बंद करो गन्दी राजनीति जातीगत आरक्षण caste reservation in india
2 February 2016
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भारत की वह व्यवस्था जहाँ कोई सुखी नहीं है और माफ कीजिएगा पर सच यही है कि इस देश में अगर कोई जाति है तो केवल दो जाति है एक "अमीर" और एक "गरीब"। नेता लम्बी लम्बी घोषणाएँ करके सरकार बना लेती हैं और फिर सब भूल जाते हैं
गरीबों की समस्याएँ एक सी होती हैं
परन्तु उनकी तरफ कोई नहीं देखता और धन्नासेठ लोग और धनी होते जाते हैं , जा रहे हैं । "सरिता द्विवेदी" और "रोहित" कोई और बेटी या बेटे ना बनें , क्या समय नहीं आ गया है कि अब व्यवस्था को पुनः बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए जिसमें हर गरीब ज़रूरतमंदों को उसका अधिकार और न्याय मिल सके जिससे भविष्य में ना कोई "सरिता द्विवेदी" पैदा हो ना "रोहित" ? माफ कीजिएगा पर सच यह है कि इस देश में गरीबों के खाते खोलकर मुर्ख तो बना दिया जाता है पर खाते अमीरों के भरे जाते हैं । चाहे सरिता द्विवेदी हो या रोहित , मरें तो मरते रहें ।
देश की आजादी में अहम योगदान देने वाले क्षेत्र काकोरी के मलाहां गांव में बेहद गरीब परिवार में पैदा हुई गिरीश द्विवेदी की पुत्री "सरिता द्विवेदी" बहुत मेधावी और साहसी थी। पुलिस में भर्ती होकर उसका सपना वर्दी पहनने के बाद इंसाफ की लड़ाई लडऩे का था। लेकिन आरक्षण और सरकारी संवेदनहीनता के आगे उसकी एक नहीं चली और पुरस्कार में उसे मौत मिली। पुलिस भर्ती में घोटाला तथा भर्ती में आरक्षण व्यवस्था से आहत "सरिता" ने नौ पन्ने के अपने सुसाइड नोट में आत्महत्या का जिम्मेदार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव, कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के सचिवों को बताया है। उसने सुसाइड नोट में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को "हत्यारा" तक लिखा है।
सरिता द्विवेदी :-
""पापा मैंने हार नहीं मानी, पर हमें सामान्य जाति के होने का अभिशाप था। कहीं लंबाई, कहीं पढ़ाई, कहीं आरक्षण तो क्या करें जीकर ? क्योंकि ज्यादा पढ़ाई या प्रोफेशनल कोर्स करना या कराना हम लोगों की क्षमता से बाहर है। पापा मैं तो जा रही। इन हत्यारों से ये पूछना कि जब सामान्य वालों के लिए कहीं जगह नहीं है तो हर हॉस्पीटल में ये बोर्ड लगवा दें कि सामान्य वर्ग के स्त्री के शिशु जन्म लेने से पहले ही मार डालें। सब अपना-अपना जातिवाद फैला रहे हैं। समाज की क्या स्थिति होती जा रही है। लड़कियों के 20-20 टुकड़े करके फेंके जा रहे हैं। पापा, लोग लडक़ों को स्टडी के लिए भेजते हैं पर आपने भरोसे के साथ भेजा। मैं बार-बार कह रही थी मैं हार नहीं मानूंगी। बस, आरक्षण अभिशाप के कारण मैं अब जीना नहीं चाहती। सामान्य वर्ग में जन्म लेना अभिशाप और सजा है। सब जगह आरक्षण का अभिशाप। यदि हम कोई फार्म भरते हैं तो उसके पैसे कहां से लाएं ? पापा, आपके पास भी तो इतनी ताकत नहीं रही ? मुझे बुरा लगता कि जब मेरे खेत में जानवर चराने वालों को मना करती हूं तो वह गंभीर धाराओं में कार्रवाई कराने को धमकाते हैं। मैं अधर्म और अन्याय देख कर ऊब चुकी हूं। हर जगह अपनी-अपनी जाति बिरादरी के लोगों की तैनाती की जा रही है। मां आप परेशान मत होना, मैं आपके सुखों में बहुत खुश थी। वर्दी का सपना इस हालात में ले आया। मैं पुलिस की वर्दी तो नहीं पहन सकी, लेकिन एनसीसी की वर्दी घर में रखी है, जिसे मेरी चिता के पास रख देना। मम्मी मेरा सपना था वर्दी पहनने और इंसाफ की बात का।इसलिए मैं दौड़-दौडक़र पेट की मरीज बन गई। 100 नंबर दौड़ में पाने के बाद मैं और आप लोग बहुत खुश थे। मम्मी इतना जरूर पूछना कि जब मेरिट रिलीज हुई थी तब जनरल लडक़ी की कोई मेरिट नहीं बनी। जय हिंद , जय भारत। जय धरती माता की मुझे अपनी गोद में स्थान दो। जय भारत माता की। हम पुलिस, हम पुलिस, हम पुलिस …खत्म इंतजार।"
यह उपरोक्त कुछ लाइनें "सरिता द्विवेदी" के 9 पेज के सुसाइड नोट की हैं और विश्वास कीजिए कि यदि आप पूरा सुसाइड नोट पढ़ लेंगें तो शरीर का रोयाँ रोयाँ रोने लगेगा । सरिता द्विवेदी ने भी आत्महत्या करके व्यवस्था पर ठीक "रोहित" की तरह चोट की परन्तु "रोहित" के आत्महत्या ने "सरिता द्विवेदी" की जान देकर की गई चोट को भोथरा बना दिया । सच कहूँ तो "सरिता द्विवेदी" की चोट रोहित की चोट से कहीं अधिक महत्वपूर्ण थी जबकि रोहित विश्वविद्यालय की ब्राह्मणवादी व्यवस्था से हारकर समाप्त हुआ और "सरिता द्विवेदी" पूरी व्यवस्था में घुस गयी "सामन्ती सोच" की वजह से समाप्त हुई जहाँ केवल एक जाति के लोगों को ही नौकरी और महत्वपुर्ण पोस्ट पाने का जन्मजात अधिकार है । यह व्यवस्था भी हैदराबाद विश्वविद्यालय की व्यवस्था जैसी ही घातक है फर्क केवल इतना है कि कहीं "दलित" इसकी भेंट चढ़ गया और कहीं एक "सरिता द्विवेदी" । और इसका कारण व्यवस्था ही है जो सड़ गई है । पुलिस भर्ती की परीक्षा में सरिता द्विवेदी को मेरिट-लिस्ट में 188 वें स्थान से घटा कर 288वें स्थान पर कर दिए जाने की भी बात सामने आई है। सरिता ने रनिंग की प्रतियोगिता में 100 में से 100 अंक प्राप्त किए थे। तथ्य यह भी आ रहे हैं कि अगर मामले की गहराई और निष्पक्षता से जांच हो तो सरिता की आत्महत्या नहीं वह हत्या साबित हो जाएगी, क्योंकि सरिता धांधली और भ्रष्टाचार का शिकार हुई है।caste reservation in india percentage caste reservation in india debate caste reservation in india ppt disadvantages of caste reservation in india caste based reservation in india caste based reservation in india essays caste reservation system in india reservation in india good or bad
परन्तु उनकी तरफ कोई नहीं देखता और धन्नासेठ लोग और धनी होते जाते हैं , जा रहे हैं । "सरिता द्विवेदी" और "रोहित" कोई और बेटी या बेटे ना बनें , क्या समय नहीं आ गया है कि अब व्यवस्था को पुनः बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए जिसमें हर गरीब ज़रूरतमंदों को उसका अधिकार और न्याय मिल सके जिससे भविष्य में ना कोई "सरिता द्विवेदी" पैदा हो ना "रोहित" ? माफ कीजिएगा पर सच यह है कि इस देश में गरीबों के खाते खोलकर मुर्ख तो बना दिया जाता है पर खाते अमीरों के भरे जाते हैं । चाहे सरिता द्विवेदी हो या रोहित , मरें तो मरते रहें ।
देश की आजादी में अहम योगदान देने वाले क्षेत्र काकोरी के मलाहां गांव में बेहद गरीब परिवार में पैदा हुई गिरीश द्विवेदी की पुत्री "सरिता द्विवेदी" बहुत मेधावी और साहसी थी। पुलिस में भर्ती होकर उसका सपना वर्दी पहनने के बाद इंसाफ की लड़ाई लडऩे का था। लेकिन आरक्षण और सरकारी संवेदनहीनता के आगे उसकी एक नहीं चली और पुरस्कार में उसे मौत मिली। पुलिस भर्ती में घोटाला तथा भर्ती में आरक्षण व्यवस्था से आहत "सरिता" ने नौ पन्ने के अपने सुसाइड नोट में आत्महत्या का जिम्मेदार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव, कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के सचिवों को बताया है। उसने सुसाइड नोट में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को "हत्यारा" तक लिखा है।
सरिता द्विवेदी :-
""पापा मैंने हार नहीं मानी, पर हमें सामान्य जाति के होने का अभिशाप था। कहीं लंबाई, कहीं पढ़ाई, कहीं आरक्षण तो क्या करें जीकर ? क्योंकि ज्यादा पढ़ाई या प्रोफेशनल कोर्स करना या कराना हम लोगों की क्षमता से बाहर है। पापा मैं तो जा रही। इन हत्यारों से ये पूछना कि जब सामान्य वालों के लिए कहीं जगह नहीं है तो हर हॉस्पीटल में ये बोर्ड लगवा दें कि सामान्य वर्ग के स्त्री के शिशु जन्म लेने से पहले ही मार डालें। सब अपना-अपना जातिवाद फैला रहे हैं। समाज की क्या स्थिति होती जा रही है। लड़कियों के 20-20 टुकड़े करके फेंके जा रहे हैं। पापा, लोग लडक़ों को स्टडी के लिए भेजते हैं पर आपने भरोसे के साथ भेजा। मैं बार-बार कह रही थी मैं हार नहीं मानूंगी। बस, आरक्षण अभिशाप के कारण मैं अब जीना नहीं चाहती। सामान्य वर्ग में जन्म लेना अभिशाप और सजा है। सब जगह आरक्षण का अभिशाप। यदि हम कोई फार्म भरते हैं तो उसके पैसे कहां से लाएं ? पापा, आपके पास भी तो इतनी ताकत नहीं रही ? मुझे बुरा लगता कि जब मेरे खेत में जानवर चराने वालों को मना करती हूं तो वह गंभीर धाराओं में कार्रवाई कराने को धमकाते हैं। मैं अधर्म और अन्याय देख कर ऊब चुकी हूं। हर जगह अपनी-अपनी जाति बिरादरी के लोगों की तैनाती की जा रही है। मां आप परेशान मत होना, मैं आपके सुखों में बहुत खुश थी। वर्दी का सपना इस हालात में ले आया। मैं पुलिस की वर्दी तो नहीं पहन सकी, लेकिन एनसीसी की वर्दी घर में रखी है, जिसे मेरी चिता के पास रख देना। मम्मी मेरा सपना था वर्दी पहनने और इंसाफ की बात का।इसलिए मैं दौड़-दौडक़र पेट की मरीज बन गई। 100 नंबर दौड़ में पाने के बाद मैं और आप लोग बहुत खुश थे। मम्मी इतना जरूर पूछना कि जब मेरिट रिलीज हुई थी तब जनरल लडक़ी की कोई मेरिट नहीं बनी। जय हिंद , जय भारत। जय धरती माता की मुझे अपनी गोद में स्थान दो। जय भारत माता की। हम पुलिस, हम पुलिस, हम पुलिस …खत्म इंतजार।"
यह उपरोक्त कुछ लाइनें "सरिता द्विवेदी" के 9 पेज के सुसाइड नोट की हैं और विश्वास कीजिए कि यदि आप पूरा सुसाइड नोट पढ़ लेंगें तो शरीर का रोयाँ रोयाँ रोने लगेगा । सरिता द्विवेदी ने भी आत्महत्या करके व्यवस्था पर ठीक "रोहित" की तरह चोट की परन्तु "रोहित" के आत्महत्या ने "सरिता द्विवेदी" की जान देकर की गई चोट को भोथरा बना दिया । सच कहूँ तो "सरिता द्विवेदी" की चोट रोहित की चोट से कहीं अधिक महत्वपूर्ण थी जबकि रोहित विश्वविद्यालय की ब्राह्मणवादी व्यवस्था से हारकर समाप्त हुआ और "सरिता द्विवेदी" पूरी व्यवस्था में घुस गयी "सामन्ती सोच" की वजह से समाप्त हुई जहाँ केवल एक जाति के लोगों को ही नौकरी और महत्वपुर्ण पोस्ट पाने का जन्मजात अधिकार है । यह व्यवस्था भी हैदराबाद विश्वविद्यालय की व्यवस्था जैसी ही घातक है फर्क केवल इतना है कि कहीं "दलित" इसकी भेंट चढ़ गया और कहीं एक "सरिता द्विवेदी" । और इसका कारण व्यवस्था ही है जो सड़ गई है । पुलिस भर्ती की परीक्षा में सरिता द्विवेदी को मेरिट-लिस्ट में 188 वें स्थान से घटा कर 288वें स्थान पर कर दिए जाने की भी बात सामने आई है। सरिता ने रनिंग की प्रतियोगिता में 100 में से 100 अंक प्राप्त किए थे। तथ्य यह भी आ रहे हैं कि अगर मामले की गहराई और निष्पक्षता से जांच हो तो सरिता की आत्महत्या नहीं वह हत्या साबित हो जाएगी, क्योंकि सरिता धांधली और भ्रष्टाचार का शिकार हुई है।caste reservation in india percentage caste reservation in india debate caste reservation in india ppt disadvantages of caste reservation in india caste based reservation in india caste based reservation in india essays caste reservation system in india reservation in india good or bad
आरक्षण कोई भीख नहीं वो अधिकार है
ReplyDeleteसमान्यवर्ग के व्यक्ति जो कितना भी गरीब हो कितने सम्मान से जीता है और एक दलित समाज का आदमी को कोई चौराहे पर जाती के नाम से पुकरे तो लोग उसे ऐसे देखते है जैसे उसने किसी का बलात्कार कर दिया आप को सम्मान जनक सब्दो से पुकरे जाता है
जब तक देश में जातिवाद हे आरक्षण रहेगा
2000 साल पुराना इतिहास पदों तूम तो 2000 साल से आरक्षण पूरा लेते आये हो 100 प्रतिशत था तुम्हारा तो हमारा तो अभी 22 प्रतिशत हे और वो भी अभी 70 साल ही हुए हे
अभी से दर गए
जय भीम जय भारत
जय बहुजन संघर्ष दल
अगर कोई सम्मान से जीता हे तो इसमे बुराई क्या हे? देश के प्रत्येक नागरिक को सम्मान से जीना भी चाहिए और अगर किसी को जबरदस्ती पीछे किया जाए जबकी उसमे काबीलियत हे यह कौन सा न्याय हे?.. दोस्तों अब समाज को इन बुराईयो से बचाना होगा सब को पहले एक इच्छा इंसान बनना होगा सभी के टेलंट का सम्मान हमें करना चाहिए
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