जाति व्यवस्था की उत्पत्ति hindu caste system history
27 June 2019
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untouchables hindu caste system history हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था सामाजिक विभाजन का एक आधार है हिंदू धर्म-ग्रंथों के अनुसार समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है-
ब्राह्मणों का कार्य शास्त्र अध्ययन, वेदपाठ तथा यज्ञ कराना होता था जबकि क्षत्रिय युद्ध तथा राज्य के कार्यों के उत्तरदायी थे। वैश्यों का काम व्यापार तथा शूद्रों का काम सेवा प्रदान करना होता था
भारतीय परम्परा में वर्ण शब्द का प्राचीनतम उल्लेख यजुर्वेद के 31वें अध्याय में मिलता है, लेकिन जाति शब्द का प्रयोग अपेक्षाकृत नया है। ये चार वर्ण मनुष्यों की प्रकृति (स्वभाव या विवेक) के तीन गुणों के मिश्रण से बना था -
पर कालान्तर में ऊँच-नीच के भेदभाव तथा आर्थिक स्थिति बदलने के कारण इससे विभिन्न वर्णों के बीच दूरिया बढ़ीं हैं। दलितों को समाज में निम्न स्थान प्राप्त होने के कारण टकरार भी बढ़ा है और राजनीति में भी एक नया दृष्टिकोण आया है। जन्म के आधार पर सामाजिक वर्ग मिलने की वजह से आधुनिक काल में जाति प्रथा का सामाजिक और राजनैतिक विरोध हुआ है। भारतीय स्वतंत्रता के समय डॉक्टर अंबेडकर का काम इस दिशा में बहुत महत्वपूर्ण है।
आज कई दलित नेता मनुस्मृति जैसे ग्रंथों को जन्म आधारित प्रथा का सृजनकर्ता गंथ समझकर बहुत विरोध करते हैं। भारत में आरक्षण के कारण भी विभिन्न वर्णों के बीच अलग सा रिश्ता बनता जा रहा है। भारतीय दर्शन के १९वीं सदी में यूरोप पहुँचने के बाद इस विषय में पाश्चात्य विद्वानों का ध्यान गया। कहा जाता है कि हिटलर भारतीय वर्ण व्यवस्था से विदित था। भारतीय उपमहाद्वीप के कई अन्य धर्म तथा सम्प्रदाय भी इसका पालन आंशिक या पूर्ण रूप से करते हैं। इनमें सिक्ख, इस्लाम तथा इसाई धर्म का नाम उल्लेखनीय है।
धार्मिक उत्पत्ति hinduism caste system history origin
पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि के बनने के समय मानवों को उत्पत्त करते समय ब्रह्मा जी के विभिन्न अंगों से उत्पन्न होने के कारण कई वर्ण बन गये।
मुख से ब्राह्मण उत्पन्न हुए।
भुजाओं से क्षत्रिय उत्पन्न हुए।
जाघ् से वैश्य उत्पन्न हुए।
पैर से शूद्र उत्पन्न हुए।
कई लोगों ने जाति प्रथा को समाप्त करने की बात की। पिछली कई सदियों से "उच्च जाति" कहे जाने वाले लोगों की श्रेष्ठता का आधार उनके कर्म का मानक होने लगा। ब्राह्मण बिना कुछ किये भी लोगों से उपर नहीं समझे जान लगे। भारतीय संविधान में जाति के आधार पर अवसर में भेदभाव करने पर रोक लगा दी गई। पिछली कई सदियों से पिछड़ी रही कई जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई।
यह कहा गया कि १० सालों में धीरे धीरे आरक्षण हटा लिया जाएगा, पर राजनैतिक तथा कार्यपालिक कारणों से ऐसा नहीं हो पाया। धारे धीरे पिछड़े वर्गों की स्थिति में तो सुधार आया पर तथाकथित उच्च वर्ग के लोगों को लगने लगा कि दलितों के आरक्षण के कारण उनके अवसर कम हो रहे हैं। इस समय तक जातिवाद भारतीय राजनीति तथा सामाजिक जीवन से जुड़ गया।
अब भी कई राजनैतिक दल तथा नेता जातिवाद के कारण चुनाव जीतते हैं। आज आरक्षण को बढ़ाने की कवायद तथा उसका विरोध जारी है
- ब्राह्मण,
- क्षत्रिय,
- वैश्य और
- शूद्र।
ब्राह्मणों का कार्य शास्त्र अध्ययन, वेदपाठ तथा यज्ञ कराना होता था जबकि क्षत्रिय युद्ध तथा राज्य के कार्यों के उत्तरदायी थे। वैश्यों का काम व्यापार तथा शूद्रों का काम सेवा प्रदान करना होता था
भारतीय परम्परा में वर्ण शब्द का प्राचीनतम उल्लेख यजुर्वेद के 31वें अध्याय में मिलता है, लेकिन जाति शब्द का प्रयोग अपेक्षाकृत नया है। ये चार वर्ण मनुष्यों की प्रकृति (स्वभाव या विवेक) के तीन गुणों के मिश्रण से बना था -
- सत,
- रज और
- तम
पर कालान्तर में ऊँच-नीच के भेदभाव तथा आर्थिक स्थिति बदलने के कारण इससे विभिन्न वर्णों के बीच दूरिया बढ़ीं हैं। दलितों को समाज में निम्न स्थान प्राप्त होने के कारण टकरार भी बढ़ा है और राजनीति में भी एक नया दृष्टिकोण आया है। जन्म के आधार पर सामाजिक वर्ग मिलने की वजह से आधुनिक काल में जाति प्रथा का सामाजिक और राजनैतिक विरोध हुआ है। भारतीय स्वतंत्रता के समय डॉक्टर अंबेडकर का काम इस दिशा में बहुत महत्वपूर्ण है।
आज कई दलित नेता मनुस्मृति जैसे ग्रंथों को जन्म आधारित प्रथा का सृजनकर्ता गंथ समझकर बहुत विरोध करते हैं। भारत में आरक्षण के कारण भी विभिन्न वर्णों के बीच अलग सा रिश्ता बनता जा रहा है। भारतीय दर्शन के १९वीं सदी में यूरोप पहुँचने के बाद इस विषय में पाश्चात्य विद्वानों का ध्यान गया। कहा जाता है कि हिटलर भारतीय वर्ण व्यवस्था से विदित था। भारतीय उपमहाद्वीप के कई अन्य धर्म तथा सम्प्रदाय भी इसका पालन आंशिक या पूर्ण रूप से करते हैं। इनमें सिक्ख, इस्लाम तथा इसाई धर्म का नाम उल्लेखनीय है।
धार्मिक उत्पत्ति hinduism caste system history origin
पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि के बनने के समय मानवों को उत्पत्त करते समय ब्रह्मा जी के विभिन्न अंगों से उत्पन्न होने के कारण कई वर्ण बन गये।
मुख से ब्राह्मण उत्पन्न हुए।
भुजाओं से क्षत्रिय उत्पन्न हुए।
जाघ् से वैश्य उत्पन्न हुए।
पैर से शूद्र उत्पन्न हुए।
आरक्षण और वर्तमान स्थिति
19वीं तथा 20वी सदी में भी जाति व्यवस्था कायम है आरक्षण जहाँ पिछड़ी जातियोँ को अवसर दे रहा है वही वे उन्हे ये अहसास भी याद करवाता है कि वे उपेक्षित हैँ। भीमराव अंबेडकर जैसे लोगों ने भारतीय वर्ण व्यवस्था की कुरीतियों को समाप्त करने की कोशिश की।कई लोगों ने जाति प्रथा को समाप्त करने की बात की। पिछली कई सदियों से "उच्च जाति" कहे जाने वाले लोगों की श्रेष्ठता का आधार उनके कर्म का मानक होने लगा। ब्राह्मण बिना कुछ किये भी लोगों से उपर नहीं समझे जान लगे। भारतीय संविधान में जाति के आधार पर अवसर में भेदभाव करने पर रोक लगा दी गई। पिछली कई सदियों से पिछड़ी रही कई जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई।
यह कहा गया कि १० सालों में धीरे धीरे आरक्षण हटा लिया जाएगा, पर राजनैतिक तथा कार्यपालिक कारणों से ऐसा नहीं हो पाया। धारे धीरे पिछड़े वर्गों की स्थिति में तो सुधार आया पर तथाकथित उच्च वर्ग के लोगों को लगने लगा कि दलितों के आरक्षण के कारण उनके अवसर कम हो रहे हैं। इस समय तक जातिवाद भारतीय राजनीति तथा सामाजिक जीवन से जुड़ गया।
अब भी कई राजनैतिक दल तथा नेता जातिवाद के कारण चुनाव जीतते हैं। आज आरक्षण को बढ़ाने की कवायद तथा उसका विरोध जारी है
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