है की आप भी कभी रोये न हो. ‘मोहरा’ फिल्म के ‘तू चीज़ बड़ी है मस्त मस्त’ गाने को देख कर शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने सर पर रुमाल, अंगोछा आदि बांध कर खुद को शीशे में न देखा हो और डांस स्टेप की नक़ल न की हो.
‘साजन‘ का गाना ‘ बहोत प्यार करते हैं तुमको सनम’ शायद कुछ ज्यादा ही आता था. मेरा बचपना था तब और कोई ऐसा अरमान कतई नहीं था सो मै बहुत ही पकता था इस गाने से .
रामानंद सागर जी के सीरियल कैसे भुला सकता है कोई. रामायण उनका सबसे बेहतरीन कार्यक्रम था जिसने टीवी-भक्ति लोगो में पैदा की . इसके अतिरिक्त ऑंखें, जय गंगा मैया, अलिफ़ लैला, जय श्री कृष्णा, तिलिस्म-ए-होशरुबा, हातिमताई आदि कार्यक्रम भी रामानंद सागर जी के प्रोडक्शन में बने थे. मजेदार बात यह होती थी कि रामानंद सागर के सभी कार्यक्रमों में ज्यादातर वही कलाकार होते थे, हर कार्यक्रम में उन्हें ही लिया जाता था.
कई बार वही कलाकार किसी सीरियल में कोई मुस्लिम शेख तो किसी में महामंत्री बन कर एक ही दिन में दो बार दिखता था. कार्यक्रमों के ज्यादातर सेट, कपडे, हथियार, सामान भी वही होते थे. स्पेशल इफेक्ट्स भी बहुत सामान्य स्तर का होता था. सीरियल के किसी सीन में कलाकारों के चेहरे के भावो को बार-बार दिखाना, आती जाती सेना को आगे से, पीछे से, बीच से बार-बार दिखाकर एपिसोड को खीचना आदि जैसे बहुत से सीनों की शुरुआत शायद इन्ही सीरियल से शुरू हुई थी.
टर्निंग पॉइंट ज्ञान विज्ञानं से भरपूर कार्यक्रम होता था जिसमे गिरीश कर्नाड एंकर हुआ करते थे. पर्यावरण से सम्बंधित माइक पाण्डेय का कार्यक्रम ‘अर्थ मैटर्स ‘आता था . सिद्धार्थ काक और रेणुका शहाने ‘सुरभि ‘ में आते थे और एक साथ नमस्कार बोल कर कार्यक्रम शुरू करते थे . भारत की विभिन्न विविधताओं और अजब अनोखे रंगों को प्रदर्शित करने वाला यह कार्यक्रम बड़े-बच्चों सभी का स्वस्थ मनोरंजन करता था.
मेरे ख्याल में सुरभि पहला कार्यक्रम था जिसमे नियमित इनामी प्रतियोगिता होती थी .भारत के संस्कृति और सामान्य ज्ञान से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते थे और इनाम में भारत के विभिन्न राज्यों के टूर-पैकेज दिए जाते थे. एक एपिसोड में एक खेत सी जगह दिखाई गयी जहा मचान सा बाँध कर पौधे लगाये गए थे जिनकी बेलें उन मचानो से लटक रही थी. पूछा गया की ये किस चीज़ की खेती है जो की असल में पान की थी. उस एपिसोड में लाखों लोगों ने उत्तर भेजे जिनके पोस्टकार्ड अगले एपिसोड में दिखाया गया था ,उसे देखकर मुझे पहली बार अंदाजा लगा की सुरभि कितना लोकप्रिय सीरियल था.
दूरदर्शन में कभी कभी नए प्रयोग भी देखने को मिलते थे. जैसे की सन 2001 में जब मैं 12वीं कक्षा में था और बोर्ड के एग्जाम चल रहे थे, उस समय दिन में 12 बजे से एक बजे तक डिस्कवरी चैनल के आधे-आधे घंटे के दो कार्यक्रम दिखाये जाते थे जिसे में रोज़ देखता था और देखने के बाद अपने एग्जाम सेंटर जाता था जहा पर 2 बजे से मेरे बोर्ड एग्जाम होते थे.
शनिवार सुबह 10 बजे के लगभग डॉक्युमेंट्री का कार्यक्रम आता था ‘द ओपन फ्रेम’ जिसमे भारत की बेहतरीन पुरस्कृत डाक्युमेंट्रीज़ दिखाई जाती थी.
फोटो स्रोत : 'जीत ' फिल्म बीसों बार दिखाई गयी और हर बार मैंने नए सीन देखे
फोटो स्रोत : ‘जीत ‘ फिल्म बीसों बार दिखाई गयी और हर बार मैंने नए सीन देखे
अब बात करते हैं कुछ धारावाहिक की. ये जो है जिंदगी, मुंगेरीलाल के हसीं सपने, विक्रम-बेताल, रामायण, महाभारत, टीपू सुल्तान, अकबर द ग्रेट, व्योमकेश बक्शी, द ग्रेट मराठा, अंजुमन, सुराग, तहकीकात, संसार, मालगुडी डेज, तेनालीराम, बुनियाद, हम लोग, जय हनुमान, श्री कृष्णा, ॐ नमः शिवाय, कैप्टेन व्योम, चंद्रकांता, फ़र्ज़, वक़्त की रफ़्तार, अपराजिता, इतिहास, शांति, औरत, फरमान, देख भाई देख, एक से बढ़कर एक, ट्रक धिना धिन, भारत एक खोज, इंतज़ार और सही, चाणक्य, अलिफ़ लैला, आँखें, आपबीती, हम पंछी एक डाल के, फ्लॉप शो आदि ने हमारा मनोरंजन किया .
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