जय राम रमारमनं शमनं, भाव ताप भयाकुल पाहि जनम jay raam ramaa ramanam shamanam
6 September 2017
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जय राम रमारमनं शमनं, भाव ताप भयाकुल पाहि जनमबार बार वर मागउँ, हरषि देहु श्रीरंग पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग
अवधेश सुरेश रमेश विभो, शरणागत माँ गत पाहि प्रभो
दससीस विनासं बीस भुजा, कृत दूरी महा माहि भूरी रजा
रजनीचर वृन्द पतंग रहे, सर पावक तेज प्रचण्ड दहे
माहि मंडल मंडन चारुतरं, धृत सायक चाप nishhang बरम
मध मोह महा ममता रजनी, तम पुंज दिवाकर तेज अनी
मनजात किरात निपात किये, मृग लोग कुभोग सारें हिये
हती नाथ अनाथनि पाहि हरे, विषया बन पाँवर भूली परे
बहु रोग बियोगिन्हि लोग हाय, भवदंघ्रि निरादर के फल ए
भाव सिंधु अगाध परे नर ते,पद पंकज प्रेम न जे करते
अति दीन मलीन दुःखी नितहीं, जिन्ह के पद पंकज प्रीत नही
अवलम्ब भवन्त कथा जिन्ह के, प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह के
नहीं राग न लोभ न मान मदा, तिन्ह के सम बैभव वा बिपदा
एही ते ठाव सेवक होत मुदा, मुनि त्यागत जोग भरोस सदा
करी प्रेम निरन्तर नेम लिए, पद पंकज सेवत शुद्ध हिये
सम मानी निरादर आदरही, सब संत सुखी बिचरन्ति मही
मुनि मानस पंकज भृंग भजे, रघुवीर महा रणधीर अजय
ठाव नाम जपामी नमामि हरी, भाव रोग महागढ़ मान आई
गुण सील कृपा परमायतनं, प्रणमामि निरन्तर श्रीरमनं
रघुनंद निकंदय द्वंद्व घनम, महिपाल बिलोके दीन जनम
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