काशी ज्ञानवापी विवाद क्या है ज्ञानवापी मस्जिद इतिहास कोर्ट फैसला समाचार | Varanasi kashi vishwanath mandir gyanvapi mosque case temple
9 April 2021
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आज जान लो काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद Varanasi kashi vishwanath temple case gyanvapi vivad kya hai gyanvapi mosque case reality Court order today news - वनारस काशी 392 वर्ष पूर्व से यह विवाद हिन्दू मुस्लिम में लगभग चला आ रहा है वर्ष 1992 में काशी के कोर्ट में हिंदू धर्म के लोगो ने केस लगाया था जिसका कोर्ट ने
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद इतिहास
हिंदू पक्ष का दावा है कि इस विवादित ढांचे के नीचे ज्योतिर्लिंग है. यही नहीं ढांचे की दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र भी प्रदर्शित है. दावा किया जाता ... दावा है कि यह मंदिर अनंतकाल से है और 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने इस मंदिर का पुनर्निमाण कराया। अकबर के शासन के दौरान भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया।
Varanasi kashi vishwanath mandir gyanvapi mosque case temple news hindi |
याचिकाकर्ता का दावा है कि 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब के फरमान पर स्थानीय अधिकारियों ने 'स्वयंभू भगवान विशेश्वर का मंदिर गिरा दिया और उसके स्थान पर मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल करते हुए मस्जिद का निर्माण किया।' वादी पांडे का दावा है कि विवादित परिसर में भगवान विशेश्वर का 100 फीट ऊंचा ज्योतिर्लिंग मौजूद है।
इस मामले में साल 1991 में तीन लोगों ने पंडित सोमनाथ व्यास, (व्यास के पूर्वज इस मंदिर के पुजारी रहे हैं), संस्कृत के प्रोफेसर डॉ रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने कोर्ट में मुकदमा दायर किया। दो याचिकाकर्ताओं व्यास एवं शर्मा का निधन हो चुका है।
Court on kashi vishwanath mandir gyanvapi mosque
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भारतीय पुरातत्व विभाग को काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित स्थल पर सर्वेक्षण कराने की मंजूरी
सर्वेक्षण के दौरान मुस्लिम समुदाय से संबंधित लोगों को विवादित स्थल पर नमाज अदा करने से रोका नहीं जाएगा
सर्वेक्षण के दौरान कमिटी इस बात को सुनिश्चित करेगी कि मुस्लिम समुदाय से संबंधित लोगों को विवादित स्थल पर नमाज अदा करने से न रोका जाए। समानांतर खुदाई तभी होगी जब कमिटी इस निष्कर्ष पर पहुंचेगी कि इससे निश्चित निर्णय के बाबत अवशेष जमीन के नीचे मिलने की संभवना है। सर्वेक्षण के लिए डायरेक्टर जनरल 5 सदस्यीय टीम गठित करेंगे जो पुरातत्व विज्ञान में पारंगत और विशेषज्ञ होंगे। कमिटी में दो अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य भी शामिल किए जाएंगे।
काशी विश्वनाथ मंदिर मस्जिद विवाद today updated
आज social media par यह popular hastag raha #काशी_मथुरा_हमारा_है
2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के बीच अगर किसी शहर की शक्ल में फ़र्क़ दिखता है तो उसमें बनारस भी एक है. काशी या वाराणसी की इस प्राचीन और ऐतिहासिक शहर का नवीनीकरण पिछले कुछ वर्षों से जारी है. साथ ही जारी हैं नवीनीकरण से जुड़े विवाद जिनमें शीर्ष स्थान की होड़ में बहुचर्चित काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण शामिल है.Enough is enough we can't tolerate anymore it's time to reclaim our temple's #काशी_मथुरा_हमारा_है pic.twitter.com/rI1GHFaKtY
— Team Hindu United (@TeamHinduUnited) April 9, 2021
जिसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का नाम दिया गया है.
लक्ष्य है गंगा तट पर ललिता घाट से काशी विश्वनाथ मंदिर तक पहुंचने के मार्ग को चौड़ा कर सुंदर बनाना.
इस मुहीम में सैंकड़ों लोग इस बात से ख़ुश हैं कि काशी की संकरी गलियों में बसे उनके पुराने घरों का अधिग्रहण कर सरकार उन्हें क़ीमत से दोगुना मुआवज़ा दे रही है.
वहीं तमाम ऐसे भी हैं जो इस फ़ैसले से आहत हैं और अपने पुराने काशी की गलियों वाले रहन-सहन और खान-पान की संस्कृति को नष्ट होता नहीं देख पा रहे हैं.
इसके अलावा काशी के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी हैं जो काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर के बनने से अहसज होते दिख रहे हैं.
इनकी असहजता की वजह है काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई ज्ञानवापी मस्जिद.
इसके अलावा काशी के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी हैं जो काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर के बनने से अहसज होते दिख रहे हैं.
इनकी असहजता की वजह है काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई ज्ञानवापी मस्जिद.
मंदिर-मस्जिद दोनों के आस-पास के क्षेत्र को लगभग ख़ाली सा कर दिया गया है.
मंदिर की गली में प्रवेश करने पर हमारी मुलाक़ात सुभाष चक्रवर्ती से हुई जो यहीं पर चूड़ियों का व्यापार करते हैं.
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वाराणसी , काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर
सुभाष चक्रवर्ती इस इलाके में चूड़ियों का व्यापार करते हैं
उन्होंने कहा, "लोगों के दिमाग़ में दूसरी बातें आ रही हैं. जो सोच रहे हैं, वही कह रहे हैं. जैसे कभी बात होती है कि ये कॉरिडोर इसलिए बनाया जा रहा है कि यहाँ पब्लिक की भीड़ हो सके, कभी कुछ किया जा सके. इस तरह की लोगों की सोच है.
अब क्या सच्चाई है, ये तो लोगों के मन में ही है, मंशा उनकी है. इससे जनता खुश नहीं है, बस."
दरअसल इलाक़े में साढ़े पांच लाख वर्ग फ़ुट जगह ख़ाली होनी है.
इस प्रक्रिया में क़रीब 300 घरों को ख़रीदा जाना है और अब तक 200 से ज़्यादा घर ख़रीदे जा चुके हैं.
इन घरों को गिराने के बाद दूर सड़क से ज्ञानवापी मस्जिद की पूरी इमारत साफ़ दिखने लगी है और उसके सामने एक बड़ा मैदान निकल आया है जिसे एक पार्क में तब्दील होना है.
वाराणसी के मुस्लिम समुदाय की चिंता की वजह यही मैदान लगता है.
'मुस्लिम घरों में हिंदू मंदिर मिलने' का सच
शहर के पुराने बाशिंदे महफ़ूज़ आलम पेशे से वक़ील हैं और कहते हैं, "एक भी काशीवासी को सौंदर्यीकरण से दिक़्क़त नहीं है. लेकिन सभी पहलुओं पर ग़ौर करने के बाद ही होना चाहिए ये सब."
उन्होंने कहा, "मुसलमानों के दिल में बैठ गया है कि आज नहीं तो कल ज्ञानवापी मस्जिद पर भी ख़तरा होगा.
पहले वहाँ इतना बड़ा मैदान नहीं था कि जहाँ दस-पाँच हज़ार आदमी इकट्ठा हो सकते थे. आज की डेट में तो वहाँ मॉब भी बन सकती है, उस कंडीशन में तो सरकार अपनी लाचारी बयान कर देगी कि तमाम दुश्वारियाँ थीं. इसलिए पुख़्ता इन्तज़ाम करना चाहिए उसकी सुरक्षा को लेकर."
महफ़ूज़ आलम का इशारा 1992 में अयोध्या में हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस की तरफ़ है.
जब से काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना का काम शुरू हुआ है इलाक़े में किसी न किसी तरह का तनाव भी दिखता रहा है.
बहस गर्म रही है कि घरों का अधिग्रहण कर उन्हें गिराने के साथ-साथ उनके भीतर बने मंदिरों को भी गिराया गया.
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