महाभारत की 9 बाते ध्यान रखेंगे तो कई परेशानियों से बच जाएंगे niti
10 January 2016
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महाभारत हिन्दु धर्म का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। महाभारत की कहानियाँ हम बचपन से सुनते आ रहे हैं, फिर भी बहुत कुछ हे जो हम नहीं जानते। यहाँ पढ़िये महाभारत की कुछ अनसुनी और दिलज़स्प नीतियों को -
1. झूठ बोलना या झूठ का साथ देना एक ऐसा अज्ञान है, जिसमें डूबे हुए लोग कभी भी सच्चे ज्ञान या सफलता को नहीं पा सकते। (महाभारत, शांतिपर्व)
2 . धर्म में अास्था रखने वाले और सज्जन या ज्ञानी लोगों का मजाक उड़ाने वाले लोगों का विनाश जल्दी ही हो जाता है। (महाभारत, वनपर्व)
3. धरती पर अच्छा ज्ञान या शिक्षा ही स्वर्ग है और बुरी आदतें या अज्ञान ही नरक है। (महाभारत, शांतिपर्व)
4. मोह या लालच से मनुष्य को मृत्यु और सत्य से लंबी आयु और सुखी जीवन मिलता है। (महाभारत शांतिपर्व)
5. जिस काम को करने से पुण्य की प्राप्ति हो या दूसरों का भला हो, उसे करने में देर नहीं करनी चाहिए। जिस पल वे काम करने का विचार मन में आए, उसी पल उसे शुरू कर देना चाहिए। (महाभारत, शांतिपर्व)
6. अपने मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाले मनुष्य को जीवन में किसी भी तरह के कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता है। ऐसे मनुष्य के मन में दूसरों का धन देखकर भी जलन जैसी भावनाएं नहीं आती। (महाभारत, वनपर्व)
7. पुण्य कर्म जरूर करना चाहिए, लेकिन उनका दिखावा बिल्कुल भी न करें। जो मनुष्य लोगों के बीच तारीफ पाने के लिए या दिखावे के उद्देश्य से पुण्य कर्म करता है, उसे उसका शुभ फल कभी नहीं मिलता। (महाभारत, अनुशासनपर्व)
8. सभी लोगों के साथ एक सा व्यवहार करने वाला और दूसरे के प्रति मन में दया और प्रेम की भावना रखने वाला मनुष्य जीवन में सभी सुख पाता है। (महाभारत, वनपर्व)
9. अपने मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाले मनुष्य को जीवन में किसी भी तरह के कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता है। ऐसे मनुष्य के मन में दूसरों का धन देखकर भी जलन जैसी भावनाएं नहीं आती। (महाभारत, वनपर्व)
महाभारत हिन्दु धर्म का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। महाभारत की कहानियाँ हम बचपन से सुनते आ रहे हैं, फिर भी बहुत कुछ हे जो हम नहीं जानते। यहाँ पढ़िये महाभारत की कुछ अनसुनी और दिलज़स्प नीतियों को -
1. झूठ बोलना या झूठ का साथ देना एक ऐसा अज्ञान है, जिसमें डूबे हुए लोग कभी भी सच्चे ज्ञान या सफलता को नहीं पा सकते। (महाभारत, शांतिपर्व)
2 . धर्म में अास्था रखने वाले और सज्जन या ज्ञानी लोगों का मजाक उड़ाने वाले लोगों का विनाश जल्दी ही हो जाता है। (महाभारत, वनपर्व)
3. धरती पर अच्छा ज्ञान या शिक्षा ही स्वर्ग है और बुरी आदतें या अज्ञान ही नरक है। (महाभारत, शांतिपर्व)
5. जिस काम को करने से पुण्य की प्राप्ति हो या दूसरों का भला हो, उसे करने में देर नहीं करनी चाहिए। जिस पल वे काम करने का विचार मन में आए, उसी पल उसे शुरू कर देना चाहिए। (महाभारत, शांतिपर्व)
6. अपने मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाले मनुष्य को जीवन में किसी भी तरह के कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता है। ऐसे मनुष्य के मन में दूसरों का धन देखकर भी जलन जैसी भावनाएं नहीं आती। (महाभारत, वनपर्व)
8. सभी लोगों के साथ एक सा व्यवहार करने वाला और दूसरे के प्रति मन में दया और प्रेम की भावना रखने वाला मनुष्य जीवन में सभी सुख पाता है। (महाभारत, वनपर्व)
9. अपने मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाले मनुष्य को जीवन में किसी भी तरह के कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता है। ऐसे मनुष्य के मन में दूसरों का धन देखकर भी जलन जैसी भावनाएं नहीं आती। (महाभारत, वनपर्व)
अवश्यमय भुक्तमवय कतृ कर्म शुभाशुम न मुक्तम क्षीत्यते
ReplyDeleteWhere it is written in Mahabharta?
ReplyDeleteअवश्यमय भुक्तमवय कतृ कर्म शुभाशुम न मुक्तम क्षीत्यते