प्रशासन और सरकार पर हकीकत बयां करती ये फिल्में देखना


सत्याग्रह 2013 में रिलीज हुई सत्याग्रह की कहानी दर्शाती है कि कैसे सरकार एक आदमी की मौत पर उसके परिवार को मुआवजा देने के लिए बार-बार टरकाती रहती है। उस आदमी का दोस्त और उसका पिता उसके हक के लिए लड़ता है। बूढ़ा पिता सरकार के खिलाफ अनशन भी करता है। फिल्म दिखाती है कि आम जनता सरकार के वायदों में कैसे उलझ कर रह जाती है। फिल्म में अमिताभ बच्चन,अजय देवगन, करीना कपूर हैं।

गंगाजल 2003 में बनी हिन्दी फिल्म है - पोलिस प्रशासन और गन्दी राजनीतीक अहम दिखाती है अजय देवगन जिसमे SP के रोल में हैं

फिल्म यंगिस्तान 2014 में ये फिल्म रिलीज हुई असल में एक ऐसे आदमी की लव स्टोरी है जिसके पिता प्रधानमंत्री होते हैं लेकिन उनकी मौत के बाद वे न चाहते हुए भी पार्टी की कमान संभालने पर मजबूर हो जाता है। इस तरह उसकी निजी जिंदगी पर भी असर पड़ता है। राजनीति के पिछड़ों से अंजान ये लड़का कैसे अपनी ईमानदारी से काम के तरीके बदलता है, ये ही फिल्म की कहानी है।

फिल्म राजनीति में दिखाया गया है कि कैसे दो परिवार गद्दी पाने की होड़ में सब ताक पर रख देते हैं। खून खराबे और षडयंत्र के बीच होती है सारी राजनीति जो इनकी निजी जिंदगियों में उथल पुथल मचा देती है। फिल्म 2010 में रिलीज हुई थी और इसमें कैटरीना कैफ, रणबीर कपूर, अजय देवगन, अर्जुन रामपाल, मनोज वाजपेयी और नाना पाटेकर मुख्य भूमिका में हैं।

रंग दे बसंती 2006 में आई उन 6 युवाओं की कहानी है जो अपने दोस्त और शहीद स्कावड्रन लीडर की मौत पर राजनीति कर रहे राजनेताओं से बदला लेने के लिए उनका खून कर देते हैं। हालांकि वे खुद भी गोलियों से भून दिए जाते हैं। लेकिन फिल्म इस बात को उजागर करती है कि क्या वाकई हमारे देश में वायु सेना के जवानों को इतने सस्ते पुर्जे वाले हवाई जहाज दिए जाते हैं जिनमें खामिया होने के कारण उनकी मौत हो जाती है।

अपहरण 2005 में आई बिहार के उस माहौल को दिखाती है जहां लोगों को अगवा करना, प्रशासनिक पदों पर भर्ती के लिए मोटी घूस लेना आम बात है। फिल्म दिखाती है कि कैसे एक लड़का कई बार पुलिस की परीक्षा देकर भी पास नहीं होता, न ही घूस से काम बनता है। हताश हो कर वो भी अपहरण करने लगता है। ये भी दिखाया गया है कि जेल के अंदर बैठे कुख्यात अपराधियों के लिए पुलिस को अपनी जेब में कर के अपने काम बनवाना कितना आसान है।

परजानिया 2002 गुजरात दंगों पर आधारित 2007 में आई फिल्म 'परजानिया' में पूरी असली घटना दिखाई गई है। फिल्म उस पिता की कहानी है जिसका बेटा गुलबर्ग सोसाइटी पर हुए हमलों के वक्त गायब हो गया था और वो अपने बेटे को सालों तक ढंढूता रहा। फिल्म में बखूबी दिखाया गया है कि दंगे के पीड़ितों की मदद करने के बजाए police कैसे उनकी भावनाओं के साथ खेलती है। फिल्म अजहर मोदी नाम के लड़के की जिंदगी से प्रेरित है। 

नायक 2001 में अनिल कपूर की आई फिल्म नायक दिखाती है कि एक ईमानदार आम इंसान भी कैसे सत्ता तक पहुंच कर भ्रष्टाचार को दूर कर सकता है। फिल्म में दिखाया गया कि मुंबई में अचानक इतने दंगे होने के बावजूद वहां का मुख्यमंत्री कोई जिम्मेदारी नहीं लेता लेकिन इन सबसे तंग आकर एक साधारण पत्रकार जब उसे सवाल पूछता है तो उलटा उसे ही एक दिन के लिए सीएम बनने की चुनौती मिल जाती है और वो कैसे प्रशासन में सुधार लाता है।

1999 की फिल्म 'शूल' बिहार की राजनीति पर आधारित है और दिखाती है कि किस कदर वहां जुर्म फैला है जो राजनीति तक में अपने पैर पसारे हुए है। फिल्म में दिखाया गया है कि एक ईमानदार पुलिस अफसर कैसे इन अपराधियों का खात्मा करता है। मनोज वाजपेयी और रवीना टंडन इसमें मुख्य भूमिका में हैं। ll 1977 में आई फिल्म 'किस्सा कुर्सी का' असल में इंदिरा गांधी और संजय गांधी की राजनीति पर एक व्यंग थी। इसीलिए आपातकाल के वक्त भारत सरकार ने इसे बैन कर दिया था। फिल्म एक भ्रष्ट राजनेता के इर्द-गिर्द घूमती है जो चुप रहने वाली जनता को अपनी तरफ करना चाहता है। शबाना आजमी के जरिए उस मूक जनता को दर्शाया गया है। ये फिल्म प्रशासन पर उंगली उठाती है। लीड किरदार में शबाना आजमी और मनोहर सिंह हैं। kk

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