चप्पल से हो रहा है कैंसर तुरंत बदले cancer in hindi meaning treatment lakshan ilaj
11 November 2017
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Cancer kaise hota hai भारत में कई लोगो को अभी ये भी नहीं पता की कैंसर कितने प्रकार का होता है
कैंसर क्या होता है
कैंसर किस कारण होता है
कैंसर की जानकारी
शरीर में कैंसर के लक्षण
कैंसर पर निबंध
कैंसर कैसे फैलता है
कैंसर क्या है इन हिंदी बाजार में मिलने वाले फुटवियर चाहे वो प्लास्टिक के बने हों या रबर और किसी और मटीरियल के, ज्यादातर घटिया क्वालिटी के होते हैं। इनमें कई तरह के खतरनाक केमिकल होते हैं। हमेशा शरीर के संपर्क में रहने के कारण इनसे कई तरह की बीमारियां होने का खतरा होता है। हाल में ब्रिटेन की एक नामी फुटवियर कंपनी प्रीमार्क ने बाजार से हजारों की संख्या में अपनी चप्पलें वापस मंगा लीं क्योंकि इनसे कैंसर होने का खतरा था। भारत में मिलने वाली चप्पलों या फुटवियर का भी कोई मानक निर्धारित नहीं है
ब्रिटेन में हुए एक शोध में पता चला है कि प्लास्टिक की घटिया चप्पलों में ऐसे केमिकल्स का उपयोग किया जाता है जिसकी वजह से त्वचा संबंधी कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। घटिया प्लास्टिक या रबर से बनी चप्पलें पहनने से खुजली, पैरों में जलन जैसी समस्याएं होती हैं। इनमें पाए जाने वाले बैक्टीरिया से ऐसे घाव हो जाते हैं जो जल्दी ठीक नहीं होते हैं। स्ट्रैफिलोकोकस नाम के ये बैक्टीरिया त्वचा को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। अगर ज्यादा दिनों तक इनकी अनदेखी की जाए तो यह कैंसर जैसी घातक बीमारी का रूप ले सकते हैं।आज की लाइफ स्टाइल में डिजाइनर चप्पलों का क्रेज है, लेकिन इसका खामियाजा सेहत व शरीर को नुकसान से चुकाना पड़ सकता है। अमीनाबाद में जूते, चप्पलों की एक दूकान इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक का मानक निर्धारित नहीं भारत में जो फुटवियर बन रहा है, उसका कोई मानक निर्धारित नहीं है।
ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैंडर्ड्स या बीआईएस ने स्कूली जूतों और सेफ्टी फुटवियर के लिए तो मानक बना रखे हैं लेकिन कोई व्यापक मानक नहीं हैं। भारत सहित कई देशों में प्लास्टिक की चप्पलों का उपयोग बड़े पैमाने पर होता है। सस्ती होने के कारण ज्यादातर गरीब तबके के लोग इनका इस्तेमाल करते हैं। चीन से भी बड़ी मात्रा में ऐसी चप्पलों का आयात किया जा रहा है, जिसकी कोई जांच नहीं की जाती है।
- थालेटस : इस केमिकल का इस्तेमालपॉलिविनील क्लोराइड (पीवीसी) प्लास्टिक को नरम करने के लिए किया जाता है, जो हानिकारक है।
- डीएचपी : चीन द्वारा निर्मित फ्लिप फ्लॉप चप्पलों में 6% डीएचपी नामक केमिकल पाए जाते हैं, जो त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं।
- पीएएच : सुगन्धित कार्सिनोजेनिक पॉलीविक्लिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) को बेंज़ोपैरीन कहा जाता है। यह खतरनाक केमिकल एओन डॉल्फ़िन सैंडल, स्पाइडरमैन-थीम वाले जूते और चप्पलों में इस्तेमाल किया जाता है।
- उपरोक्त केमिकल्स का इस्तेमाल कर बनाए गए चप्पलों में कुछ ऐसे जीवाणु पाए जाते हैं, जो लगातार पैरों के संपर्क से खून में प्रवेश कर जाते हैं और शरीर के अंगों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं।
लखनऊ केडरमेटोलॉजिस्ट डॉ. प्रमोद अग्रवाल का कहना है कि प्लास्टिक की चप्पलों से रैशेस, इचिंग, सूजन, दाद जैसी अनेक बीमारियां होती हैं। ये वे चप्पलें होती हैं जो बाजार में कम दामों में मिलती हैं या चीन में बनी हुई होती हैं।
डॉ.अजय कुमार राय कहते हैं कि घटिया प्लास्टिक से बनी चप्पलों या स्लीपर का प्रयोग नहीं करना चाहिए। डॉ. अजय का कहना है कि पैरों की नसों का सम्पर्क सीधा दिमाग से होता है, इस कारण प्लास्टिक की चप्पलों का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए। प्लास्टिक की चप्पलें स्किन के लिए बहुत हानिकारक होती हैं।
प्लास्टिक की चप्पलों में कई ऐसे जीवाणु पाए जाते हैं, जो स्किन के लिए बहुत ही हानिकारक होते हैं। प्लास्टिक में पानी सोखने की क्षमता न होने के कारण पैरों में घाव हो जाता है, जिसकी अनदेखी करने से कैंसर भी हो सकता है।
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