वनवास के दौरान सीता इस बात का विशेष ध्यान रखती थीं
15 May 2016
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मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को श्रीराम व सीता का विवाह हुआ था। हर साल इस तिथि पर श्रीराम-सीता के विवाह के उपलक्ष्य में विवाह पंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह प्रसंग श्रीरामचरित मानस में मिलता है।
history of sita mata in hindi - वाल्मीकि रामायण के अनुसार, एक बार जब राजा जनक यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय उन्हें भूमि से एक कन्या प्राप्त हुई। जोती हुई भूमि को तथा हल की नोक को सीता कहते हैं। इसलिए इस बालिका का नाम सीता रखा गया।
श्रीरामचरित मानस के अनुसार, वनवास के दौरान श्रीराम के पीछे-पीछे सीता चलती थीं। चलते समय सीता इस बात का विशेष ध्यान रखती थीं कि भूल से भी उनका पैर श्रीराम के चरण चिह्नों (पैरों के निशान) पर न रखाएं। श्रीराम के चरण चिह्नों के बीच-बीच में पैर रखती हुई सीताजी चलती थीं।
mata sita story in hindi वाल्मीकि रामायण के अनुसार, रावण ने सीता का हरण अपने रथ से किया था। रावण का यह दिव्य रथ सोने का बना था,इसमें गधे जूते थे और वह गधों के समान ही शब्द (आवाज) करता था।
एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था, तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी, इतना कहकर वह अग्नि में समा गई। उसी स्त्री ने दूसरे जन्म में सीता के रूप में जन्म लिया। ये प्रसंग वाल्मीकि रामायण का है
जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई। ये प्रसंग वाल्मीकि रामायण में मिलता है
सीता नवमी के दिन व्रती (व्रत करने वाला) को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर माता जानकी के निमित्त व्रत व पूजन का संकल्प लेना चाहिए।
इसके बाद उसे एक चौकी पर सीतारामजी सहित जनकजी, माता सुनयना, कुल पुरोहित शतानंदजी, हल और पृथ्वी माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करके उनका पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश एवं माता अंबिका का पूजन करके माता जानकी का पूजन करना चाहिए। पूजन में सर्वप्रथम इन ध्यान मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए-
माता जानकी का ध्यान-
ताटम मण्डलविभूषितगण्डभागां,पिता जनक का ध्यान-
चूडामणिप्रभृतिमण्डनमण्डिताम्।
कौशेयवस्त्रमणिमौक्तिकहारयुक्तां,
ध्यायेद् विदेहतनयां शशिगौरवर्णाम्।।
देवी पद्मालया साक्षादवतीर्णा यदालये।
मिथिलापतये तस्मै जनकाय नमो नम:।।
माता सुनयना का ध्यान-
सीताया: जननी मातर्महिषी जनकस्य च।
पूजां गृहाण मद्दतां महाबुद्धे नमोस्तु ते।।
कुल पुरोहित शतानंदजी का ध्यान-
निधानं सर्वविद्यानां विद्वत्कुलविभूषणम्।
जनकस्य पुरोधास्त्वं शतानन्दाय ते नम:।।
हल का ध्यान
जीवनस्यखिलं विश्वं चालयन् वसुधातलम्।
प्रादुर्भावयसे सीतां सीत तुभ्यं नमोस्तु ते।।
पृथ्वी का ध्यानत्वयैवोत्पदितं सर्वं जगतेतच्चराचरम्।
त्वमेवासि महामाया मुनीनामपि मोहिनी।।
त्वदायत्ता इमे लोका: श्रीसीतावल्लभा परा।
वंदनीयासि देजवानां सुभगे त्वां नमाम्यहम्।।
इसके बाद पंचोपचार से सभी का पूजन करना चाहिए। अंत में इस मंत्र से आरती करना चाहिए-
कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं च प्रदीपितम्।
आरार्तिक्यमहं कुर्वे पश्य मे वरदा भव।।
परिकरसहित श्रीजानकीरामाभ्यां नम:।
कर्पूरारार्तिक्यं समर्पयामि।।
अंत में पुष्पांजलि अर्पित कर और क्षमायाचना करके जानकी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
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