राष्ट्रगान न गाने वाले राष्ट्रविरोधी नहीं सुप्रीम कोर्ट केस स्टेटस Supreme court list news in Hindi status diary no
24 October 2017
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Supreme court judgments hindi news सोमवार को कहा कि लोगों को राष्ट्रभक्ति साबित करने के लिए राष्ट्रगान के दौरान सिनेमा हाॅल में खड़े होने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि केंद्र सरकार इस बारे में बनाए गए नियमों में बदलाव पर विचार करे। SC के मुताबिक- अगर कोई शख्स थिएटर में नेशनल एंथम यानी राष्ट्रगान के दौरान खड़ा नहीं होता है तो इसका यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि वो कम देशभक्त है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने ही 30 नवंबर 2016 को अपने एक ऑर्डर में सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान को मेंडेटरी किया था।
मॉरल पुलिसिंग की जरूरत नहीं
- सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने एक पिटीशन पर इस मामले की सुनवाई की। बेंच में जस्टिस एएम. खानविलकर और जस्टिस डीवाय. चंद्रचूढ़ भी शामिल थे।
- बेंच ने कहा कि समाज को मॉरल पुलिसिंग की जरूरत नहीं है। अगली बार सरकार चाहेगी कि लोग टी शर्ट और शॉर्ट्स पहनकर सिनेमा हॉल ना आएं क्योंकि इससे भी राष्ट्रगान का अपमान होता है। बेंच ने कहा- हम आपको (केंद्र को) हमारे कंधे पर रखकर बंदूक चलाने की इजाजत नहीं दे सकते। आप इस मुद्दे को रेग्युलेट करने पर विचार करें।
ऑर्डर में बदलाव कर सकते हैं
- बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपने 30 नवंबर 2016 के ऑर्डर में सुधार कर सकता है। इस ऑर्डर में सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमा हॉल में मूवी शुरू होने के पहले राष्ट्रगान को मेंडेटरी किया था। बेंच ने कहा कि हम (shall) शब्द को (may) कर सकते हैं।
- बेंच ने कहा, “लोग सिनेमा हाॅल में मनोरंजन के लिए जाते हैं। सोसायटी को एंटरटेनमेंट की जरूरत है। हम आपको अपने कंधे पर रखकर बंदूक चलाने की इजाजत नहीं दे सकते। लोगों को अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए सिनेमा हॉल में खड़े होने की जरूरत नहीं है।”
दो बातों में फर्क कीजिए
- बेंच ने कहा, किसी से उम्मीद करना अलग बात है और उसे जरूरी करना अलग। नागरिकों को अपनी बांहों (sleeves) में देशभक्ति लेकर चलने पर मजबूर तो नहीं किया जा सकता। अदालतें अपने ऑर्डर से लोगों में देशभक्ति नहीं जगा सकतीं।
सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी क्यों?
- सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह तल्ख टिप्पणियां पिछले साल दायर की गई श्याम नारायण चौकसे की पीआईएल पर सुनवाई के दौरान कीं। चौकसे ने मांग की थी कि सभी सिनेमा हॉल में मूवी शुरू होने से पहले नेशनल एंथम मेंडेटरी की जानी चाहिए। जस्टिस मिश्रा की बेंच ने ही पिछले साल नेशनल एंथम को सिनेमा हॉल्स में मेंडेटरी करने का ऑर्डर जारी किया था। - सोमवार को सुनवाई के दौरान केंद्र की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके. वेणुगोपाल ने कहा कि भारत विविधताओं का देश है। और अगर सिनेमा हॉल में नेशनल एंथम मेंडटरी की जाती है तो इससे यूनिफाॅर्मिटी (एकता) का भाव आता है।
फैसला सरकार पर छोड़ें
- अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह फैसला सरकार पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि वो थिएटर में राष्ट्रगान बजाने या इस दौरान लोगों के खड़े होने पर क्या सोचती है।
- इस पर जस्टिस चंद्रचूढ़ ने कहा- फ्लैग कोड में बदलाव से आपको कौन रोक रहा है? आप बदलाव कर कह सकते हैं कि कहां राष्ट्रगान होगा और कहां नहीं। आजकल मैचों, टूर्नामेंट्स और यहां तक कि ओलिंपिक में भी नेशनल एंथम प्ले की जाती है। वहां आधे से ज्यादा लोग इसका मतलब नहीं समझते।
- मामले की अगली सुनवाई 9 जनवरी से होगी। तब केंद्र सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान को जरूरी बनाने पर जवाब देना होगा।
मॉरल पुलिसिंग की जरूरत नहीं
- सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने एक पिटीशन पर इस मामले की सुनवाई की। बेंच में जस्टिस एएम. खानविलकर और जस्टिस डीवाय. चंद्रचूढ़ भी शामिल थे।
- बेंच ने कहा कि समाज को मॉरल पुलिसिंग की जरूरत नहीं है। अगली बार सरकार चाहेगी कि लोग टी शर्ट और शॉर्ट्स पहनकर सिनेमा हॉल ना आएं क्योंकि इससे भी राष्ट्रगान का अपमान होता है। बेंच ने कहा- हम आपको (केंद्र को) हमारे कंधे पर रखकर बंदूक चलाने की इजाजत नहीं दे सकते। आप इस मुद्दे को रेग्युलेट करने पर विचार करें।
ऑर्डर में बदलाव कर सकते हैं
- बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपने 30 नवंबर 2016 के ऑर्डर में सुधार कर सकता है। इस ऑर्डर में सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमा हॉल में मूवी शुरू होने के पहले राष्ट्रगान को मेंडेटरी किया था। बेंच ने कहा कि हम (shall) शब्द को (may) कर सकते हैं।
- बेंच ने कहा, “लोग सिनेमा हाॅल में मनोरंजन के लिए जाते हैं। सोसायटी को एंटरटेनमेंट की जरूरत है। हम आपको अपने कंधे पर रखकर बंदूक चलाने की इजाजत नहीं दे सकते। लोगों को अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए सिनेमा हॉल में खड़े होने की जरूरत नहीं है।”
दो बातों में फर्क कीजिए
- बेंच ने कहा, किसी से उम्मीद करना अलग बात है और उसे जरूरी करना अलग। नागरिकों को अपनी बांहों (sleeves) में देशभक्ति लेकर चलने पर मजबूर तो नहीं किया जा सकता। अदालतें अपने ऑर्डर से लोगों में देशभक्ति नहीं जगा सकतीं।
सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी क्यों?
- सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह तल्ख टिप्पणियां पिछले साल दायर की गई श्याम नारायण चौकसे की पीआईएल पर सुनवाई के दौरान कीं। चौकसे ने मांग की थी कि सभी सिनेमा हॉल में मूवी शुरू होने से पहले नेशनल एंथम मेंडेटरी की जानी चाहिए। जस्टिस मिश्रा की बेंच ने ही पिछले साल नेशनल एंथम को सिनेमा हॉल्स में मेंडेटरी करने का ऑर्डर जारी किया था। - सोमवार को सुनवाई के दौरान केंद्र की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके. वेणुगोपाल ने कहा कि भारत विविधताओं का देश है। और अगर सिनेमा हॉल में नेशनल एंथम मेंडटरी की जाती है तो इससे यूनिफाॅर्मिटी (एकता) का भाव आता है।
फैसला सरकार पर छोड़ें
- अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह फैसला सरकार पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि वो थिएटर में राष्ट्रगान बजाने या इस दौरान लोगों के खड़े होने पर क्या सोचती है।
- इस पर जस्टिस चंद्रचूढ़ ने कहा- फ्लैग कोड में बदलाव से आपको कौन रोक रहा है? आप बदलाव कर कह सकते हैं कि कहां राष्ट्रगान होगा और कहां नहीं। आजकल मैचों, टूर्नामेंट्स और यहां तक कि ओलिंपिक में भी नेशनल एंथम प्ले की जाती है। वहां आधे से ज्यादा लोग इसका मतलब नहीं समझते।
- मामले की अगली सुनवाई 9 जनवरी से होगी। तब केंद्र सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान को जरूरी बनाने पर जवाब देना होगा।
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