जमानत के प्रकार अग्रिम Bailable वैधता jamanat kaise hoti hai ke niyam


Bail meaning in hindi jamanat ka matlab - बेल मतलब जमानत अदालतों में जमानत देने के मापदंड बेहद अलग हैं कुछ अपराध की गंभीरता पर निर्भर करता है, तो कई कार्रवाई पर मान लीजिए किसी गंभीर अपराध में 10 साल की सजा का प्रावधान है और यदि 90 दिन में आरोप-पत्र दाखिल नहीं हो तो जमानत हो सकती है। जमानत को लेकर जानिए क्या हैं अलग-अलग प्रावधान।
जमानत के अनुसार अपराध दो प्रकार के होते हैं ipc bailable sections-
1- जमानती आईपीसी की धारा 2 के अनुसार जमानती अपराध वह है, जो पहली अनुसूची में जमानती अपराध के रूप में दिखाया हो।

2 गैर-जमानती non bailable offence meaning in hindi - जो अपराध जमानती है, उसमें आरोपी की जमानत स्वीकार करना पुलिस अधिकारी एवं न्यायालय का कर्तव्य है। किसी व्यक्ति को जान-बूझकर साधारण चोट पहुंचाना, उसे अवरोधित करना अथवा किसी स्त्री की लज्जा भंग करना, मानहानि करना आदि अपराध कहे जाते हैं।

गैर-जमानती अपराध की परिभाषा आईपीसी में नहीं है, लेकिन गंभीर प्रकार के अपराधों को गैर-जमानती बनाया है। ऐसे अपराधों में जमानत स्वीकार करना या न करना न्यायाधीश के विवेक पर होता है। आरोपी अधिकार के तौर पर इसमें जमानत नहीं मांग सकता। इसमें जमानत का आवेदन देना होता है, तब न्यायालय देखता है कि अपराध की गंभीरता कितनी है, दूसरा यह कि जमानत मिलने पर कहीं वह सबूतों के साथ छेड़छाड़ तो नहीं करेगा। एक स्थिति में यदि पुलिस समय पर आरोप-पत्र दाखिल न करे, तब भी आरोपी को जमानत दी जा सकती है, चाहे मामला गंभीर क्यों न हो। जिन अपराधों में दस साल की सजा है, यदि उसमें 90 दिन में आरोप-पत्र पेश नहीं किया तो जमानत देने का प्रावधान है।

FACTS IPC : धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत दिए जाने का प्रावधान है। यह जमानत पुलिस जांच होने तक रहती है। विधि आयोग ने इसे दंड प्रक्रिया संहिता में शामिल करने की सिफारिश की थी।

अक्सर सुनने में आता है कि अमुक व्यक्ति को कोर्ट ने जमानत दे दी और किसी और की जमानत नहीं हुई। एक लड़के को चोरी का षड्यंत्र करते हुए पकड़ा, उसके पास चाकू भी था। जेल भेजा, अदालत में पेश किया। अदालत में उसके वकील ने जमानत पर छोड़ने की याचिका लगाई और 21 वर्ष का वह युवक केवल इसलिए जमानत पर बाहर आ सका, क्योंकि उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था। दूसरी ओर हम अखबार में पढ़ते हैं कि पटेल आरक्षण आंदोलन के नेता हार्टिक पटेल, जिनके खिलाफ राजद्रोह के दो मामले हैं, को जमानत नहीं मिलती है। सूरत की अदालत में जमानत इसलिए खारिज हुई, क्योंकि इससे कानून एवं व्यवस्था की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव की आशंका थी। अब मामला गुजरात हाईकोर्ट में है, जिसमें सरकारी वकील कह रहे हैं कि यदि उन्हें जमानत पर छोड़ा तो कानून एवं व्यवस्था की स्थिति खतरे में पड़ सकती है। बचाव पक्ष के वकील कह रहे हैं कि अगर जरूरी हुआ तो हार्दिक छह माह गुजरात के बाहर रहने के लिए तैयार हैं। हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है। एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा के सुब्रत राय को दस हजार करोड़ रुपए के भुगतान पर रिहा नहीं किया, लेकिन मां की मृत्यु पर उन्हें मानवीय आधार पर जमानत दी गई।

ऐसे में आम लोगों को जमानत के बारे में जिज्ञासा हो सकती है कि यह किस तरह से होती है और इसे देने के मापदंड क्या हैं। किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को जेल से छुड़ाने के लिए न्यायालय के सामने जो संपत्ति जमा की जाती है या देने की प्रतिज्ञा ली जाती है, जो बॉन्ड के रूप में भरा जाता है, उसे जमानत कहा जाता है। जमानत मिल जाने पर न्यायालय निश्चिंत हो जाता है कि अब आरोपी व्यक्ति सुनवाई (डेट) पर जरूर आएगा, वरना जमानत देने वाली की जमानत राशि जब्त कर ली जाएगी। अर्थात जमानत का अर्थ है किसी व्यक्ति पर जो दायित्व है, उस दायित्व की पूर्ति के लिए बॉन्ड देना। यदि उस व्यक्ति ने अपने दायित्व को पूरा नहीं किया तो बॉन्ड में जो राशि तय हुई है, उसकी वसूली जमानत देने वाले से की जाएगी।

न्यायालय किसी अभियुक्त के आवेदन पर उसे अपनी हिरासत से मुक्त करने का अादेश कुछ शर्तों के साथ देता है- जैसे वह अभियुक्त एक या दो व्यक्ति का तय राशि का बंधपत्र (बॉन्ड) जमा करेगा। बॉन्ड की न्यायालय जांच करता है और संतुष्ट होने पर ही अभियुक्त को रिहा किया जाता है। एक व्यक्ति एक मामले में सिर्फ एक व्यक्ति की ही जमानत दे सकता है।

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