कहानी देने का सुख सिर्फ पिताजी समझ सकते हे..Story For Fathers’s Day


पिता गाँव में रहते थे. सदा जीवन व्यतीत करते थे. बेटा-बहू दोनों बैंक में नोकरी करते थे. पास के शहर में अच्छा मकान था. दोनों कमरों में एसी लगे थे. आने-जाने के लिए कार थी. जबकि पिता के पास साइकिल थी, उसी से वे आते-जाते थे. कभी-कभी शहर जाते थे, बेटे-बहु से सुख-दुःख साझा करने. 

पिछले दो वर्षों से पिताजी फसल पर मौसम की मार से परेशान थे. इसलिए कई दिनों से बेटे-बहु से मिले नहीं थे. एक दिन अचानक ही उनके यहाँ पहुँच गए, हालचाल जानने. पिताजी को आनंद से देखकर दोनों खुश हुए फिर अचानक से दुखी हो गए. “पिताजी फिर आर्थिक रोना लेकर आये हे”. यह ठीक हे, हम पर बहुत कुछ हे. किन्तु अपनी परेशानियां हे, कार लोन, लड़के की हाई एजुकेशन का लोन, उसकी EMI, बहु धीरे से बोली.

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पिताजी नाहा धोकर फ्रेश हुए और ब्रेकफास्ट करने कुर्सी पर बैठे. बेटे का मुहं देखकर बोले, “उदास दिख रहे हे हो, कोई परेशानी” धीरे से लड़का मुस्कुराकर बोला “नहीं तो, सब ठीक हे, आपको तो कोई परेशानी नहीं”. नहीं मुझे कोई परेशानी नहीं हे बस तुम्हारी परेशानी ही मुझे परेशान करती हे. कहते हुए पिता ने जेब से 500-500 के नोट का एक बंडल निकाला और टेबल पर रखकर बोले “अब की बार फसल अच्छी हुयी हे, अच्छा मुनाफा हुआ हे सो तुम्हारे साथ साझा करने आ गया. यह देखकर बेटा-बहु चकित थे. उन्होंने कभी अपना मुनाफा शेयर नहीं किया, किन्तु पिताजी से मुनाफा शेयर करने से नहीं रहा गया. सच हे देने का सुख एक ही पिता ही समझ सकता हे, बेटा नहीं.

पिताजी बोले “तुम दोनों ऑफिस के लिए निकलो, में भी निकलता हु”. बहु बोली “पिताजी कुछ दिन के लिए और रुकिए ना”. नहीं अब चलूँगा तुम दोनों ठीक-ठाक हो. मुझे ख़ुशी हो रही हे और पिताजी हाथ उठाकर धोने लगे. सच में पिता तो पिता ही हे.

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