कहानी सच्चे शिष्य की..Sccha Student Story in Hindi


एक संत के पास एक युवक आया. कुछ देर धर्म-चर्चा के बाद थोड़े संकोच के साथ पूछा, “कृपया मुझे अपना शिष्य बना लीजिए.” संत ने पूछा, ”शिष्य बनकर क्या करोगे? उसने कहाँ, “आपकी तरह साधना करूँगा.” संत मुस्कराए ओर बोले, “वत्स, जाओ सब कुछ भूलाकर जीवनयापन के लिए अपना कर्म करते रहो.” युवक चला गया मगर कुछ दिनो के बाद वापस आया. वह अपने जीवन से संतुष्ट नही था. उसने शिष्य बना लेने की अपनी माँग दोहराई. इस बार संत ने उससे कहाँ, “अब तुम स्वयं को भुलाकर घर-घर जाकर भिक्षा मांगो. ऊँच-नीच, धनी-निर्धन का भेद भुलाकर जहाँ से जो मिले ग्रहण करो, उसी से अपना गुज़ारा करों.”
युवक संत के आदेश अनुसार भिक्षा माँगने लगा. वह हमेशा नज़रे नीची किये रहता. जो मिल जाता उसी से संतोष करता. कुछ दिनो के बाद वह फिर से संत के पास आया. उसे आशा थी की इस बार संत उसे अवश्य अपना शिष्य बना लेंगे. इस बार संत ने कहाँ, “जाओ नगर में अपनी सभी शत्रुओ ओर विरोधियों से क्षमा माँग कर आओ.” युवक शाम को घर-घर कर वापस आया ओर संत के सामने झुक कर बोला, प्रभु! अब तो इस नगर में मेरा कोई शत्रु नही रहाँ. सभी मेरे प्रिय ओर अपने हैं ओर में सबका हूँ. मैं किससे क्षमा माँगू. इस पर संत ने उसे गले लागते हुए कहाँ, “अब तुम स्वयं को भुला चुके हो. तुम्हारा रहा-सहा अभिमान भी समाप्त हो चुका है. तुम सच्चे साधक बनने लायक हो गए हो. अब मैं तुम्हें अपना शिष्य बना सकता हूँ.
आगे ये पढ़े :-कहानी सच्चे मित्र की 

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