कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के लिए kurukshetra mahabharat
21 May 2017
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दुनिया का प्रथम विश्वयुद्ध महाभारत 100 कौरवों और पाँच पाण्डवों के बीच कुरु साम्राज्य की भूमि के लिए जो संघर्ष चला उससे अंतत: महाभारत युद्ध का सृजन हुआ the first world war story india story
महाभारत का युद्ध था कुरुक्षेत्र में लड़ा गया कुरुक्षेत्र में युद्ध लड़े जाने का फैसला भगवान श्री कृष्ण का था। लेकिन उन्होंने कुरुक्षेत्र को ही महाभारत युद्ध के लिए क्यों चुना इसकी कहानी कुछ इस प्रकार है।
Kurukshetra India war day by day details
kurukshetra mahabharat war proof |
Kurukshetra India war day by day details
जब महाभारत युद्ध होने का निश्चय हो गया तो उसके लिये जमीन तलाश की जाने लगी श्रीकृष्ण जी बढ़ी हुई असुरता से ग्रसित व्यक्तियों को उस युद्ध के द्वारा नष्ट कराना चाहते थे। पर भय यह था कि यह भाई-भाइयों का, गुरु शिष्य का, सम्बन्धी कुटुम्बियों का युद्ध है। एक दूसरे को मरते देखकर कहीं सन्धि न कर बैठें इसलिए ऐसी भूमि युद्ध के लिए चुननी चाहिए जहाँ क्रोध और द्वेष के संस्कार पर्याप्त मात्रा में हों। उन्होंने अनेकों दूत अनेकों दिशाओं में भेजे कि वहाँ की घटनाओं का वर्णन आकर उन्हें सुनायें।
एक दूत ने सुनाया कि अमुक जगह बड़े भाई ने छोटे भाई को खेत की मेंड़ से बहते हुए वर्षा के पानी को रोकने के लिए कहा। पर उसने स्पष्ट इनकार कर दिया और उलाहना देते हुए कहा-तू ही क्यों न बन्द कर आवे? मैं कोई तेरा गुलाम हूँ। इस पर बड़ा भाई आग बबूला हो गया। उसने छोटे भाई को छुरे से गोद डाला और उसकी लाश को पैर पकड़कर घसीटता हुआ उस मेंड़ के पास ले गया और जहाँ से पानी निकल रहा था वहाँ उस लाश को पैर से कुचल कर लगा दिया।
इस नृशंसता को सुनकर श्रीकृष्ण ने निश्चय किया यह भूमि भाई-भाई के युद्ध के लिए उपयुक्त है। यहाँ पहुँचने पर उनके मस्तिष्क पर जो प्रभाव पड़ेगा उससे परस्पर प्रेम उत्पन्न होने या सन्धि चर्चा चलने की सम्भावना न रहेगी। वह स्थान कुरुक्षेत्र था वहीं युद्ध रचा गया।
एक दूत ने सुनाया कि अमुक जगह बड़े भाई ने छोटे भाई को खेत की मेंड़ से बहते हुए वर्षा के पानी को रोकने के लिए कहा। पर उसने स्पष्ट इनकार कर दिया और उलाहना देते हुए कहा-तू ही क्यों न बन्द कर आवे? मैं कोई तेरा गुलाम हूँ। इस पर बड़ा भाई आग बबूला हो गया। उसने छोटे भाई को छुरे से गोद डाला और उसकी लाश को पैर पकड़कर घसीटता हुआ उस मेंड़ के पास ले गया और जहाँ से पानी निकल रहा था वहाँ उस लाश को पैर से कुचल कर लगा दिया।
- आगे जरूर पढ़े -तलवे में हैं ये निशान तो किस्मत में होगा ये सब
इस नृशंसता को सुनकर श्रीकृष्ण ने निश्चय किया यह भूमि भाई-भाई के युद्ध के लिए उपयुक्त है। यहाँ पहुँचने पर उनके मस्तिष्क पर जो प्रभाव पड़ेगा उससे परस्पर प्रेम उत्पन्न होने या सन्धि चर्चा चलने की सम्भावना न रहेगी। वह स्थान कुरुक्षेत्र था वहीं युद्ध रचा गया।
महाभारत की यह कथा इंगित करती है की शुभ और अशुभ विचारों एवं कर्मों के संस्कार भूमि में देर तक समाये रहते हैं। इसीलिए ऐसी भूमि में ही निवास करना चाहिए जहाँ शुभ विचारों और शुभ कार्यों का समावेश रहा हो हम आपको ऐसी ही एक कहानी और सुनाते है जो की श्रवण कुमार के जीवन से सम्बंधित है।
क्यों श्रवणकुमार ने अपने माता-पिता को कांवर से उतारकर चलाया था पैदल :
shravan kumar -श्रवणकुमार के माता-पिता अंधे थे। वे उनकी सेवा पूरी तत्परता से करते, किसी प्रकार का कष्ट न होने देते। एक बार माता-पिता ने तीर्थ यात्रा की इच्छा की। श्रवण कुमार ने काँवर बनाकर दोनों को उसमें बिठाया और उन्हें लेकर तीर्थ यात्रा को चल दिया। बहुत से तीर्थ करा लेने पर एक दिन अचानक उसके मन में यह भाव आये कि पिता-माता को पैदल क्यों न चलाया जाय? उसने काँवर जमीन पर रख दी और उन्हें पैदल चलने को कहा। वे चलने तो लगे पर उन्होंने साथ ही यह भी कहा-इस भूमि को जितनी जल्दी हो सके पार कर लेना चाहिए। वे तेजी से चलने लगे जब वह भूमि निकल गई तो श्रवणकुमार को माता-पिता की अवज्ञा करने का बड़ा पश्चाताप हुआ और उसने पैरों पड़ कर क्षमा माँगी तथा फिर काँवर में बिठा लिया।
उसके पिता ने कहा-पुत्र इसमें तुम्हारा दोष नहीं। उस भूमि पर किसी समय मय नामक एक असुर रहता था उसने जन्मते ही अपने ही पिता-माता को मार डाला था, उसी के संस्कार उस भूमि में अभी तक बने हुए हैं इसी से उस क्षेत्र में गुजरते हुए तुम्हें ऐसी बुद्धि उपजी।
क्यों श्रवणकुमार ने अपने माता-पिता को कांवर से उतारकर चलाया था पैदल :
shravan kumar -श्रवणकुमार के माता-पिता अंधे थे। वे उनकी सेवा पूरी तत्परता से करते, किसी प्रकार का कष्ट न होने देते। एक बार माता-पिता ने तीर्थ यात्रा की इच्छा की। श्रवण कुमार ने काँवर बनाकर दोनों को उसमें बिठाया और उन्हें लेकर तीर्थ यात्रा को चल दिया। बहुत से तीर्थ करा लेने पर एक दिन अचानक उसके मन में यह भाव आये कि पिता-माता को पैदल क्यों न चलाया जाय? उसने काँवर जमीन पर रख दी और उन्हें पैदल चलने को कहा। वे चलने तो लगे पर उन्होंने साथ ही यह भी कहा-इस भूमि को जितनी जल्दी हो सके पार कर लेना चाहिए। वे तेजी से चलने लगे जब वह भूमि निकल गई तो श्रवणकुमार को माता-पिता की अवज्ञा करने का बड़ा पश्चाताप हुआ और उसने पैरों पड़ कर क्षमा माँगी तथा फिर काँवर में बिठा लिया।
उसके पिता ने कहा-पुत्र इसमें तुम्हारा दोष नहीं। उस भूमि पर किसी समय मय नामक एक असुर रहता था उसने जन्मते ही अपने ही पिता-माता को मार डाला था, उसी के संस्कार उस भूमि में अभी तक बने हुए हैं इसी से उस क्षेत्र में गुजरते हुए तुम्हें ऐसी बुद्धि उपजी।
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