भारतीय संस्कृति में नारी का धर्म महत्व


भारतीय समाज में नारी एक विशिष्ट गौरवपूर्ण स्थान पर प्रतिष्ठित है। सीता, सावित्री, द्रौपदी, मदालसा, सती अनुसूया, गार्गी, जीजाबाई तथा लक्ष्मीबाई अनेक नारियों के नाम श्रध्दा आदर से लिये जाते हैं। इनके जीवन के आदर्शों को दैनिक जीवन में उतारने से एक नये प्रकाश का अनुभव होता है। उस दिव्य प्रकाश से नारी जीवन ेस आधिदैविक, आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक तापों के बादल स्वयं ही छट जाते हैं। नारी सांसारिक कार्य एवं पारिवारिक कर्तव्यों का पालन करती हुई आनंद प्राप्ति कर लेती है। हिन्दू समाज की नारी हर स्थान तथा हर स्थिति में अपनी शालीनता, पवित्रता तथा सतीत्व बनाये रखती है। उसका शरीर पवित्र होता है। कोई भी पर पुरुष उसे स्पर्श करने का साहस नहीं कर सकता। बड़े से बड़े लोग भी दीन-हीन महिला को आदरपूर्वक माता का ही संबोधन देते हैं।

पश्चिम की चकाचौंध भौतिकवादी पाश्चात्य भावापन्न मस्तिष्क हिन्दू नारी की गौरव गरिमा को कैसे समझ सकता है? भारत वर्ष की नारी पुरुष की भोग सामग्री नहीं है। वह तो आध्यात्मिक प्रकाश का दीपक है। जो अपने कर्तव्यपरायणता और सतीत्व के बल पर अपना लोक तथा परलोक दोनों ही सुधार लेती है। भारतीय नारी त्याग की मूर्ति है। सेवा की भावना से ओत-प्रोत है। वह जानती है कि कर्तव्यपालन और सेवा के बल पर उसका अधिकार स्वयं ही सुरक्षित रहता है। उसे अलग से अधिकार मांगना नहीं पड़ता। मनुष्य चाहे उसके साथ अन्याय करने का प्रयत्न करे लेकिन उसके रोम-रोम में बसा सात्विक गुण अन्याय को दूर भगा देता है। आज भारतीय नारी के स्वरूप में परिवर्तन देखकर मन वेदना से व्यथित हो जाता है। वह अपनी प्राचीन मर्यादाओं का उल्लंघन करके सत्य से दूर हो रही है। पश्चिम की चकाचौंध को स्वीकार करके स्वयं को ठग रही है। वह जीवन में मंगल लाने के स्थान पर अमंगल की स्थापना कर रही है। जीवन से शालीनता, पवित्रता, सौम्यता विदा होती जा रही है।

यह इस माहन राष्ट्र का दुर्भाग्य है कि नारी स्वछंद होती जा रही है। सात्विक गुणों को त्यागकर जीवन में रजोगुण और तमोगुण के प्रभाव से स्वयं को नरक में धकेलने के समान है। इससे जीवन नारकीय बना रही है पूरे समाज तथा राष्ट्र का वातावरण भी मलिन हो रहा है। भारत वर्ष की नारियां धर्म विरोधी, आत्मविरोधी, जीवन-शैली को ग्रहणकर तनावग्रस्त हो रही हैं। यह उनकी कपोल कल्पना है कि इस प्रकार की जीवन-शैली अपनाने से वे स्वतंत्र हो जायेंगी। मन तथा इंद्रियों का दास सुखी नहीं हो सकता। सुखी होने के लिये जीवन में मर्यादा चाहिये। भारत वर्ष अध्यात्मवादी राष्ट्र है। अध्यात्मवाद से दूर होकर के सुख और शांति नहीं अपितु तनाव, चिन्ता ही प्राप्त होगी। सात्विकता तथा अध्यात्मवाद सात्विकता तथा अध्यात्मवाद की अवधारणा को स्वीकार करके उसमें अपने आप को प्रतिष्ठित करना ही भारतीय नारी का आभूषण है।

Bhartiya sanskriti ki visheshta in hindi सम्प्रति समाज में जो अभद्रता घट रही है उसका मूल कारण है जीवन में नैतिकता, धर्म तथा सात्विक गुणों का शिथिल पड़ जाना। पाश्चात्य की अंधाधुंध अनुकरण कर कहना कि हम अति आधुनिक हो गया हैं यह बुध्दि का भ्रष्ट होना है। भ्रमित बुध्दि के कारण क्या करणीय है, क्या त्याज्य है इसका चिंतन भी नहीं हो पा रहा है। सुख-सुविधा विषय भोग तथा अर्थ की ही प्रधानता को स्वीकृति हो रही है। मोह-ममता को ही प्रेम मान रही है। सांसारिक प्रेम तो केवल काम-वासना है। दिव्य प्रेम का मार्ग ही दूसरा है। आज का प्रेम दूसरे क्षण घृणा में बदल रहा है। यह प्रेम नहीं है। यह केवल मात्र वासना है। जिसमें अध्यात्मवाद वास्तविक प्रेम की सुगंध कहां? प्रेम के नाम पर नाटककार, चलचित्र करोड़ों रुपयों का व्यापार कर रही है। यह लोगों को ठगने का सबसे सरल ढंग है। बुध्दि युक्त मनुष्य इनकी बंचना में फंसते भगवान द्वारा प्राप्त विवेक बुध्दि दूसरों को ठगने के लिये नहीं है। पाश्चात्य शिक्षा मनुष्य को भोगों में लगाती है। आध्यात्मिक शिक्षा भोगों से हटाने का कार्य करती है। मन तथा इंद्रियों के संयम द्वारा मनुष्य आध्यात्मिक विकास करता हुआ परम आनंद प्राप्ति करता है। बढ़ती हुई भोग वासना की प्रवृत्ति ने स्वार्थवाद को जन्म दिया। स्वार्थी मनुष्य परहित राष्ट्र हित की बात नहीं सोच सकता है। परिवार के स्तर पर नारी का स्थान पुरुष से भी ऊंचा है। क्योंकि बच्चों की प्रथम गुरु तो मां ही है। मां को आध्यात्मिक क्षेत्र का ज्ञान होने से बच्चों को संस्कार दे सकती है। आज समाज को उत्तम संस्कारों की आवश्यकता है।

संस्कारों के अभाव के कारण समाज तथा राष्ट्र की व्यवस्था डगमगा रही है। अंधकार, अज्ञान क्रूरता, कुटिलता, छीना-झपटी, पाखंड नकली प्रदर्शन, परस्त्रीगमन, स्वार्थसिध्दि, विषय भोगी जीवन का गंदलापन चारों ओर देखा जा रहा है। इनसे पैदा होने वाले शारीरिक तथा मानसिक रोगों में निरंतर बढ़ोत्तरी होती जा रही है। इस प्रकार की आसुरी सम्पदा को धारण करने वाला मनुष्य भले ही शरीर से देखने में मनुष्य ही दीखता हो लेकिन मन तथा बुध्दि से तो राक्षस ही है। विवेक बुध्दि के कारण ही तो जीव राक्षस से भिन्न हैं जब जीवन से मानवता के मूल्य ही विदा हो गये तो मानव भी दानव ही बन जाता है। इस समय भारत कई प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा है। नारी के त्याग, सेवा, करुणा, धर्मपरयणता तथा सतोगुण में वह शक्ति है जो सारे समाज में मंगल की वर्षा कर सकती है। राष्ट्र को इस समय शुपर्णखाओं की नहीं विदुषी और सात्विक देवियों की आवश्यकता है।

नारी को चाहिये कि वह अपनी शक्ति की पहचान करे और अपने आपको सात्विकता में प्रतिष्ठित करके राष्ट्र में मंगलमय वातावरण पैदा करें। जो नारी चरित्रवान है उसमें बाकी के सतोगुण अपने आप ही आ जाते हैं। चरित्रहीनता से बाकी के दैवी गुण स्वयं ही विदा हो जाते हैं। वर्तमान समय की नारी पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चलती है। हर क्षेत्र में आगे है। ऊंचे-ऊंचे पदों पर विराजमान हैं। राजनीति, शिक्षा, विज्ञान, साहित्य, चिकित्सा इत्यादि कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां नारियां कार्य नहीं करती हों। लेकिन ये तो केवल मात्र नारी का बाहरी विकास है। वह भीतरी विकास से क्यों चूक रही है। वह क्यों पुरुष की भोग सामग्री बनती जा रही है। अत: मन एवं इंद्रियों को वश में करें ताकि आन्तरिक विकास में व्यवधान न पड़े। हे भारतवर्ष की महान नारियो! तुम ऋषियों की सन्तानें हो। तुम्हारी रगों में सीता, सावित्री तथा लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाओं के रक्त का संचार हो रहा है। अपनी सात्विकता को पहचानो। जिस आध्यात्मिक ज्योति को पुरुष कठिन तप और त्याग से प्राप्त करता है उसे तुम सुगमता, धर्मपरायणता और इंद्रिय संयम से उपलब्ध कर सकती हो। अत: शरीर द्वारा गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए आत्मोत्थान के मार्ग पर आगे बढ़ो। अपनी खोई हुई गौरव गरिमा को वापिस लाओ। इसी में तुम्हारा तथा राष्ट्र का गौरव और कल्याण है। bharat sanskriti bhartiya sanskriti essay hindi sanskriti ki visheshta bharatiy sanskriti भारतीय संस्कृति और सभ्यता भारतीय संस्कृति पर कविता भारतीय संस्कृति का महत्व bhartiya sanskriti ki visheshta in hindi essay on bhartiya sanskriti in sanskrit bhartiya sanskriti par kavita essay on bhartiya sanskriti in hindi language bhartiya sanskriti hindi-wikipedia bhartiya sanskriti in hindi pdf bhartiya sanskriti nibandh in hindi poem on bhartiya sanskriti in hindi भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ

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