इस मंदिर में जल रही आग वैज्ञानिक नहीं जाने रहस्य
7 April 2016
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चंडीगढ़ हिमाचल के एक मंदिर में सदियों से 9 प्राकृतिक ज्वालाएं जल रही हैं, इनका रहस्य जानने के लिए पिछले करीब 70 सालों से भू-वैज्ञानिक जुटे हुए हैं, लेकिन 9 किमी खुदाई करने के बाद उन्हें आज तक वह जगह ही नहीं मिली जहां पर प्राकृतिक गैस निकलती हो bharat ke unsuljhe rahasya
- इस मंदिर में प्राकृतिक रूप से निकलने वाली ज्वालाओं का रहस्य न तो बादशाह अकबर जान पाया था और न ही अंग्रेज।
-ज्वाला देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा शहर से 30 किलोमीटर की दूरी पर है।
- मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है। इसकी गिनती माता के प्रमुख शक्ति पीठों में होती है। ऐसी मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी।
-अाजादी के बाद भूगर्भ वैज्ञानियों ने मंदिर में जल रही ज्वालाओं के राज को जानने की कोशिश की लेकिन विफल हुए।
-करीब 70 साल बीत जाने के बाद आज भी मंदिर के आसपास के इलाकों को कई किलोमीटर तक खोदा जा रहा है, लेकिन तेल या नेचुरल गैस का कोई अता-पता नहीं चल पा रहा है।
भूगर्भ से निकलने वाली ज्वाला को इस्तेमाल करना चाहते थे अंग्रेज
-ज्वाला मां के इस मंदिर में निकलने वाली ज्वाला चमत्कारिक है। ब्रितानी काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया था कि जमीन के अंदर से निकलती इस ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाए, लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे भूगर्भ से निकलती इस ज्वाला का पता नहीं कर पाए थे।
-इतिहास इस बात का भी गवाह है कि मुगल सम्राट अकबर लाख कोशिशों के बाद भी इसे बुझा नहीं पाया था।
-मंदिर में जलती हुई ज्वालाओं को देखकर अकबर के मन में शंका हुई थी। उसने अपनी सेना को मंदिर में जल रही ज्वालाओं पर पानी डालकर बुझाने के आदेश दिए थे। ज्वालाओं को बुझाने के लिए नहर खुदवाई गई थी, लेकिन यह प्रयास असफल रहा था।
ये है 9 ज्वालाओं के रूप
यह मंदिर देवी के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही 9 ज्वालाओं की पूजा होती है।
-यहां पर पृथ्वी के गर्भ से 9 अलग अलग जगह से ज्वालाएं निकल रही हैं जिनके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है।
इन 9 ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है।
-इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद ने करवाया था।
बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और हिमाचल के राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया।
यह ज्वाला देवी मां अंबिका का रूप है
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अन्नपूर्णा स्वरूप
चंडीगढ़ हिमाचल के एक मंदिर में सदियों से 9 प्राकृतिक ज्वालाएं जल रही हैं, इनका रहस्य जानने के लिए पिछले करीब 70 सालों से भू-वैज्ञानिक जुटे हुए हैं, लेकिन 9 किमी खुदाई करने के बाद उन्हें आज तक वह जगह ही नहीं मिली जहां पर प्राकृतिक गैस निकलती हो bharat ke unsuljhe rahasya
- इस मंदिर में प्राकृतिक रूप से निकलने वाली ज्वालाओं का रहस्य न तो बादशाह अकबर जान पाया था और न ही अंग्रेज।
-ज्वाला देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा शहर से 30 किलोमीटर की दूरी पर है।
- मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है। इसकी गिनती माता के प्रमुख शक्ति पीठों में होती है। ऐसी मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी।
-अाजादी के बाद भूगर्भ वैज्ञानियों ने मंदिर में जल रही ज्वालाओं के राज को जानने की कोशिश की लेकिन विफल हुए।
-करीब 70 साल बीत जाने के बाद आज भी मंदिर के आसपास के इलाकों को कई किलोमीटर तक खोदा जा रहा है, लेकिन तेल या नेचुरल गैस का कोई अता-पता नहीं चल पा रहा है।
भूगर्भ से निकलने वाली ज्वाला को इस्तेमाल करना चाहते थे अंग्रेज
-ज्वाला मां के इस मंदिर में निकलने वाली ज्वाला चमत्कारिक है। ब्रितानी काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया था कि जमीन के अंदर से निकलती इस ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाए, लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे भूगर्भ से निकलती इस ज्वाला का पता नहीं कर पाए थे।
-इतिहास इस बात का भी गवाह है कि मुगल सम्राट अकबर लाख कोशिशों के बाद भी इसे बुझा नहीं पाया था।
-मंदिर में जलती हुई ज्वालाओं को देखकर अकबर के मन में शंका हुई थी। उसने अपनी सेना को मंदिर में जल रही ज्वालाओं पर पानी डालकर बुझाने के आदेश दिए थे। ज्वालाओं को बुझाने के लिए नहर खुदवाई गई थी, लेकिन यह प्रयास असफल रहा था।
ये है 9 ज्वालाओं के रूप
यह मंदिर देवी के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही 9 ज्वालाओं की पूजा होती है।
-यहां पर पृथ्वी के गर्भ से 9 अलग अलग जगह से ज्वालाएं निकल रही हैं जिनके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है।
इन 9 ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है।
-इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद ने करवाया था।
बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और हिमाचल के राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया।
यह ज्वाला देवी मां अंबिका का रूप है
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अन्नपूर्णा स्वरूप
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