2019 के बाद बंद होंगे स्मार्टफोन जाने ये जरूरी कारण Connect world report 2018 hindi
21 July 2018
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Connect world report 2018 hindi में कहा गया है कि आने वाले समय में हमारे शरीर मशीनों के जरिए डॉक्टर्स से बात करने लगेगा। स्मार्टफोन पर बात करना बंद हो जाएगा और इसके बदले में आधुनिकतम गॉगल्स (चश्में) होंगे जिनसे बात करना संभव हो पाएगा। एलमंट 14 की इस रिपोर्ट में ऎसी ही कुछ चीजों के बारे में बताया गया है जो आज से दस वर्ष बाद हकीकत होंगी।
भविष्य की पीढियां जिस दुनिया में रहेंगी, वह हर लिहाज से कनेक्टेड होगी।
ये कनेक्टेड वर्ल्ड कैसे हमारे समाज और हमें बदल देंगे? निश्चित रूप से तकनीक के हर कदम ने मानव समाज को व्यापक रूप में बदला है। भले ही हम उन्हें तब महसूस नहीं कर पाते हैं, जब वे घटित हो रहे होते हैं। अब तेजी से समाज और व्यक्ति के बीच के समीकरण बदल रहे हैं। ये बदलाव हमें महज जानकारियां साझा करने से ज्यादा करने का मौका देते हैं। बिना बोले संवाद की तकनीक (वर्चुअल टच) में होने वाले सुधारों की मदद से हम चीजों की छुअन का एहसास कर सकेंगे।
स्काई डाइवर के साथ छलांग लगा सकेंगे।
यही नहीं किसी सड़क पर हो रहे विरोध प्रदर्शन में हजारों किलोमीटर दूर होते हुए भी शामिल हो पाएंगे। इंटरनेट यानी “इंटरनेट ऑफ एवरीथिंग”। जहां ग्लोबल स्तर पर साल 2003 में 500 मिलियन डिवाइसेज कनेक्टेड थे यानी 0.08 डिवाइसेज प्रति व्यक्ति। साल 2010 तक इनकी संख्या बढ़कर 12.5 बिलियन तक पहुंच गई, प्रति व्यक्ति 6 डिवाइसेज के इस्तेमाल तक। इस सदी के अंत तक कनेक्टेड डिवाइसेज की संख्या 50 बिलियन तक जा पहुंचेगी और लाइफ इनोवेशन और टेक्नोलॉजी पर निर्भर हो जाएगी।
यानी हम वहां जाएंगे जहां पहले और कोई नहीं गया! सही जानकारी, सही साधनों और सही क्षमताओं के साथ टेक्नोलॉजिकल टैलेंटेड होकर ही आप कुछ कर सकेंगे। दरअसल इन स्मार्ट तकनीकों के सहारे इंसानों के आसपास के वातावरण से संपर्क कहीं ज्यादा मजबूत हो सकता है। इससे हमारी चीजों को समझने की क्षमता बेहतर होगी। तकनीक की दुनिया में हो रहे बदलाव हमारी स्वयं की भौतिकी में भी बदलावों के संकेत दे रहे हैं।
स्मार्टफोन सिर्फ एक तकनीकी पड़ाव है, हालांकि वे इस सदी में रहेंगे और दुनिया के कम विकसित इलाकों में उनके कई अप्रत्याशित इस्तेमाल भी होंगे, लेकिन विकसित देशों में 21वीं सदी के मध्य तक पहुंचते-पहुंचते और भी बदलाव होंगे। स्मार्ट गॉगल्स या शरीर में फिट होने वाले बेहद छोटे आकार के इनपुट-आउटपुट डिवाइस फोन का स्थान ले लेंगे।
किराने की दुकान से खरीदारी करते वक्त हम हर सामान को स्कैन कर उसके बारे में अतिरिक्त जानकारी और बाकी लोगों की राय तुरंत हासिल कर सकेंगे। अगर आपको किसी खास पदार्थ से एलर्जी है या फिर आपके भोजन की कुछ खास जरूरतें हैं तो किसी भी पदार्थ को चखने से पहले ही आपको उसके बारे में समस्त जानकारी मिल सकेंगी और आप तय कर सकेंगे कि आपको यह सामान लेना है या नहीं।
स्मार्टवॉच काफी पसंद की जा रही है। अगर आप अपने फोन से ज्यादा दूर जा रहे हैं, तो एप्स की मदद से यह घड़ी अलर्ट दे देती है। यानी फोन भूलने के झंझट से मुक्ति। घड़ी से वॉयस कमांड देना लोगों के लिए फायदेमंद होगा। स्मार्टवॉच मोबाइल फोन का अच्छा असिस्टेंट हो सकती है। फोन पर अब मेल से लेकर मैसेजिंग अलर्ट और मैप नेविगेशन तक कर सकते हैं। नोटिफिकेशन इसमें आते हैं। हेल्थ एप्स इसमें काफी हैं और यह आपके कैलोरी बर्न को बखूबी रीड कर सकती हैं। कैमरा और हेल्थ से जुड़े सभी एप्स और फीचर इसमें हैं।
लोगों की रूचि को देखते हुए 2018 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग बढ़ेगी
ये कारें सस्ती करने के लिए सब्सिडी भी दी जा सकती है। दुबई में तो पेट्रोल स्टेशनों, मॉल, हवाई अड्डे में इलेक्ट्रिक कारें पार्क करने के लिए फ्री जगह का प्रावधान है।
ज्यादातर देशों में ऊर्जा की खपत और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने की कोशिश है। इधर, हाइब्रिड कारों का मार्केट बढ़ रहा है। हालांकि इन कारों को लंबी दूरी के लिए चलाने से लोग कतराते हैं, पर भविष्य में वे ड्राइवरलैस कार में सैर भी करेंगे और वेब से जुड़े होंगे। स्वास्थ्य सेवाओं में वियरेबल तकनीकों का इस्तेमाल शुरू हो चुका है। आपको अपनी सेहत के प्रति भी चिंतित नहीं होना पड़ेगा। खासकर उन सेवाओं की मांग बढ़ेगी, जो जीवन को बढ़ाने में मदद करेंगी। सिर्फ अमीर लोगों के पास ही हार्ट अटैक के वक्त जान बचाने वाले शरीर में फिट किए गए मॉनिटर नहीं होंगे?
इन जानकारियों को सभी लोगों को उपलब्ध करवाने का दबाव ऎसा ही होगा जैसा किसी अन्य स्वास्थ्य संबंधी सेवा पर होता है। गति, अंगों की सक्रियता, ब्लड शुगर, यहां तक कि दिमागी हालत की भी जानकारी आपको पल-पल मिलती रहेगी। हीट सिग्नेचर (शरीर या गति से निकलने वाली गर्मी) से हमें पता चल जाएगा कि क्या हम किसी तेज रफ्तार से आती कार के रास्ते में तो नहीं हैं। स्लीपिंग मॉनिटर, हेल्थ ट्रैकर आपके स्वास्थ्य के प्रति आपको आगाह करते रहेंगे। स्वास्थ्य सेवाओं में वियरेबल तकनीकों का इस्तेमाल शुरू हो गया है।
नाइके का फ्यूलबैंड ऎसी तकनीक है जो लोगों की शारीरिक गतिविधियों को मापती है। उन गोलियों की बात भी हो रही है जिसको निगलने से ना केवल वह दवा का काम करेगी, बल्कि शरीर में होने वाली प्रतिक्रियाओं की निगरानी भी करेगी। वियरेबल तकनीक डिवाइसेस या गैजेट वे होते हैं, जिन्हें यूजर शरीर पर पहनकर चलते हैं। इन्हें इस तरह डिजाइन किया जाता है कि ये आपके शरीर पर कपड़े या एक्सेसरीज की तरह होने के बावजूद हेल्थ और फि टनेस जैसी चीजें ट्रैक करते रहते हैं।
इनमें एडवांस्ड इलेक्ट्रॉनिक तकनीक होती है। वियरेबल डिवाइसेज का सबसे बढिया उदाहरण गूगल ग्लास है। यह वियरेबल कम्प्यूटर है, जिसे चश्मे की तरह पहना जाता है। इसे वॉइस कमांड देकर चलाया जाता है। इसके इस्तेमाल से आप फोटो ले सकते हैं, मैसेज भेज सकते हैं, इससे दिशा का पता चल सकता है।
यूजर्स से मिल रहे रेस्पॉन्स के कारण 2015 को वियरेबल तकनीक के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। ब्रिटेन में इस समय 80 लाख से ज्यादा लोग किसी न किसी प्रकार के वियरेबल डिवाइसेस का इस्तेमाल कर रहे हैं।
भविष्य की पीढियां जिस दुनिया में रहेंगी, वह हर लिहाज से कनेक्टेड होगी।
ये कनेक्टेड वर्ल्ड कैसे हमारे समाज और हमें बदल देंगे? निश्चित रूप से तकनीक के हर कदम ने मानव समाज को व्यापक रूप में बदला है। भले ही हम उन्हें तब महसूस नहीं कर पाते हैं, जब वे घटित हो रहे होते हैं। अब तेजी से समाज और व्यक्ति के बीच के समीकरण बदल रहे हैं। ये बदलाव हमें महज जानकारियां साझा करने से ज्यादा करने का मौका देते हैं। बिना बोले संवाद की तकनीक (वर्चुअल टच) में होने वाले सुधारों की मदद से हम चीजों की छुअन का एहसास कर सकेंगे।
स्काई डाइवर के साथ छलांग लगा सकेंगे।
यही नहीं किसी सड़क पर हो रहे विरोध प्रदर्शन में हजारों किलोमीटर दूर होते हुए भी शामिल हो पाएंगे। इंटरनेट यानी “इंटरनेट ऑफ एवरीथिंग”। जहां ग्लोबल स्तर पर साल 2003 में 500 मिलियन डिवाइसेज कनेक्टेड थे यानी 0.08 डिवाइसेज प्रति व्यक्ति। साल 2010 तक इनकी संख्या बढ़कर 12.5 बिलियन तक पहुंच गई, प्रति व्यक्ति 6 डिवाइसेज के इस्तेमाल तक। इस सदी के अंत तक कनेक्टेड डिवाइसेज की संख्या 50 बिलियन तक जा पहुंचेगी और लाइफ इनोवेशन और टेक्नोलॉजी पर निर्भर हो जाएगी।
यानी हम वहां जाएंगे जहां पहले और कोई नहीं गया! सही जानकारी, सही साधनों और सही क्षमताओं के साथ टेक्नोलॉजिकल टैलेंटेड होकर ही आप कुछ कर सकेंगे। दरअसल इन स्मार्ट तकनीकों के सहारे इंसानों के आसपास के वातावरण से संपर्क कहीं ज्यादा मजबूत हो सकता है। इससे हमारी चीजों को समझने की क्षमता बेहतर होगी। तकनीक की दुनिया में हो रहे बदलाव हमारी स्वयं की भौतिकी में भी बदलावों के संकेत दे रहे हैं।
स्मार्टफोन सिर्फ एक तकनीकी पड़ाव है, हालांकि वे इस सदी में रहेंगे और दुनिया के कम विकसित इलाकों में उनके कई अप्रत्याशित इस्तेमाल भी होंगे, लेकिन विकसित देशों में 21वीं सदी के मध्य तक पहुंचते-पहुंचते और भी बदलाव होंगे। स्मार्ट गॉगल्स या शरीर में फिट होने वाले बेहद छोटे आकार के इनपुट-आउटपुट डिवाइस फोन का स्थान ले लेंगे।
किराने की दुकान से खरीदारी करते वक्त हम हर सामान को स्कैन कर उसके बारे में अतिरिक्त जानकारी और बाकी लोगों की राय तुरंत हासिल कर सकेंगे। अगर आपको किसी खास पदार्थ से एलर्जी है या फिर आपके भोजन की कुछ खास जरूरतें हैं तो किसी भी पदार्थ को चखने से पहले ही आपको उसके बारे में समस्त जानकारी मिल सकेंगी और आप तय कर सकेंगे कि आपको यह सामान लेना है या नहीं।
स्मार्टवॉच काफी पसंद की जा रही है। अगर आप अपने फोन से ज्यादा दूर जा रहे हैं, तो एप्स की मदद से यह घड़ी अलर्ट दे देती है। यानी फोन भूलने के झंझट से मुक्ति। घड़ी से वॉयस कमांड देना लोगों के लिए फायदेमंद होगा। स्मार्टवॉच मोबाइल फोन का अच्छा असिस्टेंट हो सकती है। फोन पर अब मेल से लेकर मैसेजिंग अलर्ट और मैप नेविगेशन तक कर सकते हैं। नोटिफिकेशन इसमें आते हैं। हेल्थ एप्स इसमें काफी हैं और यह आपके कैलोरी बर्न को बखूबी रीड कर सकती हैं। कैमरा और हेल्थ से जुड़े सभी एप्स और फीचर इसमें हैं।
लोगों की रूचि को देखते हुए 2018 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग बढ़ेगी
ये कारें सस्ती करने के लिए सब्सिडी भी दी जा सकती है। दुबई में तो पेट्रोल स्टेशनों, मॉल, हवाई अड्डे में इलेक्ट्रिक कारें पार्क करने के लिए फ्री जगह का प्रावधान है।
ज्यादातर देशों में ऊर्जा की खपत और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने की कोशिश है। इधर, हाइब्रिड कारों का मार्केट बढ़ रहा है। हालांकि इन कारों को लंबी दूरी के लिए चलाने से लोग कतराते हैं, पर भविष्य में वे ड्राइवरलैस कार में सैर भी करेंगे और वेब से जुड़े होंगे। स्वास्थ्य सेवाओं में वियरेबल तकनीकों का इस्तेमाल शुरू हो चुका है। आपको अपनी सेहत के प्रति भी चिंतित नहीं होना पड़ेगा। खासकर उन सेवाओं की मांग बढ़ेगी, जो जीवन को बढ़ाने में मदद करेंगी। सिर्फ अमीर लोगों के पास ही हार्ट अटैक के वक्त जान बचाने वाले शरीर में फिट किए गए मॉनिटर नहीं होंगे?
इन जानकारियों को सभी लोगों को उपलब्ध करवाने का दबाव ऎसा ही होगा जैसा किसी अन्य स्वास्थ्य संबंधी सेवा पर होता है। गति, अंगों की सक्रियता, ब्लड शुगर, यहां तक कि दिमागी हालत की भी जानकारी आपको पल-पल मिलती रहेगी। हीट सिग्नेचर (शरीर या गति से निकलने वाली गर्मी) से हमें पता चल जाएगा कि क्या हम किसी तेज रफ्तार से आती कार के रास्ते में तो नहीं हैं। स्लीपिंग मॉनिटर, हेल्थ ट्रैकर आपके स्वास्थ्य के प्रति आपको आगाह करते रहेंगे। स्वास्थ्य सेवाओं में वियरेबल तकनीकों का इस्तेमाल शुरू हो गया है।
नाइके का फ्यूलबैंड ऎसी तकनीक है जो लोगों की शारीरिक गतिविधियों को मापती है। उन गोलियों की बात भी हो रही है जिसको निगलने से ना केवल वह दवा का काम करेगी, बल्कि शरीर में होने वाली प्रतिक्रियाओं की निगरानी भी करेगी। वियरेबल तकनीक डिवाइसेस या गैजेट वे होते हैं, जिन्हें यूजर शरीर पर पहनकर चलते हैं। इन्हें इस तरह डिजाइन किया जाता है कि ये आपके शरीर पर कपड़े या एक्सेसरीज की तरह होने के बावजूद हेल्थ और फि टनेस जैसी चीजें ट्रैक करते रहते हैं।
इनमें एडवांस्ड इलेक्ट्रॉनिक तकनीक होती है। वियरेबल डिवाइसेज का सबसे बढिया उदाहरण गूगल ग्लास है। यह वियरेबल कम्प्यूटर है, जिसे चश्मे की तरह पहना जाता है। इसे वॉइस कमांड देकर चलाया जाता है। इसके इस्तेमाल से आप फोटो ले सकते हैं, मैसेज भेज सकते हैं, इससे दिशा का पता चल सकता है।
यूजर्स से मिल रहे रेस्पॉन्स के कारण 2015 को वियरेबल तकनीक के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। ब्रिटेन में इस समय 80 लाख से ज्यादा लोग किसी न किसी प्रकार के वियरेबल डिवाइसेस का इस्तेमाल कर रहे हैं।
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