कहानी तपस्वी और शिष्य की Best Story For Holly Men


एक तपस्वी था जो बहुत अनुभवी था. एक युवक उसके पास आया और बोला ‘महाराज में आपका शिष्य बनना चाहता हु, जीवन के कल्याण मार्ग पर चलना चाहता हु. आप मुझे दीक्षा दे’. तपस्वी ने कहा ‘ठीक हे, में तुम्हे दीक्षा दे दूंगा. पर पहले तुम्हे मेरा एक काम करना होगा. अगर यह काम तुम ठीक से कर लोगे तो फिर में तुम्हे अपना शिष्य बना लूँगा और तुम्हे दीक्षा दे दूंगा. पहले मेरी इस परीक्षा से गुजरो.’

शिष्य ने कहा ‘महाराज क्या काम हे?’ तपस्वी ने उसे एक डिब्बा दिया और कहा ‘इस डिब्बे को ले जाओ. पड़ोस के कस्बे में मेरा एक मित्र रहता हे उसे दे आना, पर रास्ते में इसे खोलकर मत देखना.’ युवक मन ही मन हंसा और बोला ‘बस इतना सा काम. में अभी इसे देकर आता हु. आपके मित्र को में जानता हु. कोई कठिनाई नहीं हे. में अभी डिब्बा पहुँचा कर आता हु.’

युवक ने डिब्बा हाथ में लिया, डिब्बा एकदम हल्का था. चलते-चलते उसे लगा की डिब्बे में कुछ हलचल हे. उसके मन ने कहा ‘क्या होगा डिब्बे में? ऐसा क्या पहुंचाना हे मित्र को? उसने देखा डिब्बे पर ताला नहीं हे. उसने देखा इसे खोलकर देखा जा सकता हे. क्या हर्ज़ हे. आखिर पता तो चले की अपने मित्र को तपस्वी ने क्या भेजा हे?’ विचार करते करते युवक ने डिब्बा खोला, उसे आश्चर्य हुआ, उसमे एक चूहा था. डिब्बा खोला तो चूहा उछलकर बाहर निकल गया. अब हाथ में डिब्बा खाली था. युवक सोचने लगा तपस्वी ने अच्छा मजाक किया हे.

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जैसे-तैसे वो तपस्वी के मित्र के घर पहुंचा, खाली डिब्बा दिया और पूरा वर्णन सुना दिया. युवक ने कहा ‘गुरूजी ने अच्छा मजाक किया हे.’ तब उस मित्र ने कहा गुरूजी ने मजाक नहीं किया हे, बल्कि यह एक गंभीर परीक्षा थी. वे जानना चाहते थे की तुम शिष्य बनने के योग्य हो या नहीं. तुम्हारा मन उनके मना करने के बाद भी भटक गया. जो एक चूहे को अपने स्थान पर नहीं पहुंचा सका वह ईश्वर के मार्ग का राही कैसे बन सकता हे. ईश्वर के राज्य में अपार धैर्य और आशा को धारण करना पड़ता हे. कोई छोटा मार्ग नहीं हे.

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