न्यायालय में मान्य नहीं ये निर्णय bailable


वर्ष 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि नार्को, पॉलिग्राफ या ब्रैन मैपिंग टेस्ट को साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस तरह के टेस्ट तभी किए जा सकते हैं, जब आरोपी इसके लिए तैयार हो, अन्यथा इन्हें मानव अधिकार का हनन माना जाएगा। गाैरतलब है कि इस तरह के टेस्ट कोर्ट के आदेशानुसार तभी किए जा सकते हैं, जब केस में मददगार को कोई अन्य जानकारी आरोपी से पता चल रही हो या जिससे जांच को आगे बढ़ाया जा सकता है। इन टेस्ट मेें मानव अधिकार आयोग की गाइडलाइन का पालन करना होता है।
इसलिए नहीं कर सकते यकीन -


  1. यह प्रक्रिया मशीनों पर आधारित है, जिनसे इस बात की कोई गारंटी नहीं मिलती कि आरोपी सच बोल रहा है या झूठ। यह मैकेनिकल प्रोसेस है। 
  2. आरोपी के पास समय होता है, वह इसे परीक्षण के रूप में लेता है। उसका आत्मविश्वास बढ़ जाता है। सोचकर झूठ बोल सकता है। 
  3. इस तरह के टेस्ट में पहले आरोपी तय कर सकता है कि उसे क्या बोलना है। टेस्ट के बारे में पूरी जानकारी जुटाई जा सकती है। उसे तैयार कर सकते हैं। 

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